Maha Shivaratri: भगवान शिव ने ताड़कासुर राक्षस का अंत कर यहां किया था विश्राम, ये है पूरी कथा

0

देवभूमि उत्तराखंड में रिखणीखाल मार्ग पर चखुलियाखाल से पांच किमी की दूरी पर स्थित ताड़केश्वर धाम में वैसे तो पूरे सालभर श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन माघ मास में महाशिवरात्रि पर्व पर यहां आसपास के गांवों के साथ ही दूरदराज के लोगों की भीड़ जुटती है। समुद्र तल से करीब छह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को भगवान शिव की विश्राम स्थली कहा जाता है।

स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित विष गंगा व मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी ताड़केश्वर धाम में माना गया है। मंदिर परिसर में मौजूद चिमटानुमा व त्रिशूलनुमा देवदार के पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को प्रबल करते हैं। मान्यता है कि ताड़कासुर राक्षस का वध करने के बाद भगवान शिव ने इसी स्थान पर आकर विश्राम किया।

विश्राम के दौरान जब भगवान शिव को सूर्य की तेज किरणों से बचाने के लिए माता पार्वती ने शिव के चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए, जो कि आज भी ताड़केश्वर मंदिर परिसर में मौजूद हैं। दूसरी मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर करीब 1500 वर्ष पूर्व एक सिद्ध संत पहुंचे थे।

देश-विदेश से मंदिर में श्रद्धालु पहुंचते हैं

संत गलत कार्य करने वालों को फटकार लगाने के साथ ही उन्हें आर्थिक व शारीरिक दंड की चेतावनी भी देते थे। क्षेत्र के लोग इन संत को शिवांश मानते थे। इस पूरे क्षेत्र में संत का बहुत प्रभाव था। संत की फटकार के चलते ही इस स्थान का नाम ताड़केश्वर पड़ा।

मंदिर के मुख्य पुजारी संदीप सकलानी का कहना है कि ताड़केश्वर का मंदिर अति प्राचीन है। मंदिर में देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं व यहां की रमणीक छटा को देख मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। माघ व श्रावण मास में मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, हालांकि वर्ष भर श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर भगवान शिव के दर्शन और जलाभिषेक करते हैं।

 

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *