# महिला सूत्र @Women’s Day: अर्धनारीश्वर की परिकल्पना का सत्य
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज महिला दिवस की …
अर्धनारीश्वर की परिकल्पना का सत्य
हम सभी इस सत्य और तथ्य को भली-भांति जानते हैं कि आधे पुरुष और आधी महिला से ही हमारी रचना हुई है। इसलिए पुरुषों में आधी महिला और महिलाओं में आधा पुरुष होता है। जब कभी किसी पुरुष में महिला अंश पचास फीसद के ऊपर पहुंचता है तो हमें उसके व्यक्तित्व में स्त्रैण भाव दिखाई देता है और जब किसी महिला में पुरुष अंश अधिक प्रभावी होता है तो पुरुषत्व की मात्रा अधिक दिखाई देगी। उसे मर्दानी भी कहा जाता है।
भारतीय इतिहास पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि उस समय महिलाएं अधिकार संपन्न थीं और वो स्वाभिमान से जीती रही हैं। त्रेतायुग में जानकी जी की विद्वता को भला कौन नहीं जानता। उस कालखंड की परम विदुषी गार्गी से ऋषि याज्ञवल्क्य का संवाद हुआ था तो कैसे उन्होंने अपने अकाट्य तर्कों से याज्ञवल्क्य को निरुत्तर कर दिया था। स्वेच्छा से वर चुनने का अधिकार भी तो उनके पास था। फिर द्वापर में द्रौपदी भी तो नारी शक्ति का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरीं थीं। उनकी तेजस्विता से भला कौन अनभिज्ञ होगा?
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नारियों को भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया जाता रहा है। एक से बढ़कर एक विदुषियों और वीरांगनाओं से भारतीय इतिहास भरा हुआ है। आदि शंकराचार्य और आचार्य मंडन मिश्र के मध्य हुए शास्त्रार्थ की निर्णायक भी तो एक नारी उभया भारती ही थीं। कालांतर में देवी अहिल्या, रानी दुर्गावती, रानी अवंतीबाई और रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य से भला कौन परिचित नहीं है। नारी शक्ति को केंद्र में रखकर ही तो नवरात्रि का उपासना पर्व रचा गया है। शक्ति का पर्याय नारी को ही तो माना गया है। दरअसल पुरुष और नारी न तो एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं और न ही विरोधी। यह सहचरी है।
सूत्र यह है कि नारी सदैव नारायणी रही है। यह भी सत्य है कि उसके कार्य का और गुणों का वैसा प्राकट्य हो नहीं सका जो होना चाहिए था अन्यथा समाज की दशा और दिशा कुछ और ही होती।
शुभ मंगल
# महिला सूत्र
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