पाकिस्तान बनाने के क्यों खिलाफ थे भीमराव आंबेडकर, कनाडा और जर्मनी का दिया था उदाहरण

नई दिल्ली, बाबासाहेब आंबेडकर की पुस्तक ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ से हम बंटवारे के संदर्भ में उनके विचारों को जान सकते हैं। आंबेडकर ने साफ कहा था कि जब कनाडा, स्विट्जरलैंड और जर्मनी जैसे देशों में अलग-अलग संस्कृतियों और पहचान वाले लोग हैं और वे एक साथ रह सकते हैं तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता।
क्यों पाकिस्तान बनाने के खिलाफ थे भीमराव आंबेडकर, कनाडा और जर्मनी का दिया था उदाहरण
भारत का विभाजन एक चुभता हुआ प्रश्न रहा है। आज भी इसे लेकर सवाल होता है कि आखिर इसकी क्या जरूरत थी। भारत और पाकिस्तान की भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाजों में बहुत सारी समानताएं मिलती हैं। इसके बाद भी हिंदू और मुस्लिम के प्रश्न के चलते देश का बंटवारा होने की एक टीस आज भी भारतीयों के मन में है। मोहम्मद अली जिन्ना को इस विभाजन का सबसे बड़ा कारक माना जाता है तो वहीं सांप्रदायिकता का ज्वार भी इसकी वजह बना। लेकिन कई ऐसे नेता भी उस दौर में थे, जिन्होंने देश के बंटवारे का विरोध किया था। इनमें से ही एक लीडर थे, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर। उनकी पहचान भारतीय संविधान के निर्माता के तौर पर है, लेकिन उन्होंने सांप्रदायिक मसलों और भारत विभाजन पर भी खुलकर कहा था।
बाबासाहेब आंबेडकर की पुस्तक ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ से हम बंटवारे के संदर्भ में उनके विचारों को जान सकते हैं। आंबेडकर ने साफ कहा था कि जब कनाडा, स्विट्जरलैंड और जर्मनी जैसे देशों में अलग-अलग संस्कृतियों और पहचान वाले लोग हैं और वे एक साथ रह सकते हैं तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। हिंदू और मुस्लिम समुदायों को अलग-अलग राष्ट्र बताए जाने के सवाल पर भी उन्होंने खुलकर कहा था कि भले ही ऐसा हो, लेकिन साथ रहा जा सकता है।
भीमराव आंबेडकर लिखते हैं, ‘इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हिंदू और मुसलमान के अनेक ढंग, तौर-तरीके, धार्मिक तथा सामाजिक रिवाज समान हैं। इस बात से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि ऐसे भी रीति-रिवाज और संस्कार हैं, जो धर्म पर आधारित हैं और वे अलग-अलग हैं। उनके चलते हिंदू और मुसलमान दोनों भागों में विभक्त हैं। प्रश्न यह है कि किस बात पर अधिक बल दिया जाए। यदि उन बातों पर बल दिया जाए, जो दोनों में समान रूप से पाई जाती हैं तो फिर भारत में दो राष्ट्रों की आवश्यकता नहीं रह जाती। पर उन बातों पर ध्यान दिया जाता है, जो सामान्य रूप से भिन्न हैं तो ऐसी स्थिति में निसंदेह दो राष्ट्रों का सवाल सही है।’
इसके आगे वह कनाडा का उदाहरण देते हुए लिखते हैं, ‘यदि यह मान लिया जाए कि भारत के मुसलमान एक राष्ट्र हैं तो क्या भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां दो राष्ट्रों का अभ्युदय होने वाला है? कनाडा के विषय में क्या विचार है? हर कोई जानता है कि कनाडा में अंग्रेज और फ्रेंच दो राष्ट्र हैं। क्या दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेज और डच दो राष्ट्र नहीं हैं? कौन नहीं जानता कि स्विटजरलैंड में जर्मनी, फ्रेंच और इटालियन ये तीन राष्ट्र हैं। क्या कनाडा में फ्रेंचों ने विभाजन की मांग की?’ भीमराव आंबेडकर ने उस दौरान उठी विभाजन की लहर और सांप्रदायिक राजनीति का तीखा विरोध किया था। उन्होंने इन देशों का उदाहरण देते हुए कहा था कि जब ये साथ रह सकते हैं तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता।
‘कनाडा, स्विटजरलैंड की तरह क्यों नहीं रह सकते एक’
आंबेडकर ने लिखा था, ‘कनाडा में फ्रेंच, दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों और स्विट्जरलैंड में फेंच और इटालियन्स के उदाहरण के बाद यह प्रश्न उठता है कि भारत में आखिर ऐसा क्यों नहीं हो सकता? यह मानते हुए हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्रों में विभाजित हैं, वे एक देश में एक संविधान के अंतर्गत क्यों नहीं रह सकते। दो राष्ट्र सिद्धांत के चलते भारत के विभाजन की आवश्यकता ही क्या है। हिंदुओं के साथ रहने पर मुसलमान अपनी राष्ट्रीयता तथा संस्कृति के क्षीण होने को लेकर इतने भयभीत क्यों हैं।’