आपदा के क्षणों में जरा रामायण में झांकिए
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
आज बात विराटता की ....
कुछ समस्याएं विकराल रूप में आतीं हैं
हम सभी के जीवन में भी ऐसा समय अवश्य आता है जब एक साथ नाना किस्म की समस्याएं फन फैलाकर खड़ी हो जाती हैं। एक से निपटेंगे तो दूसरी आ घेरेगी। दूसरी सुलझाने बैठे तो तीसरी आ गई। यह क्रम जारी रहता है। ऐसा लगता है कि जैसे किसी झंझावात में उलझ गए हों। आपदा के क्षणों में मनोबल बनाए रखना सरल नहीं होता। ऐसे समय जरा रामायण में झांकिए।
भगवान राम के जीवन में राजतिलक के स्थान पर वनवास , जंगल में राक्षसों से घनघोर युद्ध फिर प्राण प्रिय जानकी का अपहरण , लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार, रावण का माया युद्ध, अहिरावण का आगमन, सीता जी की अग्नि परीक्षा, फिर उनका परित्याग देखिए कैसे क्रमबद्ध तरीके से समस्याएं आती ही गईं। एक के बाद एक। हम आपके जीवन में भी ऐसे योग बन जाते हैं।
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अब जरा महाभारत में आइए इसका कितना सुंदर सा स्पष्टीकरण है । गीता के ग्यारहवें अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप दिखाया था। इसे विश्व रुप भी कहते हैं। श्रीकृष्ण ने उस रुप के दर्शन इसलिए करवाए थे कि जीवन का एक पक्ष यह भी है कि कुछ समस्याएं विराट रूप लेकर भी सामने आती हैं। वह रुप ऐसा था कि अर्जुन ने उसकी स्तुति तो की किंतु वह उससे भयभीत भी हो गया उसे सबकुछ दिख रहा था जीवन भी और मृत्यु भी।
भगवान समझ चुके थे कि अर्जुन डर रहा है इसलिए उन्होंने अर्जुन को धीरज दिया। उसे साहस दिया । दरअसल इस सृष्टि में जिस किसी महान व्यक्तित्व के जीवन की पटकथा आप पढ़ेंगे तो पाएंगे कि उसके पथ पर कितने शूल बिखरे हुए थे। कैसे अवरोध थे। और फिर उनसे कैसे दो – चार होते हुए वह आगे बढ़े। वहां धैर्य नहीं खोया।
सूत्र यह है कि श्रीकृष्ण का विराट रूप यह संदेश देता है कि जब कभी जीवन के कुरुक्षेत्र में समस्याएं विराट रुप में आएं तो उन्हें ईश्वरीय वरदान मानकर जूझ पढ़िए। यहां से पार होते ही बहार के साये आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
शुभ मंगल
# संयम सूत्र