Kullu Ka Dussehra: 310 साल तक देवी-देवता अपने खर्चे पर यहां दशहरा मेले में आते रहे

0

कुल्लू। 374 साल पुराना अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है। भगवान रघुनाथ कौ मूर्ति को 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था। रघुनाथ के सम्मान में देवी-देवताओं का महाकुंभ कुल्लू दशहरा मनाया जा रहा है। तब से लेकर 1960 तक जिले के सैकड़ों देवी-देवता अपने ही खर्चे पर दशहरा उत्सव में भाग लेते आए हैं।

दशहरा के लिए देवता के देवलू घर से ही राशन लेकर आते थे। दूरदराज से आने वाले देवी-देवताओं को आने-जाने में 12 से 15 दिनों का समय लगता था। अब सड़कों की सुविधा होने से देवताओं को दोनों तरफ की आवाजाही में एक हफ्ते का ही समय लगता है। 1960 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने देवी-देवताओं को नजराना राशि भेंट की थी।

बताया जाता है कि उस वक्त दशहरा में पहुंचे करीब 200 देवताओं को 10,000 रुपये बतौर नजराना दिया गया था। प्रत्येक देवता को यह राशि 20 से लेकर 30 रुपये तक वितरित हुई थी। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा की पहचान देवी-देवताओं से है और महाकुंभ को देखने के लिए देश-विदेश से भी बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं।

कई विदेशी शोधकर्ता भी विशेष रूप से कुल्लू पहुंचते हैं। इस साल दशहरा उत्सव समिति ने 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया है। जिले के बाह्य सराज, आनी, निरमंड और सैंज की शांघड़ घाटी के दूरस्थ इलाकों के देवी-देवता 150-200 किमी का पैदल सफर कर पहुंचते हैं। जिला देवी-देवता कारदार संघ दोत राम ठाकुर ने कहा कि 310 सालों तक देवताओं को कोई नजराना नहीं मिलता था।

अध्योध्या से दशमी पर कुल्लू पहुंची थीं मूर्तियां
सन 1650 में कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी नग्गर से सुल्तानपुर स्थानांतरित की। एक दिन राजा को किसी दरबारी ने सूचना दी कि टिप्परी गांव के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास सुच्चे मोती हैं। राजा ने उससे मोती मांगे परंतु उसके पास मोती नहीं थे। राजा के भय से दुर्गादत ने अपने परिवार सहित स्वयं को अग्नि में जला दिया था।

इस कारण ब्रह्म हत्या के श्राप के निवारण के लिए राजा जगत सिंह के राजगुरु तारानाथ ने राजा को सिद्धगुरु कृष्णदास पयहारी से मिलने को कहा। पयहारी बाबा ने अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय निर्मित राम-सीता की मूर्तियो को कुल्लू में प्रतिष्ठापित करने को कहां। ये मूर्तियां मकराहड़, मणिकर्ण, हरिपुर, नग्गर होते हुए आश्विन की दशमी तिथि को कुल्लू पहुंचीं, जहां भगवान रघुनाथ की अध्यक्षता में देवी-देवताओं का बड़ा यज्ञ हुआ। इसके बाद से कुल्लू का दशहरा मनाया जाने लगा।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *