सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जन्मतिथि का निर्णायक सबूत नहीं ‘आधार’

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Aadhar Card: सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना मुआवजा गणना से संबंधित एक मामले में आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को निर्णायक मानने से इनकार कर दिया और कहा कि मृतक की आयु का निर्धारण स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र (टीसी) में दर्ज जन्म तिथि से किया जा सकता है न कि आधार कार्ड से।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि टीसी में अंकित जन्मतिथि को किशोर न्याय कानून की धारा 94 के अंतर्गत वैधानिक मान्यता प्राप्त है जबकि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) ने 2023 के परिपत्र में कहा था कि ‘आधार’ का उपयोग पहचान पत्र के लिए किया जा सकता है लेकिन यह जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है। शीर्ष अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें मुआवजे की गणना के लिए आधार कार्ड में दर्ज जन्म तिथि का उपयोग किया गया था।

एक समान सेवा लाभ देने के निर्देश…
एक अन्य मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सभी हाईकोर्ट जजों को बिना किसी भेदभाव के एक समान पेंशन व अन्य सेवा लाभ देने के निर्देश दिए। सीजेआइ डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने पटना हाईकोर्ट के एक जज की तथा अन्य याचिकाओं पर निर्णय देते हुए यह निर्देश दिए। याचिकाओं में आपत्ति की गई थी कि सर्विस व बार कोटा से आने वाले जजों के पेंशन व अन्य सेवा लाभों में अंतर है।

कोर्ट ने आदेश में कहा कि अनुच्छेद 216 इस बात में कोई भेद नहीं करता कि हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति कैसे की जाती है। एक बार हाईकोर्ट जज बनने के बाद सभी जज समान रेंक के हाे जाते हैं और उनकी नियुक्ति के तरीकों के आधार पर वेतन, पेंशन या अन्य लाभों के भुगतान पर कोई भेद नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वतंत्रता के बीच एक अंतर्निहित संबंध है। जजों के सेवा लाभ तथा पेंशन आदि सेवानिवृत्ति लाभों में भेद करना असंवैधानिक होगा।

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