Silkyara Tunnel: 17 दिन में जिदंगी रोशन, 17 माह में बिखेर दिया उजाला
-
लंबी स्याह रात का उजियारा…
दीपावली की रोशनी में नहाई 12 नवंबर 2023 वह तारीख है, जब देश और उत्तराखंड के लोग रोशनी के इस त्योहार की तैयारियों के बीच घरों व गलियों को रोशन करने में व्यस्त थे। वहीं उत्तराखंड में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसी 41 जिंदगियों के आगे इस दिन घोर अंधियारा छाया हुआ था।
उस दीपावली भले ही देश ने पर्व तो मनाया, लेकिन लोगों का मन सिलक्यारा सुरंग में फंसी जिंदगियों पर अटका था। केंद्र सरकार, राज्य सरकार और न जाने कितनी सरकारी, गैर सरकारी एजेंसियां 17 दिनों तक अपनी मशीनी क्षमताओं की आस और एक अदृश्य शक्ति के भरोसे जुटी रहीं और 28 नवंबर को 41 जिंदगियों की डोर टूटने से बचाई गई।
वहीं, 17 महीनों बाद एक बार पुन: उसी सिलक्यारा सुरंग को लेकर आरपार की लड़ाई बुधवार को जीत ली गई है। सुरंग के एक छोर से दूसरे छोर के जुड़ने पर जहां दो धाम गंगोत्री यमुनोत्री के बीच की दूरी कम हुई, वहीं बढ़ाया है विश्वास और हौसला। लिहाजा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी श्रमिकों की शक्ति के साथ उस अदृश्य शक्ति (बाबा बौखनाथ) की पूजा की तैयारियों के साथ सिलक्यारा पहुंचे, जिसका लोहा अंतरराष्ट्रीय टनल विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स भी मानते हैं।
𝐇𝐈𝐒𝐓𝐎𝐑𝐈𝐂 𝐁𝐑𝐄𝐀𝐊𝐓𝐇𝐑𝐎𝐔𝐆𝐇!
Today marks a historic milestone with the successful breakthrough of Uttarakhand’s 4.531 km Silkyara Tunnel—an engineering marvel under the #ChardhamMahamarg project.
This transformative tunnel will: – Save 1 hour of travel time –… pic.twitter.com/zI3OaWJzo3
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) April 16, 2025
क्या हुआ था उस दिन
उस स्याह दिन की याद करें तो देहरादून से करीब दो सौ किलोमीटर दूर उत्तरकाशी जिले में सुरंग में फंस गए मजदूरों के घरों में त्योहार की रोशनी जगमगाने की तैयारियां चल रही थीं और किसी अमंगल की सूचना से बेखबर थे।
उस दिन सूरज अपनी निद्रा तोड़कर भोर का उजियारा फैलाने को बेसब्र था, पहाड़ के पीछे से अपने चमकने का संदेशा हल्की लालिमा के साथ भेजा था। किरणें फैलतीं इसी बीच अचानक करीब साढ़े पांच बजे जोरदार आवाज हुई, पेड़ों में अपने-अपने घरौंदों में रह रहे पक्षी तेज आवाज को अपने लिए खतरे की घंटी समझ तय समय से पहले चहचहाकर एक साथ बाहर की ओर निकल पड़े।
पहाड़ के टूट कर बिखरने की आवाज से उत्तराखंड के लोग परिचित है ऐसे में सुरंग से कुछ दूरी पर बसे वांण, नगल, मंज और सिलक्यारा गांव के कुछ लोगों तक अनहोनी की आवाज पहुंच गई थी।
तेज आवाज के कुछ ही देर बाद सुरंग के मुहाने से धूल के गुबार के साथ चार मजदूर बदहवास से भागते हुए बाहर निकले थे। चारों के चेहरों पर मौत का मंजर, डर और दहशत के साथ धूल की परत चढ़ी हुई थी। मजदूर चिल्लाते हुए निकले पर बाहर उनके गले ऐसे रुंध गए कि आवाज नहीं निकल रही थी। ओडिसा से सुरंग में काम करने आए साइमन बत्रा जमीन पर बैठ सुरंग की ओर ही देखते रहे। इस दौरान उनका मन अंदर फंसे साथियों की चिंता में बेचैन था। इस समय साइमन की आंखों से बहते आंसू उसके चेहरे पर जमी धूल पर निशान छोड़ गए थे।
4.53 किलोमीटर लंबी सिलक्यारा टनल हुई आर पार
2023 में सिलक्यारा में हुआ था बड़ा हादसा
17 दिन तक सुरंग में फंसे रहे 41 मजदूर
बाबा बौखनाग की कृपा से सकुशल पूरा हुआ था बेहद जटिल रेस्क्यू ऑपरेशन
सुरंग के मुहाने पर बाबा के मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा
टनल बनने से… pic.twitter.com/86KvRqlRsq
— Ramesh Bhatt (@Rameshbhimtal) April 16, 2025
मौत से बचकर निकले इन मजदूरों ने कंपनी से जुड़े कर्मचारियों से फोन पर संपर्क किया। जिसके बाद अन्य मजूदर व कर्मचारी टनल के बाहर जुटने लगे। वहीं थोड़ी ही देर में स्थानीय पुलिस व आईटीबीपी के जवान भी पहुंच गए। साथ ही सूचना मिलने के साथ ही मुख्यमंत्री कार्यालय भी हरकत में आ गया और राज्य आपदा विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारी मौके पर पहुंचने लगे थे। तकरीबन 11 बजे जेसीबी मशीन से मलबा हटाने का काम शुरू किया गया। लेकिन सुरंग के भीतर भरे मलबे को जैसे ही छेड़ा जाता वह उससे अधिक बढ़ जाता।
विशेषज्ञों को समझ गए कि टनल के अंदर आए मिट्टी और पत्थर को जितना हटाया जाएगा वह लगातार ऊपर से आता रहेगा और अंदर फंसे मजदूरों की मुसीबत बढ़ाएगा। वहीं सरकार के नुमाइंदे देहरादून से अधिकारियों पर दबाव बनाए हुए थे। हादसे का पहला दिन तेजी से निकल रहा था और शाम तक कोई सफलता नहीं मिली थी। ऐसे में पहले दिन किए गए प्रयास बेनतीजा रहे। हालांकि अधिकारियों ने सुरंग के अंदर पाइप से ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू कर दी।
वहीं 13 नवंबर यानि दूसरे दिन सुबह सीएम पुष्कर सिंह धामी घटनास्थल पर पहुंच गए। अब ऑगर मशीन से ड्रिलिंग कर मजदूरों को बाहर निकालने की तैयारी हुई। इसके तहत देहरादून से ऑगर मशीन मंगाई गई। लेकिन यह शाम 6 बजे तक सिलक्यारा पहुंची और रातभर मशीन को लेकर काम चला। इसके बाद 14 नवंबर को ऑगर मशीन से 7 मीटर ड्रिलिंग कर ली गई, लेकिन इसकी कम क्षमता के चलते इसे हटाना पड़ा। पहली बार यहां सरकारी एजेंसियों को तकनीकी कमियों का सामना करना पड़ा। वहीं, इस दौरान यहां मौजूद सुरंग में फंसे श्रमिकों के परिजनों व अन्य मजदूरों ने विरोध प्रदर्शन किया।
जिसके बाद दिल्ली से नई मशीन मंगाने का निर्णय लिया गया। लेकिन नई मशीन के नहीं पहुंचने से दिनभर काम बंद रहा। 15 नवंबर को वायुसेना के हरक्यूलिस विमानों से तीन खेप में अमेरिकी जैक एंड पुश अर्थ ऑगर मशीन चिन्यालीसौड़ हवाई अड्डे पहुंचाई गई। रात तक ट्रकों से इस मशीन को सुरंग तक लाया गया और तड़के ड्रिलिंग शुरू की गई।
इस दौरान सुरंग में फंसे लोगों तक कुछ खाने का सामान, पीने का पानी पहुंचाया जाता रहा। जबकि 16 नवंबर तत्कालीन केंद्रीय राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह और परिवहन मंत्रालय के सचिव घटनास्थल पर पहुंचे। ऑगर मशीन से ड्रिलिंग का काम जारी रहा और 17 नवंबर को 22 मीटर तक पाइप पहुंच गया।
VIDEO | Uttarakhand: The breakthrough of the Silkyara Tunnel is scheduled to take place later today, with CM Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) expected to attend the ceremony.
Spanning approximately 4.5 kilometers, the tunnel is a major step forward in the state’s… pic.twitter.com/OE8ZFeEGr3
— Press Trust of India (@PTI_News) April 16, 2025
इसके बाद 18 नवंबर को 41 लोगों की जान बचाने के लिए एक साथ पांच योजनाओं पर काम शुरू करने का फैसला हुआ। सुरंग के सिलक्यारा छोर, बड़कोट छोर, सुरंग के ऊपर, दाएं-बाएं से भी ड्रिलिंग की योजना बनी। प्रधानमंत्री कार्यालय पल-पल की जानकारी ले रहा था। यही कारण रहा
वहीं 19 नवंबर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सिलक्यारा पहुंचकर जायजा लिया। नितिन गडकरी ने ऑगर मशीन से ड्रिलिंग कर मजदूरों तक पहुंचने की योजना पर विश्वास जताया।
जबकि 20 नवंबर को 9वें दिन सुरंग के अंदर खाने की आपूर्ति के लिए छह इंच की पाइप लाइन डाली गई। मजदूरों तक भोजन पहुंचा। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय टनल विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स भी सिलक्यारा पहुंच गए और जल्द अभियान पूरा करने पर भरोसा जताया।
इसके पश्चात 21 नवंबर 10वें दिन तड़के 3:55 पर खाने की आपूर्ति के लिए डाली गई पाइप लाइन से टेलिस्कोपिक कैमरा अंदर भेजा गया। जिसने अंदर सभी के सकुशल होने की तस्वीरें और बाहर से उन्हें बचाने के हो रहे प्रयासों पर भरोसा जताया। उस दिन मजदूरों की मांग पर उन्हें फल, पुलाव सब्जी रोटी और नमक भेजा गया। 22 नवंबर को ऑगर मशीन ने देर रात तक पाइप मजदूरों के करीब पहुंचाया। लेकिन आगे सरिया आने से काम रुक गया।
23 नवंबर ऑगर मशीन का बेस हिलने से अभियान रोकना पड़ा। 24 नवंबर को सुरंग में फंसे मजदूरों से अंदर से हाथों से मलबा हटाने के विकल्प पर भी सोचा गया। 25 नवंबर ऑगर मशीन के ब्लेड टूटकर पाइप में फंस गए। 26 नवंबर को सुरंग के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग काम काम शुरू हुआ पर मशीनों ने फिर निराश किया। 27 नवंबर झांसी से रैट माइनर्स की एक टीम पहुंची।
ऑगर मशीन के टूटे ब्लेड और हेड निकालने के बाद रैट माइनर्स दल ने हाथों से खोदाई शुरू की। 28 नवंबर को रैट माइनर्स ने 27 घंटे की खोदाई के बाद मजदूरों तक पाइप पहुंचाने का रास्ता बनाया। 17वें दिन रात करीब साढ़े आठ बजे एक-एक कर सभी मजदूर बाहर निकले और जिंदगी की जंग जीतकर खुली हवा में सांस ली।