उस्ताद जाकिर हुसैन: जिनके कान में आयत नहीं तबला सुनाया गया

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@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…

नमस्कार,

आज बात उस्ताद जाकिर हुसैन की…

वह श्वेत- श्याम टेलीविजन का जमाना था , जब ताजमहल चाय के विज्ञापन में ऊर्जा से लबरेज जाकिर हुसैन को हमारी पीढ़ी के लोगों ने देखा है। दमक के साथ तबले की ताक धिना- धिन! वह तेज पुंज अब चला गया। अपने एक साक्षात्कार में जाकिर हुसैन के पिता अल्ला रक्खा ख़ां साहब ने बताया था कि जन्म के समय उनके कान में मैंने तबले की थाप सुनाई थी, कोई आयत नहीं। उनका दृढ़ विश्वास था कि तबले की यह ताल ही मेरी आयत हैं।

कुल जमा तीन वर्ष के रहे होंगे जब उनके सुकोमल हाथों में तबला थमा दिया गया। शायद यह सब जादुई असर था कि वह अबोध बच्चा कालांतर में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तबला वादकों की कतार में शुमार हुआ। और अपनी अनथक साधना से बन गए उस्ताद जाकिर हुसैन! तबले को लेकर ऐसा जुनून की अंगुलियां और गदेलियां कहीं भी कंपित हो उठतीं। कहीं भी कुछ भी बजाने का मन कर देता। कोई स्कूल की मेज, टेबल, रसोईघर का प्लेटफॉर्म या ट्रेन की सीट ही क्यों न हो।

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उन्होंने तबले को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर वह मान – सम्मान दिलाया जिसकी किसी ने कल्पना भी न की होगी। उनके सहयोग से रचित एल्बम ‘ प्लेनेट ड्रम ‘ में भारतीय और पाश्चात्य ताल विद्या का अनोखा संगम था जिसके आठ लाख से ज्यादा रिकॉर्ड हाथों – हाथ खरीद गए। वे महज 37 वर्ष की आयु में भारत के चौथे सबसे बड़े सम्मान ‘ पद्मश्री ‘ से नवाजे गए। फिर 51 साल की अल्पायु में ही भारत सरकार के गौरवशाली पद्मविभूषण से सम्मानित हुए। यह उनकी अप्रतिम मेधा और फन के प्रति अगाध निष्ठा का ही तो परिणाम था। उनकी महक राष्ट्रीय सरहदों में बंधी नहीं। एक- दो नहीं तीन ग्रैमी अवार्ड जीतकर उन्होंने मानो इतिहास ही रच दिया।

जो थोपी जाए वह भाषा कैसे?

मैं आरंभ से इस बात को कहता हूं कि मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म है। कलाकारों का तो कोई धर्म होता नहीं है। उनकी कला ही सबसे बड़ा धर्म है। जाकिर हुसैन साहब भी भगवान शिव हों या विघ्न विनाशक गणेश सभी के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। उनके तबले का हिंदू – मुसलमान सभी ने भरपूर आनंद लिया। थिरकने को मजबूर कर दिया। उन्हें उस्ताद की उपाधि से विभूषित करने वाले सितार की किंवदंती बन चुके पंडित रविशंकर थे। उस्ताद जाकिर हुसैन का जाना एक युग का अवसान सरीखा है। दरअसल यह पोस्ट कल ही करनी थी किन्तु पुष्प – अपुष्ट खबरों के बीच मन को दिलासा थी कि शायद अभी उनका तबला और बजेगा। 73 वर्ष जिए और खूब कमाल का जिए। यही तो जीवन की सार्थकता है कि आप अपनी गंध कहां तक बिखेर पाते हैं।

LIFE COACH Dr ASHISH DWIVEDI

सूत्र यह है कि किसी कला के साधक बनने का सुख सबसे अलहदा है। उसमें अपने को संपूर्णता से जिसने समर्पित कर दिया वह ईश्वर के भी निकट हो जाता है। उस्ताद जाकिर हुसैन उन्हीं में से एक हैं।
वाह उस्ताद वाह!

शुभ मंगल

#जीवन सूत्र

 

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