चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के अंकल को CJI बनने से रोकी थी इंदिरा गांधी, यह थी साख वजह

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नई दिल्‍ली । जस्टिस संजीव खन्ना देश के मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। उन्होंने सुबह 10 बजे मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली। वह 13 मई, 2025 यानी अगले 6 महीने तक देश के शीर्ष न्यायालय का नेतृत्व करेंगे। जस्टिस संजीव खन्ना ने भी खुद से पहले मुख्य न्यायाधीश रहे डीवाई चंद्रचूड़ की तरह ही जजों की फैमिली से आते हैं। उनके पिता जस्टिस देव राज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे। इसके अलावा उनके चाचा एचआर खन्ना भी सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं। इस तरह दो पीढ़ियों की न्यायिक विरासत जस्टिस संजीव खन्ना के साथ है।

कानूनी क्षेत्र में 40 सालों से ज्यादा का अनुभव

मुख्य न्यायाधीश बने संजीव खन्ना का खुद का कानूनी क्षेत्र में 40 सालों से ज्यादा का अनुभव है। जस्टिस संजीव खन्ना के परिवार की विरासत की भी फिलहाल चर्चा हो रही है। कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान उनके अंकल एचआर खन्ना ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला वाले केस में जो फैसला सुनाया था, वह इंदिरा गांधी सरकार को नागवार गुजरा था। इसी के चलते उन्हें चीफ जस्टिस के लिए पात्र होने पर भी मौका नहीं दिया गया और उनसे जूनियर को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया था। आज भी इस फैसले की न्यायपालिका की निष्पक्षता के मसले पर चर्चा होती है।

क्या था एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी पिछले दिनों इसकी चर्चा की थी। 48 साल पुराने इस केस में हुआ यूं था कि वकील शिवकांत शुक्ला को जेल भेज दिया गया था। उन्हें बिना किसी मुकदमे के ही गिरफ्तार किया गया था। इसके खिलाफ वह जबलपुर हाई कोर्ट गए तो अदालत ने उनके पक्ष में फैसला दिया था और कहा कि जीवन के अधिकार से किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता। फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया तो वहां 5 जजों की बेंच ने फैसला दिया, जिनमें से 4 जजों ने बहुमत से उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया। लेकिन बेंच में शामिल एकमात्र जज एचआर खन्ना ने अलग फैसला दिया।

फैसले में क्या कहा था जस्टिस एचआर खन्ना ने

उन्होंने कहा था कि संविधान द्वारा दिए गए जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) से किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता। इस आदेश के 42 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुट्टास्वामी केस 2017 में दोबारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहाल किया। कहा जाता है कि जस्टिस एचआर खन्ना की यह राय तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को इतनी नागवार गुजरी थी कि चीफ जस्टिस बनने का पात्र होते हुए भी उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया था और फिर उनसे जूनियर को मौका दिया गया।

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