Basant Panchami: सरस्वती को लुप्त मत होने दीजिए
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात बसंत पंचमी की …
सरस्वती को लुप्त मत होने दीजिए
ज्ञान की , वाणी की अधिष्ठात्री हैं- मां सरस्वती। प्रयागराज में कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती का समागम होता है। गंगा जी और यमुना जी तो दृश्य हैं किंतु सरस्वती अदृश्य हैं। सरस्वती का लुप्त होना शुभ संकेत तो नहीं हैं। हमारे जीवन से भी यदि सरस्वती लुप्त हो रही हैं तो फिर इस पर शांतचित्त भाव से विचार की आवश्यकता है। हम बचपन से ही सरस्वती प्रार्थना करते आए हैं – हे हंस वाहिनी , ज्ञान दायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे। जिसका अर्थ है हे मां हमें विशुद्ध निर्मल बुद्धि प्रदान करें। एक और वंदना – हे शारदे मां, हे शारदे मां, अज्ञानता से हमें तार दे मां। मन से हमारे मिटा दो अंधेरे, उजालों का हमको भी संसार दे मां।
मां वीणा वादिनी स्वर की भी देवी हैं और शब्द की भी। इसलिए वे सभी की श्रद्धा का केंद्र हैं। मैंने ऐसे अनेक कलाकारों को, सृजकों को देखा है जो इतर संप्रदाय के होने के बाद भी मां सरस्वती के उपासक हैं। कभी कोई दुरा भाव नहीं देखा। उनके सम्मान में खूब गाया भी और बजाया भी। सरस्वती के कृपा पात्र कम ही लोग बन पाते हैं वह उसी को अपना आशीर्वाद देती हैं जो सब कुछ छोड़ पवित्र भाव उनके कार्य को आगे बढ़ा रहा होगा। स्वर में, शब्द में, सृजन में डूबा हो।
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सरस्वती के चार हाथों में वीणा है , पुस्तक है, माला है, वरमुद्रा है। कोई अस्त्र नहीं कोई शस्त्र नहीं। जो प्रतीक है कि कैसे जीवन में आपको तमस से निकलना है तो इन चारों से ही कल्याण संभव है। पठन- पाठन का सुख संसार के सभी सुखों में अलबेला है। एक बार जिसको इसमें आनंद आने लगता है वह भौतिक सुखों को तिलांजलि दे देता है। उन्हें हंस वाहिनी कहा जाता है वह उसी पर सवार होती हैं। हंस दर्शाता है कि कैसे नीर – क्षीर विवेक जीवन में आवश्यक है। विवेकवान बने रहिए, मति ठीक रखिए, वाणी संयमित रखें, कुविचार न आने दें तो समझिए सरस्वती जी की दया दृष्टि है।
सूत्र यह है कि बसंत पंचमी का उत्सव ज्ञान की अधिष्ठात्री के प्राकट्य का उत्सव है इस दिन मां के शरणागत हो सन्मति मांगिए क्योंकि अंततः यही काम आती है। आप सभी के जीवन में बसंत सदैव बना रहे।
शुभ मंगल
# बसंत पंचमी