# संयम सूत्र: आज बात सम्मान की…
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात सम्मान की …
यह संयम से ही शेष रहता है
इस पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य की सम्मान पाने की अभिलाषा सार्वभौमिक है। सभी लोग इसके लिए नाना उपक्रम भी रचते हैं। हालांकि यह हर किसी को हासिल हो नहीं पाता। विरले ही होंगे जिन्हें जीवन में बगैर कामना के भी प्राप्त होता है। यह ईश कृपा से ही संभव है। अभी तक का मेरा अनुभव कहता है कि जो संयमी किस्म के लोग होते हैं उन्हें समाज में पर्याप्त सम्मान मिलता है। जिन्होंने अपनी इंद्रियों को एक समय पश्चात संयमित कर लिया है वह शेष से अलग हो जाते हैं।
जिव्हा की बात करें तो जैसे कहीं आप अनावश्यक बोलेंगे, अपनी वाचाल जैसी छवि निर्मित कर लेंगे। तो कोई भी आपकी बात को गांभीर्य भाव से नहीं लेगा। तृष्णा लिए ढेर सारा भोजन थाली में उड़ेल लेंगे या आखिर तक खाते रहेंगे तो अपना सम्मान खो देंगे। नेत्र इंद्रिय की बात करें तो किसी को एकटक निहारना या घूरना भी आपके सम्मान को कम कर देता है। यह सब आप भले न देखें किंतु आप पर औरों की नजर तो होती ही है। भोग- विलास में ज्यादा लिप्त होना , व्यसन में डूबने से भी तो आप सम्मान का अधिकार खो देते हैं।
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इसलिए यदि आप सम्मान चाहते हैं तो एक समय के पश्चात अपनी इंद्रियों को संयमित कर लीजिए। कहीं ज्यादा भोजन करना, ज्यादा बोलना, ज्यादा किसी को निहारना, ज्यादा विलास में डूबना, व्यसन करना सभी आपके मान को कम ही तो करते हैं। इन सबके मूल में हैं तो हमारी इंद्रियां हीं।
सूत्र यह है कि इंद्रियों पर संयम करते ही आप स्व में एक सकारात्मक परिवर्तन महसूस करेंगे। इस सबके लिए पहले मन पर स्वामित्व आवश्यक है और यह आते-आते ही आएगा।
शुभ मंगल
# संयम सूत्र