Uttarakhand: 54 से ज्यादा महिलाओं ने रोमांच और रफ्तार के लिए चुनी ड्राइविंग

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  • महिलाएं बनी कैब ड्राइवर

आमतौर पर महिला कल्याण के नाम पर गृहणियों को आमतौर पर आचार, पापड़ बनाने या सिलाई-कढ़ाई से जुड़े कामों की सलाह दी जाती है, लेकिन महिलाओं का एक वर्ग ऐसा भी है जिसने अपनी जिंदगी को रोमांच और रफ्तार देने के लिए ड्राइविंग का पेशा चुना है।

वहीं इस संबंध में सहेली ट्रस्ट की संरक्षक श्रुति कौशिक जो उनके सपनों को पंख लगाने में सहायक बनी  का कहना है कि, आचार-पापड़, सिलाई-कढ़ाई व अन्य दूसरे कार्यों से लाखों महिलाओं का जीवन संवरा है, लेकिन सभी महिलाओं को इन कार्यों से न तो पर्याप्त आर्थिक सहायता मिलती है, न ही रुचि रखती हैं। उनकी एनजीओ सहेली ट्रस्ट घरेलू हिंसा से परेशान महिलाओं के लिए स्व रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती है।

एनजीओ ने साल 2018 में महिला सवारियों के लिए महिला ड्राइवरों वाली शी-कैब सेवा शुरू की। तब से परिवहन विभाग के साथ मिलकर 54 महिलाओं को ड्राइविंग का प्रशिक्षण दिला चुकी हैं। उत्तराखंड की पहली महिला कॉमर्शियल ड्राइवर ममता ने उनके एनजीओ के जरिए प्रशिक्षण लिया। ये सभी ड्राइवर आज शी-कैब, एफआरआई व अन्य संस्थानों के लिए ड्राइविंग करके आर्थिक तौर पर सशक्त हो चुकी हैं।


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जल्द ही ये कोर्स भी कराएंगे

श्रुति कौशिक के अनुसार शहर में प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन की बड़ी मांग है। इसलिए जल्द ही महिलाओं के लिए प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेंगे। ड्राइविंग के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाने की कवायद भी जारी रहेगी। 

पहली महिला कॉमर्शियल ड्राइवर जो चार धाम यात्रा करवाती हैं 

वहीं खुद को राज्य की पहली महिला कॉमर्शियल ड्राइवर बताने वाली ममता पुजारी कहती हैं कि वह लोगों को अपनी खुद की टैक्सी से चार धाम यात्रा कराती हैं। वह सिर्फ महिला सवारियों को लेकर चलती हैं, जिससे उन्हें भी सुरक्षा का अहसास रहता है। उनकी तरह ही 30 वर्षीय यशोदा और 40 साल की राधा भी ड्राइविंग कर जीविका चला रही हैं।

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