महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव परिणाम 5-5 पाइंट में समझें: न तो किसानों का मुद्दा चला, न ही असंतोष का दिखा असर
Assembly Election Result 2024: महाराष्ट्र और झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव और 15 राज्यों में हुए उपचुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं। झारखंड में इंडी गठबंधन को बहुमत मिला है। वहीं, महाराष्ट्र में महायुति ने प्रचंड जीत दर्ज की है। आइए जानते है महाराष्ट्र में अघाड़ी की रणनीति फेल होने के पांच कारण और झारखंड में फिर हेमंत सोरेन सरकार बनाने की पांच वजह।
महाराष्ट्रः अघाड़ी की रणनीति फेल
1- दिखाया योजनाओं ने असर
महायुति की माझी लड़की बहन योजना के तरह गरीब महिलाओं के खाते में हर माह 1500 रुपए जमा किए जाते हैं। इसकी काट में विपक्षी एमवीए ने भी महिलाओं को 3,000 रुपए देने का वादा किया जिसपर जनता ने भरोसा नहीं दिखाया।
2- नहीं बना सोयाबीन मुद्दा
सोयाबीन लगभग 60-70 विधानसभा क्षेत्रों में प्रमुख नकदी फसलों में से एक है। 4892 रुपए के एमएसपी के बावजूद असंतोष को भांपते हुए विपक्ष ने एमएसपी बढ़ाकर 7000 रुपए करने का वादा किया था। जनता ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
3- एनडीए को शिवसेना- एनसीपी से फायदा
शिवसेना और एनसीपी के बीच विभाजन के बाद यह पहला चुनाव था। शिंदे सेना और उद्धव सेना 49 सीटों पर आमने-सामने थी। अजित और और शरद की एनसीपी 38 सीटों पर भिड़ी। शिंदे की सेना और अजित की एनसीपी ही असली साबित हुई।
4- मराठा आंदोलन का असर नहीं
मराठा समुदाय के लिए ओबीसी दर्जे की मांग को लेकर चले आंदोलन ने लोकसभा चुनावों में महायुति उम्मीदवारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। इस बार संघ-संगठन की सक्रियता ने अघाड़ी को इसका फायदा नहीं उठाने दिया।
5- एमवीए को विद्रोहियों से नुकसान
दलों के दो समूहों में बंट जाने से उम्मीदवारों के अंतिम चयन को लेकर असंतोष की स्थिति पैदा हो गई थी। एमवीए की विफलता में बागियों और निर्दलीयों का असर देखा जा रहा है। महायुति को इसका फायदा मिला।
झारखंडः आदिवासी ही निर्णायक
1- ध्रुवीकरण का भाजपा को फायदा नहीं
भाजपा ने राज्य में आदिवासी बहुल संथाल परगना क्षेत्र में कथित बांग्लादेशी घुसपैठ को बड़ा खतरा बताने का नैरेटिव सेट किया था। जनता ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अदिवासी बहुल संथाल परगना में ध्रुवीकरण कराने के प्रयास विफल रहे।
2- इंडिया गठबंधन के साथ आदिवासी
झारखंड में एक तिहाई से ज्यादा (28) एसटी सीटें हैं। आबादी का 26% हिस्सा आदिवासी है। 21 में आदिवासियों आबादी कम से कम एक लाख है। इन सीटों पर झामुमो की अच्छी पकड़ है। भाजपा इसे तोड़ने में सफल नहीं रही।
3- कल्पना सोरेन पास हो गईं
हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के लिए यह चुनाव लिटमस टेस्ट था। सोरेन परिवार से चार मैदान में थे। हेमंत, कल्पना व भाई बसंत जीतने में सफल रहे। भाभी सीता सोरेन (भाजपा) हार गईं। हेमंत ने जीत का श्रेय कल्पना को दिया है।
4- क्या हुआ पू्र्व सीएम परिवारों का
पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा और अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा हार गई हैं। चंपई सोरेन जीतने में सफल रहे लेकिन, उनके बेटे बाबूलाल सोरेन हार गए। रघुबर दास की बहू पूर्णिमा साहू ने कांग्रेस के अजय कुमार को हरा दिया।
5- चल गई ‘टाइगर’ महतो की कैंची
जयराम महतो की पार्टी जेएलकेएम ने आखिरकार कैंची चला ही दी। जयराम महतो को छोड़कर कोई दूसरा उम्मीदवार जीत तो नहीं दर्ज कर पाया, लेकिन इस पार्टी ने कई सीटों पर एनडीए और इंडिया गठबंधन का खेल खराब कर दिया।