दुनिया में क्यों सबसे मजबूत मानी जाती है मोसाद? म्यूनिख ओलंपिक ने बदली मोसाद की तस्वीर
Intelligence Agencies: गुप्तचर एजेंसियां भेडिये की तरह पीछा करने वाली तो लोमड़ी की तरह चालाक, चीते जैसी फुर्ती और तूफानी गति से बहादुरी काम करने वाली होती हैं। ऐसे में दुनिया में तकरीबन हर देश के पास अपनी एक या अधिक गुप्तचर एजेंसियां हैं। लेकिन खास बात ये है कि इजराइल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद (Mossad) को इन सब में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। जिसका सबसे बड़ा कारण है इसका कार्य करने का तरीका, तभी तो मोसाद (Mossad) के लिए एक खास वाक्य भी इस्तेमाल किया जाता है, दुश्मन अगर पाताल में भी हो तो मोसाद उसे ढ़ंूढ़ कर समाप्त कर ही देती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में हुए इजराइल की टीम पर हमले का बदला…
जिसमें मोसाद (Mossad) ने 2 दशकों तक टीम पर हमला करने वाले आतंकियों का न केवल पीछा किया, बल्कि उनको मौत के घाट भी उतरा, इस दौरान इजराइल ने 6 देशों में आतंकियों को निशाना बनाया, यहीं नहीं ये तक कहा जाता है कि म्यूनिख ओलंपिक की प्लानिंग बनाने में जो-जो शामिल थे उनमें से कई को तो मोसाद (Mossad) उनके ही देश में घुसकर निशाना बनाया, यहीं आपरेशन इजराइल की प्रतिरोध की नीति को दुनिया के सामने लाया…
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ऐसे समझें म्यूनिख ओलंपिक का मामला…
दरअसल जर्मनी का म्यूनिख शहर 1972 के ओलिंपिक खेलों के आयोजन के लिए चुना गया था। हिटलर की सरपरस्ती में यहूदियों के नरसंहार के बाद यह पहला मौका था जब जर्मनी में ओलिंपिक खेल हो रहे थे। 5 सितंबर की सुबह ‘ब्लैक सेप्टेम्बर’ नाम के फलस्तीनी समूह के 8 आतंकवादी खेल गांव में घुसे। ट्रैकसूट पहने खिलाड़ियों के अंदाज में वे उस इमारत में दाखिल हुए जहां इजरायली दल को ठहराया गया था।
सारे आतंकी इजरायली एथलीट्स को खोजने में लग गए। एक-एक कमरे की तलाशी ली गई। इस बीच, इजरायल की रेसलिंग टीम के कोच मोसे वेनबर्ग ने किचन से चाकू उठाकर आतंकियों का मुकाबला करना चाहा मगर उन्हें गोली मार दी गई। गोलियों की बारिश के बीच कई खिलाड़ी भाग निकले।
अचानक हुए हमले में दो खिलाड़ी मारे गए जबकि नौ को आतंकियों ने बंधक बना लिया। इजरायली खिलाड़ियों को म्यूनिख में बंधक बनाए जाने की खबर पूरी दुनिया में फैल गई। इस वक्त तक सबको यही पता था कि 11 खिलाड़ी बंधक बनाए गए हैं, जो कि सच नहीं था।
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नहीं झुका इजरायल
उसी इमारत में 9 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बनाने के बाद आतंकियों ने अपनी मांगें सामने रखीं। वे इजरायल की जेलों में कैद 234 फिलिस्तीनियों की रिहाई चाहते थे। इजरायल ने साफ इनकार कर दिया। आतंकियों ने दबाव बढ़ाने के लिए, जिन दो खिलाड़ियों की मौत हो चुकी थी, उनके शव नीचे फेंक दिए। यह संदेश था कि अगर मांग नहीं मानी तो और लाशें गिरेंगी। इजरायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने आतंकवादियों के आगे घुटने टेकने से दो टूक मना कर दिया। इधर, जर्मनी अपने स्तर से पूरे संकट को सुलझाने की कोशिश में था।
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जर्मनी ने मानी बातें
वहीं जर्मनी ने आतंकवादियों की यह बात मान ली कि वे बंधकों को साथ लेकर कायरो जाएंगे। उन्हें बस मुहैया कराई गई जिसमें बंधकों को लेकर वे पास के एयरपोर्ट पहुंचे। इसी बीच में बंधकों को छुड़ाने की योजना बनाई गई। वेस्ट जर्मन पुलिस की कोशिशें नाकाम साबित हुईं। जैसे ही हथियारबंद गाड़ियों पर आतंकियों की नजर पड़ी, वे घबरा गए। 6 सितंबर की रात करीब 12 बजकर 4 मिनट पर एक आतंकवादी ने एके-47 राइफल उठाई और पॉइंट-ब्लैंक रेंज से इजरायली एथलीट्स पर गोलियां बरसां दीं। बंधक बनाए गए सभी इजरायली एथलीट्स को मौत के घाट उतार दिया गया। पुलिस ने भी जवाब में गोलियां बरसाईं और सारे आतंकवादियों को मार गिराया। जर्मन पुलिस ने तीन संदिग्धों को मौके से पकड़ा।
मोसाद (Mossad) ने संभाली बदला लेने की जिम्मेदारी
इस आतंकी हमले का बदला लेने की जिम्मेदारी इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद (Mossad) ने संभाली, और एजेंसी ने करीब-करीब दो दशक तक एक-एक आतंकवादी को ढूंढ ढूंढकर मारा। इस ऑपरेशन को ‘रैथ ऑफ गॉड’ (Operation Wrath of God) के नाम से चलाया गया।
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अब मोसाद (Mossad) की बारी: शुरू किया ऑपरेशन Wrath Of God
जर्मन पुलिस के हत्थे ये तीन संदिग्ध लगे। उधर, इजरायल ने बदले की प्लानिंग शुरू कर दी थी। तत्कालीन पीएम गोल्डा मेयर ने मोसाद (Mossad) की ओर से सुझाए एक ऑपरेशन को मंजूरी थी। नाम था Wratch Of God, दुनिया इस ऑपरेशन को Operation Bayonet के नाम से भी जानती है। मोसाद (Mossad) ने अगले 20 साल तक म्यूनिख हमले से जुड़े आतंकवादियों को चुन-चुनकर मार गिराया।
मोसाद ने एक-एक कर आतंकियों को उतारा मौत के घाट
म्यूनिख हत्याकांड के महीने भर बाद ही मोसाद (Mossad) को पहली कामयाबी मिली। रोम में रह रहे फिलिस्तीनी ट्रांसलेटर अब्दुल वाइल जैतर को 16 अक्टूबर 1972 को मारा गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, वह जैसे ही डिनर करके लौटा, पहले से मौजूदा दो एजेंट्स ने गोलियों से भून दिया।
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मोसाद (Mossad) का अगला निशाना था डॉ. महमूद हमशरी। वह फ्रांस में फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) का प्रतिनिधि था। मोसाद (Mossad) की एक एजेंट ने पत्रकार बनकर हमशरी को अपने जाल में फंसाया। हमशरी को पैरिस स्थित उसके अपार्टमेंट से बाहर बुलाया गया। उसके बाहर आते ही मोसाद (Mossad) की एक टीम भीतर घुसी और डेस्क टेलीफोन के नीचे बम लगा दिया। 8 दिसंबर, 1972 को उसी ‘पत्रकार’ ने हमशरी को फोन किया। फोन हमशरी ने उठाया जिससे कन्फर्म किया गया कि वह कमरे में ही मौजूद है। फिर मोसाद (Mossad) ने एक सिगनल भेजा और बम फट गया। हमशरी की मौत नहीं हुई लेकिन, वह बुरी तरह घायल हो गया और करीब एक महीने बाद उसने दम तोड़ दिया।
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अगले कुछ महीनों के अंदर चार अन्य संदिग्ध मारे गए। उनके नाम थे- बासिल अल कुबैसी, हुसैन अब्दुल चिर, जैद मुकासी और मोहम्मद बौदिया।
इसके बाद आया सबसे खतरनाक मिशन Wrath Of God
अप्रैल 1973 में मोसाद (Mossad) ने बेहद खतरनाक मिशन को अंजाम दिया। मोसाद (Mossad) की हिटलिट में शामिल ज्यादातर लोग लेबनान में कड़ी सुरक्षा के बीच रहते थे। मोसाद (Mossad) ने ऑपरेशन ‘स्प्रिंग ऑफ यूथ’ चलाकर उन्हें निशाना बनाया।
9 अप्रैल, 1973 की रात इजरायली कमांडोज को पानी और जमीन के रास्ते बेरूत पहुंचाया गया। वहां मौजूद मोसाद (Mossad) एजेंट से कॉन्टैक्ट के बाद कमांडो टीम ने पूरे शहर में छापे मारे। इजरायली पैराट्रूपर्स की एक टीम ने पॉप्युलर फ्रंट फॉर लिब्रेशन ऑफ फिलिस्तीन (PFLP) के हेडक्वार्टर पर हमला बोला। इस ऑपरेशन में मोहम्मद यूसुफ अल नज्जर, कमल अदवान और कमल नासिर को मार गिराया गया।
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बदले की आग में जल रहे मोसाद (Mossad) एजेंट्स से एक चूक हो गई। नरसंहार के करीब एक महीने बाद मोसाद (Mossad) को इनपुट मिला कि हमले का मास्टरमाइंड अली हसन सलामे नॉर्वे के लिलेहैमर में रह रहा है। 21 जुलाई, 1973 को मोसाद (Mossad) के एजेंटों ने हमला किया, मगर जिसे मारा वह मोरक्को का एक वेटर अहमद बौचिकी था। बौचिकी का म्यूनिख हमले और ब्लैक सेप्टेम्बर से कुछ लेना-देना नहीं था। नॉर्वे पुलिस ने मोसाद के छह एजेंट्स को अरेस्ट कर लिया। मोसाद (Mossad) का मानना है कि सलामत ने उनको चकमा दिया था। नॉर्वे पुलिस की जांच में यूरोप भर में फैले मोसाद (Mossad) के एजेंटों का पता चला। इसके बाद इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा और कुछ समय के लिए ऑपरेशन Wrath Of God को टाल दिया गया।
5 साल लग गए मास्टरमाइंड तक पहुंचने में
इस सब चीजों के बाद भी इजरायल ने बदले की प्लानिंग करना बंद नहीं किया था, और करीब पांच साल पर म्यूनिख हत्याकांड के मास्टरमाइंड तक पहुंच गए, जो कि ‘रेड प्रिंस’ के नाम से मशहूर था, जिसका असली नाम अली हसन सलामे था।
वह बेरूत में ही रह रहा था। एरिका मैरी चैम्बर्स नाम की मोसाद (Mossad) एजेंट ब्रिटिश पासपोर्ट पर लेबनान पहुंची। एरिका ने उसी गली में किराये पर कमरा लिया जिससे होकर सलामे आता-जाता था। कुछ वक्त में मोसाद (Mossad) के दो और एजेंट्स बेरूत पहुंच गए।
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फिर इस तरह किया मास्टरमाइंड का अंत
अब मास्टरमाइंड के अंत बारी थी ऐसे में घटना को अंजाम देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। तीनों एजेंट्स ने प्लानिंग के तहत गली में एक विस्फोटक से भरी कार खड़ी कर थी। 22 जनवरी, 1979 को जब सलामे और उसके बॉडीगार्ड्स कार में गली के भीतर दाखिल हुए तो विस्फोटकों वाली गाड़ी को मोसाद (Mossad) ने रेडियो डिवाइस से उड़ा दिया, और इस तरह मोसाद ने म्यूनिख के मास्टरमाइंड का अंत कर दिया।
वहीं इसके बाद भी अगले एक दशक तक मोसाद (Mossad) ने नरसंहार से जुड़े लोगों को ढूंढ-ढूंढकर मारा।
मोसाद (Mossad) हो या इजराइली सेना इनके सबंध मे ये बात आम है कि यह धैर्य के साथ तो काम करती ही है, लेकिन इसके एक्शन में भी खास तेजी भी होती है। तभी तो 1976 में युगांडा में बंधक बने इजराइली नागरिकों को समय पर आजाद करा लिया गया थां
चलिए जानते हैं युगांडा में इजराइल के बंधकों की बात
दरअसल इजरायली सैनिकों ने सन 1976 में युगांडा में बंधक बने अपने नागरिकों को बचाने के लिए इस साहसिक ऑपरेशन को अंजाम दिया था। जिसका अंत 4 जुलाई को ही सन 1976 में हुआ था।
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आज से 41 वर्ष पहले 27 जून, 1976 को तेल अवीव से पेरिस के लिए रवाना हुई एक फ्लाइट ने थोड़ी देर एथेंस में रुकने के बाद उड़ान भरी ही थी कि पिस्टल और ग्रेनेड लिए चार यात्रियों ने विमान को अपने कब्जे में लिया। ‘पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन फॉर फिलिस्तीन’ के आतंकवादी विमान को पहले लीबिया के बेनगाजी और फिर युगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे पर ले गए।
युगांडा के तत्कालीन तानाशाह ईदी अमीन भी अपहरणकर्ताओं के समर्थन में थे. अपहरणकर्ताओं ने बंधकों के जान की धमकी देते हुए मांग की थी कि इजरायल, कीनिया और तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी की जेलों में रह रहे 54 फिलीस्तीन कैदियों को रिहा किया जाए। इजरायल ने अपने नागरिकों को बचाने के लिए 4 जुलाई को कुछ फैंटम जेट लड़ाकू विमानों को सेना के सबसे काबिल 200 सैनिकों के साथ रवाना किया।
इस ऑपरेशन की योजना इस तरह बनाई गई थी कि युगांडा के सैनिकों को लगे कि इन विमानों में राष्ट्रपति ईदी अमीन विदेश यात्रा से वापस लौट रहे हैं। अमीन उन दिनों मॉरीशस की यात्रा पर थे। इजरायली सैनिकों ने युगांडा के सैनिकों की वर्दी पहनी हुई थी।
इजरायली सैनिकों ने हवाई अड्डे पर खड़े युगांडा के लड़ाकू विमान ध्वस्त किए और सभी सात अपहरणकर्ताओं को मार गिराया। पूरे अभियान में इजरायल का सिर्फ एक सैनिक मारा गया। ये इजरायल के मौजूदा पीएम बेंजामिन के भाई लेफ्टिनेंट कर्नल नेतन्याहू थे, जिन्हें एक गोली लगी थी। वे घायल हो गए थे और इजरायल वापस लौटते हुए विमान में ही उनकी मौत हो गई थी।
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चालिए अब जानते हैं मोसाद (Mossad), रॉ (RAW) और सीआईए (CIA) के बारे में…
इज़राइल की गुप्तचर संस्था मोसाद ( Mossad)
मोसाद (Mossad) इज़राइल की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इज़राइल की गुप्तचर संस्था मोसाद (Mossad) अमन (सैन्य खुफिया) और शिन बेट (आंतरिक सुरक्षा) करती है। मोसाद (Mossad) खुफिया जानकारी एकत्र करने, गुप्त अभियान और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए जिम्मेदार है। इसके निदेशक सीधे और सिर्फ प्रधानमंत्री को जवाब देते हैं। इंटेलीजेंस और स्पेशल ऑपरेशंस संस्थान, जिसे मोसाद (Mossad) के नाम से जाना जाता है। यह अमन (सैन्य खुफिया) और शिन बेट (आंतरिक सुरक्षा) के साथ, इज़राइली खुफिया समुदाय में मुख्य संस्थाओं में से एक है। मोसाद (Mossad) खुफिया जानकारी एकत्र करने, गुप्त अभियान और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए जिम्मेदार है। इसके निदेशक सीधे और सिर्फ प्रधानमंत्री को जवाब देते हैं। इसका वार्षिक बजट लगभग ₪10 बिलियन (US$2.73 बिलियन) होने का अनुमान है और अनुमान है कि इसमें लगभग 7,000 लोग कार्यरत हैं, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी जासूसी एजेंसियों में से एक है। मोसाद (Mossad) गुप्तचर एजेंसी इज़राइल की ओर से दुनिया के कई देशों के खिलाफ आपरेशंस के लिए एक साथ एक ही समय काम कर रही है।
भारत की गुप्तचर एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Raw)
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार भारत की गुप्तचर एजेंसी ( Raw) बहुत अच्छी संस्था है। यहां भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Raw) के बारे में जानकारी दी जा रही है। रॉ का प्राथमिक उद्देश्य विदेशी खुफिया जानकारी इकट्ठा करना, आतंकवाद का मुकाबला करना और भारत के नीति निर्माताओं को सलाह देना है। रॉ का मुख्यालय नई दिल्ली में है। सितंबर सन 1968 में रामेश्वरनाथ काव ने रॉ की स्थापना की थी। रॉ एजेंट सामान्य जीवनशैली जीने के लिए गुप्त रूप से और कभी-कभी भेष बदलकर काम करते हैं। रॉ एजेंट बनने के लिए, किसी को भी एसएससी की सीजीपीई (संयुक्त स्नातक प्रारंभिक परीक्षा), ‘ग्रुप ए’ सिविल सेवा परीक्षा और रॉ परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। हालांकि रॉ पर अपने पड़ोसियों, खासकर पाकिस्तान के मामलों में दखल देने का आरोप लगता रहा है, लेकिन रॉ इन आरोपों से इनकार करता है। रॉ का प्रमुख संसदीय निरीक्षण के बिना भारत के प्रधानमंत्री के अधिकार में है। रॉ के प्रमुख को कैबिनेट सचिवालय में सचिव (अनुसंधान) के रूप में नामित किया गया है। वे दैनिक आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को रिपोर्ट करते हैं।
अमेरिका की गुप्तचर एजेंसी सीआईए ( CIA)
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार सीआइए या सेन्ट्रल इन्टेलीजेंस एजेंसी ( CIA) संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय सरकार के अंदर कार्य करने वाली असैनिक गुप्तचर संस्था है। इसका मुख्य कार्य सार्वजनिक नीति निर्माताओं के मार्गदर्शन के लिए विश्व की सरकारों, औद्योगिक संगठनों व व्यक्तियों के बारे में गुप्त सूचनाएं एकत्रित करना और उनका विश्लेषण करना है। सीआईए की विरासत स्वतंत्रता के लिए समर्पित बहादुर व्यक्तियों में से एक है, जो हमारे खुफिया मिशन को सरलता और धैर्य के साथ पूरा करते हैं। अपने देश की रक्षा करना इसके मिशन के केंद्र में है। अतीत, वर्तमान और भविष्य। द्वितीय विश्व युद्ध की जड़ों से लेकर आज तक, हम सरलता, बहादुरी और शांत बलिदान की परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसने हमें दुनिया की प्रमुख विदेशी खुफिया एजेंसी बना दिया है।