nagdwari yatra: नागपंचमी पर जानिए नागलोक की रहस्यमयी बातें

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Nagdwari Yatra: the mysterious things of Naglok

Nagdwari Yatra: the mysterious things of Naglok

पचमढ़ी  (madhya pradesh) में नागद्वारी गुफा ( nagdwari yatra ) की 13 किमी दुर्गम,पहाड़ी यात्रा पूरी करने नाग पंचमी पर हर साल हजारों की संख्या में शिवभक्तों का सैलाब उमड़ता है। नागपंचमी के अवसर पर इस गुफा में दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम नागद्वारी गुफा ( nag cave ) की रहस्यमयी कहानी बताने जा रहे हैं। जिसकी जानकारी आपको गूगल पर भी नहीं मिलेगी।

Nagdwari Yatra: the mysterious things of Naglok
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ऐसे में आज हम आपको आगे नागलोक की रहस्यमयी कहानी बताएंगे, उससे पहले ये बता देते हैं कि वहां तक पहुंचेंगे कैसे।

यहां से शुरू होती है यात्रा
पचमढ़ी शहर से 8 किमी दूर जलगली तक टैक्सी से मेला श्रद्धालु पहुंचकर नागद्वारी गुफा की 13 किमी की दुर्गम पहाड़ी यात्रा पूरी कर रहे है। भोले शंकर के दर्शन कर 13 किमी वापस इसी मार्ग से पचमढ़ी पहुंच रहे है। तीन बड़े पहाड़ अनेक छोटी पहाड़िया, नदी, नाले, अस्थाई सीढिय़ों से लटकते हुए यह कठिन यात्रा भक्त पूरी कर रहे हैं। इस साल बारिश के कारण पांच दिन देर से शुरु हुई यात्रा के कारण काफी तादाद में श्रद्धालु पचमढ़ी पहुंच रहे हैं।

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सैकड़ों साल पुराना है मेले का इतिहास
नागद्वारी मेले का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। पचमढ़ी के 69 वर्षीय वरिष्ठ नरेन्द्र कुमार गुप्ता के अनुसार 1800ई में अंग्रेजों से आदिवासी राजा भभूत सिंह की सेना के बीच युद्ध हुआ था। आदिवासी छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव से पैदल चलकर नागद्वारी क्षेत्र स्थित चित्रशला माता गुफा में अज्ञातवास करते थे। गुफा में अंग्रेजों से लड़ने की गुप्त रणनीति बनती थी, अंग्रेजी सेना पर हमला कर इन्हीं गुफाओं और कंदराओं में शरण लेते थे। नागद्वारी गुफा के पास काजरी क्षेत्र में आज भी शहीद सैनिकों की अनेक समाधियां स्थित हैं। मराठा एवं आदिवासी परिवार, आदिवासी परिवारों ने उस दौर से यहां यात्राएं प्रारंभ की। उसके बाद नागद्वारी गुफा में शिवलिंग स्थापित किया गया। महज पांच फीट चौड़ी गुफा में इसी शिवलिंग का पूजन लोग करते हैं।

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संतान की होती है प्राप्ति
पचमढ़ी महादेव मंदिर के पुजारी रमेश दुबे,अभिषेक दुबे के अनुसार जिनकी कुण्डली में काल सर्प योग दोष होता है, उनके द्वारा नागद्वारी यात्रा पूर्ण करने पर यह दोष समाप्त होता है। वहीं 89 वर्षीय प्यारे लाल जायसवाल के अनुसार वे पीढ़ियों से विदर्भ के नागरिकों को नागद्वारी यात्रा करते देखते चले आ रहे हैं। पहले बच्चों को कैंची बनाकर पीठ पर लादकर दुर्गम पहाड़ों पर रस्सियों के सहारे चढ़कर यात्रा पूरी करते थे, आज प्रशासन ने कुछ व्यवस्थाएं की हैं। एक किवदंती महाराष्ट्र में प्रचलित है कि नागद्वारी यात्रा पूर्ण करने पर संतान सुख की मन्नत पूरी होती है।

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नाग देवता ने पुत्र को लिया डस
दूसरी किवदंती ये है कि संतान प्राप्ति के लिए नागदेवता से मन्नत मांगी जाती थी। मन्नत पूरी होने पर नागदेवता को सलाइ से काजल आंजा जाता था। पूर्व में एक राजा हेवत चंद एवं उसकी पत्नी मैनारानी ने संतान प्राप्ति की नागदेवता से मन्नत मांगी जो पूरी हो गई मन्नत पूरी करने जब मैनारानी ने नागदेवता को काजल लगाना चाहा तो नागदेवता विशाल रुप में प्रकट हुए यह देख मैनारानी बेहोश हो गईं। नागदेवता ने आक्रोशित होकर पुत्र श्रवण कुमार को डस लिया। श्रवण कुमार की समाधि भी काजरी क्षेत्र में बनी है।

 

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ऐसे पहुंचते हैं नागाद्वारी गुफा तक
पचमढ़ी से जलगली 7 किमी, जलगली से कालाझाड़ 3.05किमी, कालाझाड़ से चित्रशाला मंदिर 4 किमी, चित्रशाला से चिंतामन 1 किमी, चिंतामन से पश्चिम द्वार 1 किमी, पश्चिम द्वार से नागद्वारी 2.5 किमी, नागद्वारी से काजरी 2 किमी, काजरी से कालाझा 4 किमी।

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साल में एक बार होती है यात्रा
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां आम स्थानों की तरह प्रवेश वर्जित होता है और साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है। यहीं हर साल नागपंचमी पर एक मेला लगता है। जिसमें भाग लेने के लिए लोग जान जोखिम में डालकर कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं। सावन के महीने में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालु, खासतौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।

चिंतामणि की गुफा
नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है। इस गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां हैं। स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। जल गली से 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा में भक्तों को दो दिन लगते हैं।

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रहस्यमयी है नागलोक
कमजोर दिल वाले तो इस रास्ते को देखकर ही सीहर जाएंगे। इसलिए जब यह यात्रा शुरू होती होती है तो सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम होते है। सीधी पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए कई जगहों पर सीढ़ी लगवाए गए हैं। ये रास्ता भी काफी संकीर्ण हैं। घने जंगलों के बीच से होते हुए यह रहस्मयी रास्ता सीधे नागलोक जाता है। नागलोक के दरवाजे तक पहुंचने के लिए खतरनाक 7 पहाड़ों की चढ़ाई और बारिश में भीगे घने जंगलों की खाक छानना पड़ता है, तब जाकर आप नागद्वारी पहुंच सकते हैं।

कहा जाता है कि नागद्वारी यात्रा दुनिया की सबसे कठिन यात्रा है। हिंदुस्तान में हर साल होने वाले अमरनाथ यात्रा से भी यह कठिन यात्रा है। यहां दुर्गम पहाड़ियों के बीच से होते हुए जहरीले और विषैले सांपों का सामना करते हुए नाग मंदिर तक पहुंचना होता है। यह मंदिर साल में दस दिन के लिए ही खुलता है। पंचमढ़ी की घनी पहाड़ियों के बीच स्थित मंदिरों को नागलोक कहा जाता है। इसे नागद्वार के नाम से भी जानते हैं, इसीलिए इस यात्रा को नागद्वारी यात्रा कहते हैं।

 

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