#व्यवहार सूत्र 02: आज बात भ्रष्टाचार की…
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात भ्रष्टाचार की…
अपना कार्य ठीक से न करना भी भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार को लेकर एक आम धारणा अर्थ से जुड़ी हुई है। आर्थिक भ्रष्टाचार पर अक्सर खूब चर्चा भी होती है। मीडिया में यही नुमाया भी होता है। किंतु आर्थिक भ्रष्टाचार से कहीं अधिक दूसरे किस्म के भ्रष्टाचार भी हैं। ढेर सारे अध्यापकों को जानता हूं जो महीनों क्लास में नहीं जाते। बच्चे उम्मीद के साथ आते हैं और खाली लौट जाते हैं। जो कुछ थोड़ा – बहुत पढ़ाते भी हैं वह एकदम स्तरहीन। ऐसे सरकारी डाक्टरों को भी देखा है जो अस्पताल में मरीजों के उपचार में ढील बरतते हैं। जब उन्हें ड्यूटी पर होना चाहिए उस समय वे स्वयं का क्लीनिक संचालित कर रहे होते हैं।
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एक इंजीनियर तय समय पर गुणवत्ता युक्त काम करके नहीं दे रहा तो यह भी भ्रष्टाचार ही तो कहलाएगा। अखबार में पत्रकार यदि ठीक विषय नहीं उठा रहा या राग- द्वेष से प्रेरित होकर खबर लिख रहा है तो वह भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में न आएगा। एक पुलिसवाले की कानून- व्यवस्था को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी है और यदि वह उसे बनाए रखने में सहयोग करने की बजाय उसे बिगाड़ने पर आमादा है तो उसे आप क्या कहेंगे? वह भी तो भ्रष्टाचारी ही हुआ न। सफाईकर्मी ठीक से सफाई न करे, माली बगिया न सींचे तो फिर ये सभी भी तो भ्रष्टाचारी ही हुए न । यहां तक की माता – पिता यदि अपनी संतान की परवरिश से विमुख हो जाते हैं उन्हें संस्कारित और शिक्षित नहीं करते तो यह भी एक किस्म का भ्रष्टाचार ही तो है।
हमारे जनप्रतिनिधियों का सदन से अनुपस्थित रहना, कोई प्रश्न न उठाना, जनहित के मुद्दों पर मौन हो जाना भी तो भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही आएगा। इन सभी का आखिरी मंतव्य यह है कि यदि आप अपने दायित्व का ठीक से निर्वाह नहीं कर रहे तो यह भी कदाचार की श्रेणी में ही तो आएगा। आप जितना दे सकते थे उतना नहीं दे रहे तो यह भी कदाचार ही हुआ न। इस दृष्टि से देखें तो भ्रष्टाचार के अनेकानेक आयाम हैं। किसी भी प्रकार का भ्रष्ट आचरण आता तो भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही है।
सूत्र यह है कि जीवन में भ्रष्टाचार अनेक किस्म का है हम जो कर सकते हैं या हमको जो करना चाहिए वह नहीं कर रहे तो हम सब भी तो भ्रष्ट ही कहलाएंगे।
शुभ मंगल
# व्यवहार सूत्र