नवरात्र के प्रथम दिन भक्त नो विग्रह रुपों में माता के पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की उपासना करते हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। सती स्वरुप द्वारा यज़ अग्नि में स्वयं को भस्म करने के पश्चात उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया।
उनका यह स्वरूप लावण्यमयी एवं अतिरुपवान है। माता के एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में कमल का फूल सुशोभित होता है। उनका वाहन वृषभ अर्थात बैल है। भगवान शंकर की भांति वे भी पर्वतों पर निवास करती हैं। प्रत्येक प्राणी में उनका स्थान नाभि चक्र से नीचे स्थित मूला धार चक्र में है। यही वो स्थान है, जहां उनकी शक्ति ‘कुंडलिनी’ के रूप में विराजमान रहती है।
नवरात्र के पहले दिन इनकी उपासना में योगी एवं साधक अपने मन को मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, क्योंकि इसी स्थान से योग साधना का प्रारंभ होता है। माता शैलपुत्री अपने साधकों को साधना में लीन होने की शक्ति, साहस एवं बल प्रदान करती हैं, साथ ही आरोग्य का वरदान भी देती हैं। नवरात्र के पहले दिन जो भक्त सच्ची भक्ति उपासना द्वारा उनके इस स्वरूप को जागृत करता है, माता उसका निस्संदेह कल्याण करती हैं।
ऐसे करें मां शैलपुन्री को प्रसन्न :
देवी संवाद अनुसार, माता को सफेद एवं लाल रंग की क्स््तुएं बहुत पसंद हैँ, इसलिए नवरात्र के पहले दिन उनके इस स्वरूप के समक्ष सफेद या लाल रंग के पुष्प अर्पित कर लाल सिंदूर लगाएं।
गाय के दूध से बने पकवान एवं मिष्ठान का भोग लगाने से माता भक्तों से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैँ। साथ ही भक्तों के घर की दरिद्रता को दूर करके उनके परिवार के सभी सदस्यों को रोगमुक्त कर देती हैं। भक्त को संशय रहित होकर माता का पूजन करना चाहिए।