सीएम धामी ने ‘उत्तराखंड के गांधी’ की 99वीं जन्म जयंती पर उन्हें पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी

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देवभूमि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘उत्तराखंड के गांधी’ यानि इंद्रमणि बडोनी जी की 99वीं जन्म जयंती पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। ज्ञात हो कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन में अहम योगदान देने वाले ‘उत्तराखंड के गांधी’ नाम से इंद्रमणि बडोनी जी विख्यात हैं।

इंद्रमणि बडोनी, जिन्हें ‘उत्तराखंड के गांधी’ के रूप में जाना जाता है, का जन्म 24 दिसंबर 1925 को टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. सुरेशानन्द बडोनी था। गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए वे नैनीताल और देहरादून गए। उनकी युवावस्था में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया। बडोनी जी ने डीएवी कॉलेज, देहरादून से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर रोजगार की तलाश में बम्बई गए। लेकिन स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा, जहां उन्होंने समाज सुधार के कार्यों में रुचि ली।

इसके बाद सन्‌ 1953 में गांधीजी की शिष्या मीरा बेन टिहरी के गाँवों का दौरा कर रही थीं। इस दौरान उनकी मुलाकात इंद्रमणि बडोनी से हुई, और मीरा बेन की प्रेरणा से बडोनी ने सामाजिक कार्यों में अपनी भूमिका को समझा और पूरी लगन से समाज सेवा में जुट गए। 1961 में वे गाँव के प्रधान बने और बाद में जखोली विकास खंड के प्रमुख भी बने।

राजनीतिक यात्रा: बडोनी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देवप्रयाग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और 1977 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस और जनता पार्टी के प्रत्याशियों को पराजित किया। पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने सड़कों, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पेयजल जैसी योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया। उनकी पहाड़ी संस्कृति और परंपराओं के प्रति गहरी रुचि थी, और उन्होंने मलेथा की गूल तथा वीर माधो सिंह भंडारी की लोक गाथाओं का मंचन दिल्‍ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी किया।

पृथक उत्तराखंड राज्य का आंदोलन: इंद्रमणि बडोनी ने वन अधिनियम के विरोध में आंदोलन का नेतृत्व किया। 1988 में, उन्होंने तवाघाट से देहरादून तक 105 दिनों में 2000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने सैकड़ों गाँवों और शहरों का दौरा किया और पृथक उत्तराखंड राज्य की अवधारणा को घर-घर तक पहुँचाया।

उत्तराखंड आंदोलन का सूत्रधार: 1992 में मकर संक्रांति के अवसर पर बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में उन्होंने जन समर्थन जुटाया और इसी वर्ष गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया। 1994 के राज्य आंदोलन में उन्होंने आमरण अनशन किया, जिससे उत्तराखंड राज्य की मांग को और अधिक प्रबलता मिली। बीबीसी ने उनके आंदोलन को सराहते हुए कहा, “यदि आपने जीवित एवं चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड की धरती पर चले जाएं।”

त्याग और बलिदान: 1994 में खटीमा और मसूरी हत्याकांड के विरोध में हुए आंदोलन में बडोनी को गिरफ्तार कर सहारनपुर जेल भेजा गया। उस समय मुजफ्फरनगर में हुए जघन्य कांड के बाद दिल्ली में हुई विशाल रैली में बडोनी जी ने उत्तराखंड के लिए अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया।

जीवन का अंतिम समय: 1999 तक बडोनी जी ने अपने वृद्ध और कमजोर शरीर के बावजूद उत्तराखंड राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष जारी रखा। 18 अगस्त 1999 को उत्तराखंड का यह वीर सपूत दुनिया से विदा हो गया। उनकी इस महान यात्रा को उत्तराखंड की जनता ने हमेशा याद रखा, और उन्हें ‘उत्तराखंड के गांधी’ के रूप में सम्मानित किया।

 

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