Happy Navratri 3 Oct. 2024: नौ दिनों के दर्शन में महाविद्या रूप त्रिगुणात्मक शक्ति

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  • आस्था की रातों में उम्मीदों का दीया

नवरात्र के नौ दिनों में एक बार भोजन के नियम और पूरे आठ अथवा नौ दिन के उपवास के बाद आठवें या नवें दिन पारण करने का विधान है। रुद्रयामल में तो सात दिन उपवास के बाद आठवें दिन हवन कर पारण का निर्देश है।

जिस प्रकार कालचक्र के विभागानुसार एक दिन-रात में चार संधिकाल होते हैं, उसी प्रकार देवताओं के एक वर्षीय दिन-रात में भी चार ही संधिकाल होते हैं, जो अयन परिवर्तन (उत्तरायण-दक्षिणायन ) और गोल-परिवर्तन (चैत्र-आश्विन) के संधिकाल होते हैं। वस्तुतः जगत का नियंत्रण एवं संचालन करने वाली शक्ति काल के रूप में नित्य हमारे अनुभव में आती हैं। स्थूल मान से संवत्सर में 360 दिन-रात होते हैं।

इनको यदि 9-9 के खंडों में विभक्‍त किया जाए तो पूरे वर्ष में 40 नवरात्र होते हैं। नौ-नौ के खंड बनाने का अभिप्राय है कि अखंड संख्याओं में ‘9’ सबसे बड़ी संख्या है। इसलिए प्रकृति और शक्ति का इस संख्या से खास संबंध है। प्रकृति के सत्व, रज और तम नाम के तीन गुण हैं और ये तीनों परस्पर मिले हुए त्रिवृत्त होते हैं। इसी प्रकार तीन-तीन से एक-एक विशिष्ट गुण बना हुआ है, ठीक उसी प्रकार, जैसे कि यज्ञोपवीत में तीन तार होते हैं और फिर एक-एक में तीन-तीन, कुल मिलाकर नौ तार होते हैं। यही प्रकृति का मूल रूप है। उक्त चालीस नवरात्रों में से चार नवरात्र प्रधान हैं। इन महीनों में भिन्‍न-भिन्‍न ऋतुओं का संधिकाल होता है।

भारतीय उपासना विधानों में संधिकाल का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि इन संधिकालों में नक्षत्रों के गुण-धर्म, प्रकृति के सूक्ष्म तत्व और ग्रह पिंडों की रश्मियों के तत्व, उनका प्रत्यावर्तन तथा संक्रमण पृथ्वी के समस्त प्राणियों को प्रभावित करता है। मानव मस्तिष्क इस ऋतु संधिकाल में सृष्टि स्थिति और संहार की शक्ति का अर्जन करता है।
शारदीय नवरात्र नई फसल के आगमन के रूप में महालक्ष्मी का प्रत्यक्ष स्वरूप दर्शन सूचक भी हैं। इस समय महाविद्या रूप त्रिगुणात्मक शक्ति संपूर्ण जगत का परिवर्तन करती है। इसलिए त्रिगुणात्मक शक्ति की उपासना के लिए यह उत्तम काल माना गया है।

जौ बोने का रहस्य
यव यानी जौ के अंकुरों का नाम जवारा है। ‘पयसो रूप॑ यद्यवा:’ इस श्रुति के अनुसार जौ पय का रूप है। पय दुग्ध को कहते हैं और जल को भी, अर्थात जो पीने से वृद्धि अथवा पुष्टि करे। हम देखते हैं कि जल पीने से औषधि, वनस्पतियों की और दूध पीने से प्राणियों की वृद्धि होती है। दुधारू पशुओं को जौ खिलाने से उनका दूध बढ़ता है।

भोज्य
पदार्थों, खासकर हविष्यान्नों में यतर को प्रधानता दी गई है। कहा भी गया है- ‘यवोसि धन्य राजोसि- अर्थात तू यव है, तू धान्यों का राजा
है।’ जौ वर्धनशील अनाज है। इस कारण महालक्ष्मी रूप शक्ति की पूजा में जवारे बोना उचित ही है।

घट-स्थापन क्‍यों?
घट जल का आधार माना जाता है और जल वरुण देवता का प्रतीक है। वरुण देवता को वेदों में पाश-बंधन से छुड़ाने वाला बताया गया है। इसलिए प्रत्येक मांगलिक कर्मों में रुकावट डालने वाले बंधनों की निवृत्ति के लिए वरुण का पूजन किया जाता है।

शारदीय नवरात्रि तिथियां (Shardiya Navratri Tithiyan)

    • 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार        :   मां शैलपुत्री (पहला दिन) प्रतिपदा तिथि
    • 4 अक्टूबर 2024, शुक्रवार       :    मां ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) द्वितीया तिथि
    • 5 अक्टूबर 2024, शनिवार       :    मां चंद्रघंटा (तीसरा दिन) तृतीया तिथि
    • 6 अक्टूबर 2024, रविवार        :    मां कुष्मांडा (चौथा दिन) चतुर्थी तिथि
    • 7 अक्टूबर 2024, सोमवार       :    मां स्कंदमाता (पांचवा दिन) पंचमी तिथि
    • 8 अक्टूबर 2024, मंगलवार     :    मां कात्यायनी (छठा दिन) षष्ठी तिथि
    • 9 अक्टूबर 2024, बुधवार        :    मां कालरात्रि (सातवां दिन) सप्तमी तिथि
    • 10 अक्टूबर 2024, गुरुवार      :    मां महागौरी (आठवां दिन) दुर्गा अष्टमी
    • 11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार     :    महानवमी, (नौवां दिन) शरद नवरात्र व्रत पारण
    • 12 अक्टूबर 2024, शनिवार     :    मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)

 

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