पूजा-अनुष्ठान: आरती से ही कल्याण…
- धर्मशास्त्रों के अनुसार कोई भी पूजा-अनुष्ठान बिना आरती के संपन्न नहीं होता, इसलिए पूजा के बाद आरती किए जाने का विशेष महत्व है।
भगवान की पूजा से मन को प्रसन्नता और आत्मा को शांति मिलती है। श्रद्धा भाव से की गई पूजा-पाठ में इतनी शक्ति होती है कि यह उपासक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है। लेकिन कोई भी पूजा बिना आरती के संपन्न नहीं होती, इसलिए पूजा के बाद आरती आवश्यक है। माना जाता है कि सच्चे मन और श्रद्धा से की गई आरती बेहद कल्याणकारी होती है। आरती को ‘नीराजन’ भी कहा गया है। नीराजन का अर्थ है ‘विशेष रूप से प्रकाशित करना’, यानि देव पूजन से प्राप्त होने बाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर व्यक्तित्व को उज्ज्वल कर दे।
ये है धार्मिक मान्यता
शास्त्रों के अनुसार, अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का बदला हुआ रूप है। ऐसे में पंडितों व जानकारों के अनुसार मान्यता है कि अग्निदेव को साक्षी मानकर उनकी मौजूदगी में की गई प्रार्थाएं अवश्य सफल होती हैं। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक भी है, भगवान प्रकाश और ज्ञान-रूप में ही हर जगह व्याप्त हैं। ज्ञान प्राप्त होने से अज्ञानरूपी मनोविकार दूर होते हैं, जीवन के कष्ट मिटते हैं। इसलिए आरती के माध्यम से प्रकाश की पूजा को परमात्मा की पूजा भी माना गया है।
वहीं स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान श्रीविष्णु ने स्वयं कहा है कि ‘जो मनुष्य अनेक बत्तियों से युक्त और घी से भरे दीप को जलाकर मेरी आरती उतारता है, वह कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है। जो अगहन के महीने में मेरे आगे होती आरती का दर्शन करता है, वह अंत में परमपद को प्राप्त होता है। जो मेरे आगे भक्तिपूर्वक कपूर की आरती करता है, वह मनुष्य मुझ अनंत में प्रवेश कर जाता है। यदि मंत्रहीन और क्रियाहीन मेरा पूजन किया गया है, तो भी वह मेरी आरती करने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है।
जो मार्गशीष मास में कपूर से दीपक जलाकर मुझे अर्पण करता है, वह अश्वमेघ यज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार करता है।
माना गया है कि आरती करने से ही नहीं देखने से भी बहुत पुण्य लाभ मिलता है। पद्म पुराण
के अनुसार, कुमकुम, अगर, कपूर, घृत और चंदन की पांच या सात बत्तियां बनाकर या फिर रुई और घी से बत्तियां बनाकर शंख, घंटा आदि बजाते हुए प्रभु की आरती करनी चाहिए। जो आरती ऊंचे स्वर और एक ही लय-ताल में गाई जाती है, उससे पूरा वातावरण भक्तिमय,संगीतमय हो जाता है। यह माहौल हर स्थिति में तन-मन को शांति देने वाला होता है।
मान्यता है कि आरती दिन में एक से पांच बार की जा सकती है, परंतु घरों में प्रात:कालीन और संध्याकालीन आरती ही की जाती है। अलग-अलग देवताओं की स्तुति के लिए अलग-अलग वाद्य यंत्रों को बजाकर गायन करने से देवी-देवता शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, सदैव उनकी कृपा बनी रहती है।
आरती के बाद दोनों हाथों से आरती ग्रहण करने के पीछे यह तर्क माना गया है कि भगवान की शक्ति उस ज्योति में समा जाती है जिसको भक्त अपने मस्तक पर ग्रहण करके धन्य हो जाते है। आरती वह सुगम माध्यम है जिसके द्वारा दैवीय शक्ति को पूजन-स्थल तक पहुंचने का मार्ग मिलता है।
आरती करने की विधि…
पूजा के बाद यदि आरती नियमानुसार की जाए, तो उससे पूजा के फल में अतिशय वृद्धि होती है। आरती करने से पहले आरती के थाल को सुंदर तरीके से सजाएं। इसके लिए आप तांबे, पीतल या फिर चांदी की थाली ले सकती हैं। फिर थाली में रोली,कुमकुम, अक्षत, ताजे पुष्प और प्रसाद के लिए कुछ मीठा रख लें। आरती के लिए मिट॒टी, चांदी, तांबे या पीतल के दीपक में शुद्ग घी या कपूर का दीया जलाएं। आटे का दीपक भी पूजा के लिए बहुत शुभ माना गया है।
आरती करने के लिए दीपक रखी आरती की थाली को भगवान के समक्ष सही तरह से घुमाएं। सबसे पहले इसे भगवान के चरणों की तरफ चार बार घुमाएं, फिर उनकी नाभि की तरफ दो बार घुमाएं और मुंह की तरफ ले जाकर एक बार घुमाएं। इसी तरह कुल सात बार से ज्यादा आरती को दोहराएं। आरती के बाद शंख में रखे जल से आरती करके सभी पर छिड़काव करें। मान्यता है कि इससे
जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है।