MP: पीथमपुर में एशिया का सबसे बड़े ऑटो टेस्टिंग ट्रैक बना नीलगायों का बसेरा, अब हो रही शिफ्टिंग

0

पीथमपुर। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की आर्थिक राजधानी इंदौर (Indore) के पास पीथमपुर (Pithampur) में स्थित राष्ट्रीय वाहन परीक्षण पथ (नेट्रैक्स) (National Vehicle Testing Track (NATRAX) के करीब 3,000 एकड़ में फैले परिसर में नीलगायों ने अपना बसेरा बना लिया है और हादसों के बढ़ते खतरे के मद्देनजर इन जंगली जानवरों को इस परिसर से बचाकर उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने की मुहिम तेज कर दी गई है। अधिकारियों ने बुधवार को इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय के नेट्रैक्स परिसर से बचाई गई करीब 50 नीलगायों को हाल ही में चीतों की बसाहट वाले गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य (Gandhi Sagar Wildlife Sanctuary) में छोड़ा गया है। उन्होंने बताया कि नीलगायों को बचाने के लिए ‘बोमा तकनीक’ का इस्तेमाल किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि पीथमपुर का नेट्रैक्स (National Automotive Test Tracks), एशिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा ऑटो टेस्टिंग ट्रैक है जिसके जरिए गाड़ियों और उनके कल-पुर्जों को बाजार में उतारे जाने से पहले उनके दम-खम को विश्वस्तरीय पैमानों पर परखा जाता है। इंदौर के रालामंडल अभयारण्य के अधीक्षक योहान कटारा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘हमने गुजरे पांच दिनों के दौरान पीथमपुर के नेट्रैक्स से लगभग 50 नीलगायों को बचाकर गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा है।’

गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य, देश में चीतों का नया घर है जहां 20 अप्रैल को दो चीतों ‘प्रभाष’ और ‘पावक’ को छोड़ा गया था। यह अभयारण्य मध्यप्रदेश के नीमच और मंदसौर जिलों में फैला है और पीथमपुर के नेट्रैक्स से इसकी दूरी लगभग 300 किलोमीटर के है। कटारा ने बताया, ‘फिलहाल नेट्रैक्स में 90 और नीलगाय होने का अनुमान है। इन जंगली जानवरों को इस परिसर से बचाकर उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने का हमारा अभियान जारी रहेगा।’

नेट्रैक्स के निदेशक मनीष जायसवाल ने बताया, ‘हमारे परिसर में नीलगाय के चलते अब तक कोई भी हादसा नहीं हुआ है, लेकिन इस जंगली जानवर के कारण हादसों का खतरा जाहिर तौर पर बना हुआ है।’ आगे उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वाहन निर्माताओं की गाड़ियां हमारे ट्रैक पर परीक्षण के दौरान अक्सर 200 से 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी दौड़ती हैं। हम भाग्यशाली हैं कि परीक्षण के दौरान ट्रैक पर दौड़ती किसी गाड़ी की नीलगाय से अब तक टक्कर नहीं हुई है।’

‘बोमा तकनीक’ से बचा रहे नीलगायों की जान
जायसवाल ने बताया कि पिछले दो साल में नेट्रैक्स परिसर से 80 से ज्यादा नीलगायों को सुरक्षित बचाकर उनके प्राकृतिक आवास में भेजा गया है। उन्होंने बताया कि इस परिसर में नीलगायों को वन विभाग के प्रशिक्षित कर्मचारियों की मदद से ‘बोमा तकनीक’ के जरिए बचाया जा रहा है। ‘बोमा तकनीक’ वन्यजीव प्रबंधन की एक पद्धति है जो विशेष रूप से अफ्रीका में मशहूर है। इस तकनीक के तहत जानवरों को एक खास बाड़े में लाया जाता है ताकि उन्हें स्थानांतरण या अन्य उद्देश्यों के लिए पकड़ा जा सके।

बता दें कि पीथमपुर में नेट्रैक्स की औपचारिक शुरुआत 28 जनवरी 2018 को हुई थी और इसके विशाल परिसर में बड़ी बाड़ लगाए जाने से पहले नीलगायों ने इसमें अपना बसेरा बना लिया था। उन्होंने बताया कि नेट्रैक्स परिसर में प्राकृतिक आवास, भोजन और पानी का इंतजाम होने के चलते इसमें नीलगायों की तादाद साल-दर-साल बढ़ती चली गई।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *