#ईसा सूत्र: जिनके वचनों से यह धरा आनंदित हो जाए
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात प्रभु ईसा मसीह की…
जिनके वचनों से यह धरा आनंदित हो जाए
प्रभु ईसा मसीह के सर्वप्रिय शिष्य थे पीटर। उन्होंने उनके पास आकर कहा – प्रभु ! कितनी बार कोई अपराध करता जाएगा और मैं उसे क्षमा करता जाऊंगा ? सात बार ? ईसा मसीह ने कहा कि मैं तुमसे सात बार के लिए नहीं कह रहा हूं बल्कि सत्तर गुना सात बार के लिए कह रहा हूं – मैथ्यू
कितनी बार हे मानव! मैं तुममें से प्रत्येक को प्रतिदिन मैं क्षमा करता हूं ?
ईसा मसीह ने प्रथम उपदेश कह कर दिया कि मनुष्य के सबसे बड़े दाता द्वारा मुक्त हस्त से दी गई हवा में पहला श्वास लेते ही उस दाता से प्रेम करना मनुष्य का कर्तव्य बन जाता है, और ऐसा कर्तव्य जिसमें स्वयं ही उसका उद्धार होता है। जिस दिव्य लीला की योजना के कारण तूल जगत अस्तित्व में आया है, उस योजना में स्रष्टा और सृष्ट जीव के बीच आदान- प्रदान निहित है। जो एकमात्र भेंट मानव सृष्टा को प्राप्त कर सकता है। वह है – प्रेम ।
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यह प्रेम सृष्टा की अंतहीन वर्षा कराने के लिए काफी है। तुमने मुझे और संपूर्ण राष्ट्र को भी लूट लिया है। अपनी उपज का दशमांश इस भंडार में लाओ ताकि मेरे घर में खाद्य उपलब्ध रहे, और अभी यह सिद्ध करके दिखाओ, प्रभु ने कहा कि यदि मैं तुम लोगों के लिए स्वर्ग के झरोखे न खोल दूं और उनमें से इतने आशीर्वादों की वर्षा न कर दूं कि तुम लोगों के पास इसे प्राप्त करने की जगह भी न बचेगी। – बाइबिल
ईश्वर प्रेम है, इसलिए सृष्टि की उसकी योजना प्रेम पर ही आधारित हो सकती है। पांडित्यपूर्ण स्पष्टीकरणों की अपेक्षा क्या यह सीधा – सरल विचार मनुष्य के हृदय को सांत्वना प्रदान नहीं करता? सत्य के मर्म तक पहुंचने वाले प्रत्येक संत ने यही कहा है कि ईश्वर ने सृष्टि की पूरी योजना बनाई है और यह योजना अत्यंत सुंदर और आनंद से भरपूर है।
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सूत्र यह है कि करुणा, क्षमा और प्रेम ईसा मसीह की मूल सीखें हैं। उनको उतार लिया तो जीवन धन्य न हो जाए।
शुभ मंगल
# ईसा सूत्र