राज्य सरकारों के खिलाफ अर्जी खारिज, भानुमती का पिटारा नहीं खोलना चाहते
- बुलडोजर कार्रवाई : सुप्रीम कोर्ट ने कहा-ध्वस्तीकरण से प्रभावित लोग आ सकते हैं अदालत, हम सुनेंगे
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड और राजस्थान के प्राधिकारियों पर संपत्तियों के ध्यस्तीकरण संबंधी उसके आदेश की अवमानना का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया।
हालांकि शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ध्वंस से प्रभावित लोग अदालत आ सकते हैं। जस्टिस बीआर गवबई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि पीठ याचिकाकर्ता की याचिका पर विचार करने की इच्छुक नहीं है। वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कथित कृत्य से जुड़ा नहीं है। पीठ ने कहा कि हम भानुमती का पिटारा नहों खोलना चाहते।
ध्बस्तीकरण की कार्रवाई से जो लोग प्रभावित हैं, उन्हें अदालत में आना चाहिए। हम उनकी सुनवाई करेंगे। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि हरिद्वार, जयपुर और कानपुर में प्राधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की
अवमानना करते हुए संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उसकी अनुमति के बिना ध्वस्तीकरण नहीं किया जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट था कि उसकी अनुमति के बिना कोई भी ध्वस्तीकरण नहीं होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि इनमें से एक मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के तुरंत बाद संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता को तथ्यों की जानकारी नहीं; यूपी सरकार…
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि य्राचिकाकर्ता तोसरा पक्ष है और उसे तथ्यों को जानकारी नहीं है, क्योंकि यह केवल फुटपाथ पर अतिक्रमण था, जिसे अधिकारियों की ओर से हटाया गया था। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने कुछ मीडिया रिपोर्टो के आधार पर अदालत का रुख किया है।
जेल में बंद लोगों के परिजन आएं कोर्ट…
पीठ ने याचिका पर विचार से इन्कार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता इस कार्रवाई से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं है। याची के वकील ने कहा कि तीन में से दो मामलों में प्रभावित व्यक्ति जेल में हैं। हालांकि, पीठ ने कहा कि जेल में बंद प्रभावितों के परिजन कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। वकील ने कहा कि पीड़ितों का अक्सर कोट तक पहुच नहीं मिल पातो। इस पर पाठ ने
कहा, ऐसा न कहें। अगर किसी की संपत्ति ध्वस्त कर दी गई है, तो वे कोर्ट आ सकते हैं और पीठ इस पर सुनवाई करेगी।
कई याचिकाओं पर सुरक्षित रखा था फैसला…
शीर्ष कोर्ट ने इससे पहले कई याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिनमें दलील दी गई थी कि कई राज्यों में अपराध के आरोपियों की संपत्तियों सहित अन्य संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है। शीर्ष कोर्ट ने 17 सितंबर के आदेश में प्राधिकारियों को उसकी इजाजत के बिना आपराधिक मामलों में आरोपियों की संपत्ति समेत अन्य संपत्तियों को एक अक्टूबर तक ध्यस्त नहीं करने का निर्देश था। शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि मामले में निर्णय आने तक यह रोक रहेगी। हालांकि स्पष्ट किया था कि आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपार्थों, रेलवे लाइन या जलाशयों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर बने अनधिकृत ढांचं पर लागू नहीं होगा।