#मन सूत्र: इसके बगैर सब जगह असफल
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात मन की तैयारी की …
इसके बगैर सब जगह असफल
किसी भी चीज में सबसे अहम होती है – मन की तैयारी! इसके बगैर संसार की कोई भी लड़ाई जीती नहीं जा सकती। आप मैदान पर उतर रहे हैं , हाथ में बल्ला है , पैड बांध लिए हैं, हेलमेट लगाए हैं किंतु यदि मन नहीं है तो फिर एक रन न बना पाएंगे। परीक्षा है आपने रात भर पढ़ाई कर ली है, यूनिफॉर्म इस्त्री कर ली है , जूते पाॅलिश कर लिए हैं किंतु मन यदि परीक्षा देने राजी नहीं है तो फिर क्या कीजिएगा ? मंदिर पहुंचने को सज हैं, प्रसाद भी खरीद लिया, चढ़ावे हेतु दक्षिणा भी रख ली किंतु वहां भी मन अनुपस्थित है तो भला क्या होगा ?
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सामने सुस्वादु भोजन है , छप्पन भोग हैं, खुश्बू महक रही है किंतु मन नहीं बन रहा खाने का तो क्या करेंगे। घूमने के लिए गाड़ी तैयार कर ली है, बैग भी जमा लिया गया किंतु फिर वहीं मन ने साथ छोड़ दिया तो काहे की सैर- सपाटा। किसी मीटिंग को अटैंड करने का मन , कुछ पढ़ने – लिखने का मन, खाने- खेलने का मन, लड़ने का मन । न जाने कितने तरह के काम सिर्फ मन की मनोदशा पर ही तो निर्भर होते हैं। दरअसल जब हम गौर से देखते हैं तो हमारी सारी तैयारियां बाहरी तल की होती है फिर चाहे वह हमारा कोई व्यक्तिगत काम हो या सार्वजनिक।
कुरुक्षेत्र में अर्जुन का स्मरण कीजिए जिसका रथ सजा था, पुनीर में तीर, हाथ में गांडीव, शत्रु समक्ष खड़े थे किंतु मन तो कहीं और ही भागा जा रहा था। जीवन के सारे समीकरण यहीं से तो बिगड़ने शुरू होते हैं। हमारी प्राथमिकता की सूची में मन दरअसल होता ही नहीं है। मन को राजी किए बगैर ढेर सारे कामों का हम बीड़ा उठा लेते हैं। बाहरी तल पर तैयारियां भी कर डालते हैं किंतु उसका परिणाम कैसा आता है? हमारे मनोनुकूल तो बिल्कुल भी नहीं।
सूत्र यह है कि जीवन में सारा कुछ मन की स्थिति पर टिका होता है। मन को यदि सबसे ऊपर नहीं रखा गया तो सब जगह से हाथ खाली ही रहने वाले हैं चाहे बाहृय तैयारियां कितनी भी शानदार क्यों न हों।
शुभ मंगल
# मन सूत्र