जया एकादशी 2025: भगवान विष्णु की कृपा का विशेष दिन

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  • जया एकादशी इस बार मृगशिर नक्षत्र और वैधृ योग में पड़ेगी। मृगशिरा नक्षत्र ज्ञान व सत्य की खोज से संबंध रखता है और वैधृ योग भूमि, संपत्ति से जुड़े कार्यों व खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है।

 

माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर भगवान श्रीविष्णु का आशीर्वाद मिलता है, साथ ही माता लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है। वैदिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्रीविष्णु का स्मरण और व्रत करने से पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है, साथ ही ‘बह्महत्या’ के पाप से मुक्ति मिल जाती है।

ये है कथा

प्राचीन काल में नंदन वन में उत्सव हो रहा था और इसमें सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि पधारे थे। उत्सव में संगीत और नृत्य का भी आयोजन किया गया था। इस दौरान माल्यवान नाम का एक गंधर्व गायक और पुष्यवती नाम की एक नृत्यांगना नृत्य कर
रही थी। नृत्य के दौरान दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए और अपनी मर्यादा भूल गए,जिस वजह से उत्सव फीका पड़ने लगा। ऐसे में उनके इस व्यवहार से इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग लोक से निष्कासित करके मृत्यु लोक यानी पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया। इसके कारण दोनों पिशाचों का जीवन व्यतीत करने लगे। संयोगवश एक बार माघ शुक्ल की जया एकादशी को दोनों ने भोजन नहीं किया और पीपल के पेड़ के नीचे पूरी रात गुजारी, साथ हो गलती का पश्चाताप करते हुए भविष्य में गलती न दोहराने का प्रण लिया। उन्हें यह बात मालूम नहीं थी कि उस दिन जया एकादशी है और अनजाने में उन्होंने जया एकादशी का व्रत कर लिया।फलस्वरूप भगवान श्री हरिविष्णु की कृपा से दोनों पिशाच योनि से मुक्ति पा सके। इस व्रत के प्रभाव से दोनों फिर से मृत्यु लोक से स्वर्ग लोक में पहुंच गए।

जया एकादशी 2025 महत्व (Jaya Ekadashi 2025 Significance)

जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। साथ ही आरोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वहीं व्यक्ति बैकुंठ धाम प्राप्त करता है। जैसा की इस एकादशी के नाम से पता चल रहा है, यह व्रत सभी कार्यों में विजय दिलाता है और बेहद कल्याणकारी माना गया है। इस व्रत में दान करने का फल संपूर्ण यज्ञों के बराबर प्राप्त होता है। बता दें कि जया एकादशी व्रत को बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति सबसे जघन्य पापों यहां तक कि ब्रह्महत्या से भी मुक्त कर सकता है।

 ब्रह्महत्या से मुक्ति का व्रत : जया एकादशी के महत्व और कथा का वर्णन पद्म पुराण के उत्तर खंड में विस्तार से किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी के महत्व के बारे में बताया था कि यह व्रत ‘ब्रह्महत्या’ जैसे पाप से भी मुक्ति दिला सकता है।

 कैसे करें पूजा : इस व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साफ-सफाई करके स्नान करना चाहिए। फिर पूजा स्थान को साफ करके गंगा जल का पूरे घर में छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को स्थापित करके विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। साथ ही भगवान विष्णु के सहस्रनाम का पाठ भी करें। भगवान विष्णु को नारियल, फल, अगरबती, फूल और तुलसीपत्र जरूर अर्पित करें, क्योंकि तुलसीपत्र श्रीहरि को सबसे प्रिय है। इसके अलावा पूजा के दौरान ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्र का जाप करें। अगले दिन पूजा के बाद व्रत का पारण करें।

 

Ekadashi 2025: साल 2025 में कब कौन सी एकादशी पड़ेंगी

: राहु काल काल से बचें अभिजीत मुहूर्त को चुनें

जया एकादशी के दिन मृगशिरा नक्षत्र और वैधृ योग रहेगा। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मृगशिरा नक्षत्र जातक के ज्ञान और सत्य को खोज से संबंध रखता है। इस दिन इनसे संबंधित कार्य करना विशेष फलदाग्री मान गया है। साथ ही वैधृ योग भूमि, संपत्ति से जुड़े कायों और खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन राहु काल प्रातः 09:50 से लेकर प्रात: 11:13 बजे तक रहेगा। राहु काल में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:13 से 12:57 बजे तक रहेगा। अभिजत मुहूर्त को शुभ समय माना जाता है।

जया एकादशी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त (Jaya Ekadashi 2025 Date and Shubh Muhurat)

वैदिक पंचांग के मुताबिक माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 07 फरवरी को रात 09 बजकर 27 मिनट पर हो रहा है। वहीं एकादशी तिथि का अंत 08 फरवरी को रात 08 बजकर 14 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि को आधार मानते हुए जया एकादशी 8 फरवरी को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, जया एकादशी व्रत पारण का समय 09 फरवरी को सुबह 07 बजकर 04 मिनट से लेकर 09 बजकर 17 मिनट तक है।

जया एकादशी का शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 05 बजकर 21 मिनट से 06 बजकर 13 मिनट तक

विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 26 मिनट से 03 बजकर 10 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त – शाम 06 बजकर 03 मिनट से 06 बजकर 30 मिनट तक

निशिता मुहूर्त – रात 12 बजकर 09 मिनट से 01 बजकर 01 मिनट तक

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