# प्रशंसा सूत्र: आज बात प्रशंसा की …
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात प्रशंसा की …
यह वास्तविक गुणों की हो तो ही प्रभावी
प्रशंसा और चापलूसी में बड़ा बारीक सा भेद है। किंतु यदि दोनों के लिए शब्दकोश में पृथक – पृथक शब्द हैं तो उसके अर्थ भी तो पृथक – पृथक ही होंगे। प्रशंसा भला किसे नहीं सुहाती ? उसका आनंद अलबेला है। यदि प्रशंसा करने वाला आपका ईमानदार प्रशंसक हैं तो फिर वह आपकी वास्तविक उपलब्धि और गुणों की ही प्रशंसा करेगा। जैसे कोई किसी की विद्वता को लेकर कहता है कि आपके जैसे विद्वान व्यक्ति बहुत कम मिलते हैं। कोई कहता है कि आपकी सहृदयता मन को छू जाती है वह उसी व्यक्ति के लिए कहा जाता है जो प्रज्ञावान हो करुणामय हो तब तो ठीक है अन्यथा की स्थिति में यह चाटुकारिता ही तो होगी।
हमारे समाज में किसी की प्रशंसा करना, किसी के बारे में अच्छा बोलने या लिखने को अक्सर संदेह की दृष्टि से ही देखा जाता है। उसकी अधिक प्रमाणिकता रहती नहीं है। आम ख्याल यही बनता है कि अवश्य ही प्रशंसा करने वाला कोई स्वार्थ सिद्धि या कामना के वशीभूत होकर प्रशंसा करता है इसलिए लोग उस पर अधिक भरोसा करते नहीं हैं। और यदि प्रशंसा करने वाला उसी व्यक्ति के आभामंडल से जुड़ा हुआ है, उसका समीपस्थ है, उपकृत है तब बात और भी संदिग्ध लगने लगती है।
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आमतौर पर राजनीतिक व्यक्तियों की प्रशंसा में अतिरेक कर दिया जाता है। कोई उन्हें प्रातः स्मरणीय कहता है तो कोई आराध्य बता देता है और कोई अवतारी पुरुष ही। बस यहीं से प्रशंसा चाटुकारिता में बदल जाएगी। आप यदि किसी गायक से कहें कि आपका कंठ कितना सुरीला है , कोई अभिनेता से उसके अभिनय की, खिलाड़ी से उसके खेल की, सफाईकर्मी से उसकी सफाई के तरीके की, माली से उसकी बगिया की, किसी गृहिणी से सुस्वादु भोजन की प्रशंसा करेंगे तो उसका प्रभाव अलग होता है। वह भी तब जब उनके कार्य में वैसी गुणवत्ता हो। अन्यथा की स्थिति में सब खारिज कर दिया जाएगा। चाटुकारिता ही होगी।
सूत्र यह है कि प्रशंसा को सदैव नकारात्मक और संदेहास्पद दृष्टि से मत देखिए। यदि आसपास कोई प्रमाणिक व्यक्ति दिखाई दे तो अविलंब उसकी प्रशंसा कर दीजिए किंतु वास्तविक गुणों की। एक बात और किसी की प्रशंसा हेतु जितना उदार हृदय चाहिए आलोचना और निंदा हेतु उतना ही क्षुद्र।
शुभ मंगल
# प्रशंसा सूत्र