RBI: रेपो दर जल्द घटने की उम्मीद, मासिक किस्त में मिल सकती है राहत
- एमपीसी बैठक… आरबीआई ने जून, 2019 के बाद पहली बार रुख में किया बदलाव
- 6.5 प्रतिशत पर रेपो दर स्थिर, आखिरी बार फरवरी, 2023 में किया गया था बदलाव
आरबीआई ने रेपो दर में लगातार 10वीं बार बदलाव नहीं किया है। हालांकि, केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्यों ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कुछ संकेत बीच अपेक्षाकृत आक्रामक रुख को बदलकर ‘तटस्थ’ कर दिया।
यह जून, 2019 के बाद पहला मौका है, जब रुख में बदलाव हुआ है। इसका मतलब है कि आरबीआई महंगाई और आर्थिक वृद्धि पर नजर रखते हुए एमपीसी की दिसंबर में होने वाली बैठक में रेपो दर घटा सकता है। इससे मासिक किस्त के मोर्चे पर राहत मिलेगी।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौट्रिक नीति समिति (एमपीसी) को तीन दिवसीय बैठक के बाद बुधवार को कहा, निकट भविष्य में महंगाई घटने का भगेसा है। इससे आर्थिक वृद्धि और महंगाई के बीच बेहतर संतुलन होगा। इसी को ध्यान में रखकर नीतिगत रुख बदलकर तटस्थ किया गया है।
कई अर्थशात्रियों का मानना है कि, फेडरल रिजर्व के नीतिगत दरों में कटौती से ब्याज दर में बदलाव की गुंजाइश है। जरूरत पड़ी तो आरबीआई दिसंबर में न्याज दर घटा सकता है। वहीं कुछ का कहना है कि आरबीआई का रुख में बदलाव करना सकारात्मक संकेत है। इसने दिसंबर, 2024 में ब्याज दर में संभावित कटौती का रास्ता खोल दिया है।
रुख में बदलाव का मतलब…
होम लोन : बैंकों से जुड़े रह चुके जानकारों का कहना है कि, होम लोन वाले ग्राहकों को सस्ती किस्त के लिए दिसंबर तक इंतजार करना होगा।
एफडी : ज्यादा ब्याज दर पर एफडी करने का अब भी समय है। आने बाले समय में ब्याज दरें घटेंगी।
डेट फंड : ब्याज दरों में गिरावट से डेट स्यूचुअल फंडों को फायदा होना चाहिए। जैसे-जैसे दरें घटती हैं, इन फंडों में बॉन्ड का मूल्य बढ़ता है। इससे निवेशकों को बेहतर रिटर्न मिलता है।
निजी खर्च में वृद्धि खपत मजबूत : वहीं आरबीआई के मुताबिक, अर्थव्यवस्था को गति देने वाले कारकों में निजी पूंजीगत खर्च में वृद्धि के संकेत दिख रहे हैं। कंपनियों के बही-खाते हैं। अच्छी बारिश ने कृषि उत्पादन में मदद की है। जलाशयों का स्तर और मिट्टी की नमी बेहतर स्थिति में हैं। इसके अलावा ग्रामीण
और शहरी खपत मजबूत बनी हुईं है। सेवा क्षेत्र अच्छा प्रदर्श कर रहा है।
महंगाई पर जोखिम : सख्ती से लगानी होगी लगाम, नहीं तो फिर से बढ़ जाएगी…
गवर्नर ने कहा, प्रतिकूल मौसम व कई देशों में तनाव बढ़ने से महंगाई के ऊपर जाने का जोखिम है। इसलिए, कीमतों पर कड़ी नजर रखनी होगी। महंगाई पर सख्ता से लगाम लगानी होगी, नहीं तो यह फिर बढ़ जाएगी।
: गवर्नर ने कहा प्रतिकूल आधार प्रभाव व खाद्य पदार्थों कीमतों में तेजी से सितंबर में महंगाई दर में तेजी देखने को मिल सकती है। अन्य कारकों के अलावा 2023-24 में प्याज, आलू और चना दाल के उत्पादन में कमी इसकी प्रमुख बजह होगी।
: आरबीआई ने 2024-25 के लिए खुदरा महंगाई के अनुमान को 4.5 फीसदी पर कायम रखा है। यह दूसरी तिमाही में 4.1 फीसदी, तीसरी में 4.8 फीसदी और चौथी में 4.2 फीसदी रह सकती है। 2025-26 की पहली तिमाही में खुदरा महंगाई 4.3 फोसदी रहेगी।
एनबीएफसी को चेतावनी : गलत तरीके न अपनाएं, होगी कार्रवाई
आरबीआई ने उन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है, जो तेजी से आगे बढ़ने के लिए गलत तरीके अपना रही हैं।
दास ने कहा, एनबोएफसी और छोटी राशि के कर्ज देने वाली इकाइयों (माइक्रो फाइनेंस) में संपत्ति की कुछ श्रेणियों में आक्रामक वृद्धि आगे चलकर जोखिम पैदा कर सकती है। इसलिए, आरबीआई उपभोग उद्देश्यों के लिए कर्ज, सूक्ष्म वित्त ऋण और क्रेडिट कार्ड बकाया जैसे कुछ असुरक्षित कर्ज के मामले में दबाव बढ़ने कौ आशंका पर करीबी नजर रख रहा है। जरूरत पड़ने पर उचित कार्रवाई करने में संकोच नहीं किया जाएगा।
दास ने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि सुक्ष्म वित्त संस्थान और आवास वित्त कंपनियों सहित एनबीएफसी स्थायी व्यावसायिक लक्ष्यों का फलन करें। अनुपालन सर्वप्रथम संस्कृति अपनाएं। एक मजबूत जोखिम प्रबंधन ढांचा बनाएं। ईमानदार और निष्पक्ष व्यवहार संहिता का कड़ाई से पालन करें। ग्राहकों को शिकायतें दूर करें।
आर्थिक वृद्धि मजबूत, उच्च ब्याज दर का असर नहीं…
आरबीआई गवर्नर ने कहा, उच्च ब्याज दर आर्थिक वृद्धि को प्रभावित नहीं कर रही है। आर्थिक गतिविधिवां टिकाऊ और मजबूत बनी हुई हैं। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में पिछले 18 महीनों में मजबूत आर्थिक गतिविधियों का जिक्र किया। लगभग उसी समय आरबीआई ने नीतिगत दर के मोर्चे पर यथास्थिति बनाए रखने का विकल्प चुना था।
सब्सिडी खर्च चिंता का विषय : दास ने कहा, अगर राज्यों की ऊंची सब्सिडी को
ध्यान नहीं दिया जाए तो पहली तिमाही में वृद्धि दर 7 फीसदी से ऊपर होती। राज्यों के अधिक सब्सिडी खर्च से कुल मिलाकर वृद्धि धीमी हुई है।
कर तिमाही के लिए वृद्धि दर में कटौती : चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि अनुमान को 7.2 फीसदी पर कायम रखा है। हालांकि, दूसरी तिमाही के लिए इसे 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी किया गया है। तीसरी और चौथी तिमाही के लिए अनुमान को बढ़ाकर 7.4 फीसदी किया गया है।