महामंडलेश्वर बनने के बाद हुए अपमान पर गरजीं ममता कुलकर्णी

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नई दिल्ली: ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाया, तो वे कई लोगों की आखों में चुभने लगीं. बाबा रामदेव और बागेश्वर धाम सरकार (धीरेंद्र शास्त्री) ने उन्हें पदवी दिए जाने पर सवाल उठाए. उन पर 12 करोड़ देकर महामंडलेश्वर का पद खरीदने का आरोप भी लगा. ममता कुलकर्णी ने एक इंटरव्यू में तमाम सवालों के जवाब दिए और महामंडलेश्वर बनने के बाद हुए अपमान पर नाराजगी जताई. उन्होंने महाकुंभ में हुए हादसे की आपबीती बताई और खुद को महाकाली का स्वरूप बताया.

ममता कुलकर्णी जब महामंडलेश्वर बनीं, तो उन पर आरोप लगा कि उनका धार्मिक रूप एक ड्रामा से ज्यादा कुछ नहीं है, जो थोड़े दिनों तक चलेगा. आरोप पर पूर्व फिल्मस्टार ने ‘आप की अदालत’ में कहा, ’23 साल की मेरी तपस्या है. यानी मैं 23 साल से गायब थी. मैंने 2000 से 2012 तक कड़ी तपस्या की. कहते हैं न- महामंडलेश्वर कोई बनाता नहीं, अगर आप हो तो होते हो. असल मैं भगवा वस्त्र धारण नहीं करना चाहती थी. मैं किसी चीज में बंधना नहीं चाहती थी. ऐसा नहीं है कि मैंने कोई गलती की है. फिर यह महाकुंभ है, महाकाल की धरती है. मैंने महाकाल और महाकाली की घोर तपस्या की है. कभी-कभी लगता है कि मेरे अंदर से प्रचंड चंडिका बाहर आ जाती है.’

ममता कुलकर्णी ने आगे कहा, ‘सब महामंडलेश्वर और हजार रथ स्नान के लिए 12 बजे से निकल गए थे. मैंने 23 साल की तपस्या की और मुझे इन लोगों ने पीछे रख दिया. मैंने उनसे कहा कि आप जाएं, मेरे साथ विवाद है. लेकिन मेरे अंदर से, जैसे कि मैंने बताया कि प्रचंड चंडीके 12 आदिशक्ति सदा शिवाय धीमही. प्रचंड चंडीके जो है, वह ऐश्वर्य स्वरूप में है, उसकी 64 योगिनी होती है. मैंने 23 सालों से इसे जागृत करके रखा है. उसको यह सहन नहीं हुआ कि मैं पीछे रहूं’

पूर्व एक्ट्रेस महाकुंभ की आपबीती सुनाते हुए इमोशनल हो गईं. वे बोलीं, ‘मुझे सिर्फ यह दुख था कि यह सब अहंकार और यह सब रथ, छत्र और छड़ी के पीछे जो अमृत है, वह मेरा स्नान रह गया. मैं बहुत रोई. मैं रो रही थी. सब वहां (कुंभ) में स्नान के लिए खड़े हो गए थे. 3 बजे वहां के मुखिया का फोन आता है कि आप महागौरी हो, आप महाकाली हो. मैंने पूछा कि क्या हो गया? उन्होंने कहा कि पूरा स्नान स्थगित हो गया. सभी वहीं के वहीं खड़े रह गए. मैंने पूछा- और क्या हो गया? बोले कि हम 10 किलोमीटर पैदल चलकर वापस आ रहे हैं.’

ममता कुलकर्णी ने महाकुंभ में भगदड़ की ओर संकेत देते हुए कहा, ‘मैं महाकाली हूं. जिस संगम में आप डुबकी मार रहे हो, वो मैं ही हूं.आपने उसको पीछे कैसे छोड़ दिया? मैं सुबह चार बजे उठी, मेरा स्नान नहीं हो रहा है. कम से कम यह तो पूछो कि मुझे चाय मिलेगी. उन्होंने मुझसे कहा कि चायवाला भी स्नान के लिए गया, तो प्रचंड चंडीका और भी भड़क गईं. वहां (कुंभ में) लाशें गिर पड़ी थीं. यह मैं नहीं चाहती थी, लेकिन वो बर्दाश्त ही नहीं कर पाई. वहां चायवाले, झाड़ूवाले जा सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? मैंने इतना बुरा तो कर्म नहीं किया, 23 साल से एकांतवास में तपस्या कर रही थी.’

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