जो थोपी जाए वह भाषा कैसे?

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@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…

नमस्कार,

आज बात भाषा की….

चौदह सितंबर हिंदी दिवस है। भारत में हिंदी की मान्यता और स्वीकार्यता नि:संदेह सर्वाधिक है। मुझे स्मरण है जब 2006 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में जनसंचार एवं पत्रकारिता में रिफ्रेशर कोर्स करने गया था तब देश के विभिन्न प्रांतों के प्रतिभागी आए हुए थे। गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश से हम दो- चार लोग थे। आरंभ में मुझे हिचक हुई कि इन सभी से संवाद भला कैसे होगा? अपनी तो हिंदी ही संप्रेषण की भाषा है। टूटी- फूटी अंग्रेजी। वह भी इतनी कि काम भर चल पाता है। फिर भला यह लोग मेरी बात को समझ भी सकेंगे कि नहीं। एक – दो दिन इसी उधेड़बुन में रहा।

किंतु शीघ्र ही यह पता चल गया कि सभी के सभी हिंदी समझते भी हैं और बोल भी लेते हैं। हिंदी गाने तो जैसे उनके पसंदीदा हैं एक कर्नाटक के नरसिह मूर्ति साहब थे जिनका ‘ ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना ‘ प्रिय गीत था। जिसे वह डूबकर गाते। रम्या, सुब्रमण्यम , सपना, जगदीश, उमा सभी दक्षिण के थे किंतु एक पल को यह महसूस नहीं हुआ कि मैं किन्हीं गैर हिंदी भाषियों के बीच हूं। फिर याद आया बालीवुड पर तो दक्षिण की बालाओं का आरंभ से ही राज रहा है। वैजयंती माला से हेमा मालिनी, रेखा होते हुए ऐश्वर्या और दीपिका पादुकोण तक बड़ी सघन परंपरा है। इन सभी की हिंदी देखिए जरा? स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर भी तो मूलतः मराठी भाषी रहीं उनकी हिंदी तो हम समूचे हिंदी भाषियों के लिए जैसे मानक है। इतने सुरमयी और पवित्र उच्चारण की क्या कहिए?

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इसके अलावा अभिनेता ,खिलाड़ी, संगीतकार, व्यापारी, राजनेता, साहित्यकार इत्यादि यह सभी यदि हिंदी पट्टी के न भी हों तब भी हिंदी में आप – हम से ज्यादा अपने को अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य रखते हैं। उनमें से कुछ से तो आपको ईर्ष्या भी हो सकती है। फिर प्रश्न यह कौंधता है कि हम हिंदी भाषी आखिर कब तक अपनी खूंटी से चिपके रहेंगे। भारत की किसी और भाषा में हमें संवाद तो ठीक अभिवादन करना भी नहीं आता। हमें तो बस यही लगता है कि आप हमारी भाषा समझिए क्योंकि हम बहुसंख्यक हैं।

दरअसल यह थोपना ही क्लेश का कारण बनता है। हमें यह बात अच्छे से समझ लेना चाहिए कि भाषा संवाद का विषय है यह किसी भी सूरत में विवाद का विषय न बन जाए। हमारे सागर में गुजराती भाषी चंचला दवे मेडम , तेलगु भाषी कृष्णा राव सर हिंदी में सृजन कर रहे हैं। यह सूची विस्तारित है। और हम हिंदी भाषी अपने दड़बों में जा बैठे हैं। अपनी भाषा की महानता के गीत गाना बुरा नहीं है संकट है दूसरी भाषा के प्रति क्षुद्रता पालना।

LIFE COACH Dr ASHISH DWIVEDI

सूत्र यह है कि प्रत्येक को अपनी भाषा पर अभिमान है इसलिए हिंदी दिवस पर किसी की भाषा को दोयम मत बताइए। हमारा बड़प्पन तो तब है जब दूसरी भाषाओं के प्रति भी हम आदर भाव रखें।

शुभ मंगल

#भाषा सूत्र

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