अदालत ने इस पर सवाल उठाया कि कैसे एक अपराधी को मीडिया में बोलने की अनुमति दी गई और यह भी कि क्या पुलिस और अपराधियों के बीच कोई मिलीभगत है।
नई दिल्ली । लॉरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) इंटरव्यू मामले में विशेष जांच दल (SIT) द्वारा दायर की गई रद्दीकरण रिपोर्ट पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके कई दिनों के बाद हाईकोर्ट के ही एक खंडपीठ ने निर्देश दिया है कि इस मामले की जांच के लिए एक नई एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए। इस मामले को आपराधिक साजिश, उकसावे, जालसाजी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत जांच करने के लिए कहा गया है।
पुलिस अधिकारियों और अपराधी के बीच सांठगांठ
न्यायमूर्ति अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और न्यायमूर्ति लपिता बनर्जी की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दायर इस रिपोर्ट को देखने के बाद यही लगता है कि इस मामले में पुलिस अधिकारियों और अपराधी के बीच सांठगांठ है।
पीठ ने इसे अपराध मानते हुए कहा कि पुलिस अधिकारियों ने अपराधी को जेल में एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग करने की अनुमति दी। इंटरव्यू के लिए जेल में एक स्टूडियो जैसी सुविधा प्रदान की। इससे अपराध का महिमामंडन किया जा रहा है। उसके साथियों द्वारा जबरन वसूली सहित अन्य अपराधों को बढ़ावा देने की मकसद से ऐसा किया गया।
पीठ ने कहा, “पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता से अपराधी या उसके साथियों से अवैध रिश्वत लेने का संकेत मिलता है। यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध बनता है। इसलिए मामले की आगे जांच की आवश्यकता है।”
जेल में कोई साक्षात्कार नहीं हुआ: डीजीपी का दावा
अदालत ने डीजीपी द्वारा दिए गए पिछले बयान के लिए भी स्पष्टीकरण मांगा है, जिसमें दावा किया गया था कि जेल में कोई साक्षात्कार नहीं हुआ था। पीठ ने कहा कि राज्य से यह भी स्पष्ट करने के लिए कहा गया है कि क्या बिश्नोई को वहां रखने के लिए बार-बार रिमांड पर लेना जानबूझकर उसे एक ही स्टेशन पर रखने का प्रयास था या फिर उसे सामान्य रूप से जांच के लिए जरूरी था।
आपको बता दें कि इससे पहले डीजीपी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बयान दिया था कि पंजाब की किसी भी जेल में साक्षात्कार नहीं हुआ था। यह इंटरव्यू सीआईए स्टाफ, खरड़, एसएएस नगर जिले के परिसर के भीतर आयोजित किया गया था। कोर्ट को ऐसा लगता है कि यह पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से आयोजित किया गया था।