जर्मन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स ने कहा, भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के लिए विकास इंजन

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  • जर्मनी की 51% कंपनियां भारत में बढ़ाएंगी निवेश


भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी के लिए विकास का इंजन बना हुआ है। जर्मनी की कंपनियां भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद को देखते हुए उसकी विकास गाथा में हिस्सेदार बनना चाहतो हैं। जर्मन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स अन्नॉड (एएचके ) के नेटबर्क की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया है कि भारत में कारोबार कर रहीं जर्मनी की 51 फीसदी कंपनियां आने वाले 12 महीनों में अपना निवेश बढ़ाना चाहती हैं। वहीं, चीन में कारोबार करने घाली जर्मनी की 28 फीसदी कंपनियां ग्रेटर चीन में अपने निवेश
में कटौती करना चाहती हैं। ग्रेटर चीन में चीन, ताइवान और हांगकांग शामिल हैं! यह सर्वे एशिया-प्रशांत और ग्रेटर चीन क्षेत्र में करीब 820 सदस्य कंपनियों के बीच किया गया है।

भारत में कारोबार वृद्धि की अत्यधिक संभावना…
एएचके के मुताबिक, चीन में कारोबारी माहौल में थोड़ा सधार हआ है, लेकिन कंपनियों की निवेश योजनाओं में काफी कमी आई है। इसकी प्रमुख वजह चीन की तुलना में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अन्य बाजारों में विविध और बेहतर कारोबारी माहौल है।

भारत के संदर्भ में कहा गया है कि देश जर्मन कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण बनता जा रहा है, जहां कारोबार वृद्धि को भारी संभावनाएं हैं। जर्मन कंपनियों को उम्मीद है कि भारत में उनकी आय तेजी से बढ़ेंगी।

एशिया व प्रशांत क्षेत्र में निराश नहीं हैं कंपनियां : ट्रेयर
सर्वे में कहा गया है कि ग्रेटर चीन को छोड़कर एशिया- प्रशांत क्षेत्र में जर्मन कंपनियों की वर्तमान कारोबारी स्थिति 2024 की शरद ऋतु में ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गई है। हर पांच में से एक कंपनी ने अपनी वर्तमान कारोबारी स्थिति को खराब बताया है।

: जर्मन चैंबर ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स डीआईएचके में विदेशी व्यापार प्रमुख बोलकर ट्रेयर ने कहा, कई स्थानों पर निराशाजनक स्थिति के बावजूद एशिया-प्रशांत में हमारी कंपनियां निराश नहीं हैं। वे भविष्य को लेकर आशाबादी हैं। सर्वे में शामिल आधी से अधिक कंपनियों को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में उनके स्थानीय कारोबार में सुधार होगा। सिर्फ 8 फीसदी को ही गिरावट की आशंका है।

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