Election review: हरियाणा में कांग्रेस को आखिर कौन ले डूबा?

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  • कांग्रेस केवल माहौल के भरोसे रही…बूथ मैनेजमेंट में पिछड़ी, दलित कार्ड का सबसे ज्यादा नुकसान, हुड्डा को फ्री हैंड करने का फॉर्मूला भी उलटा पड़ा
  • गुटबाजी, संगठन की कमी, बागी और भितरघात बने खास कारण

लोकसभा चुनावों के बाद से हरियाणा में कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल को पार्टी चार महीने भी संभाल नहीं पाई। केवल माहौल के भरोसे बैठी कांग्रेस पूरा चुनाव जनता के भरोसे छोड़ दिया। वहीं रही सही कसर गुटबाजी और संगठन की कमी ने पूरी कर दी। जिसके चलते कांग्रेस बूथों पर कमजोर रही।

टिकट नहीं मिलने वाले बागियों और नाराज नेताओं की भितरघात ने भी पार्टी के समीकरण बिगाड़ दिए। दूसरी ओर, टिकट वितरण से लेकर तमाम मामलों पर हाईकमान की ओर से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह को फ्री हैंड करने का फॉर्मूला भी उलटा पड़ गया। केवल जाट चेहरे को आगे किए जाने से प्रदेश की दूसरी विरादरियों में इसके प्रति नाएजगी थी और लोगों ने इसे मतदान में जाहिर भी कर दिया।

शीर्ष नेतृत्व भी शांत मतदाताओं के मूड को भांप नहीं पाया और यही भारी पड़ गया। कांग्रेस फिर सत्ता में आते-आते रह गईं और दस साल का सूखा दूरकरने में कामयाब नहीं हो पाई। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता शुरू से ही अति उत्साह में नजर आए। टिकटों में खूब देरी हुई और नामांकन के अंतिम दिन तक पार्टी टिकट वितरण करती रही।

वहीं दिग्गज नेता अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए दस दिन तक दिल्ली में ही डेश डाले रहे,जबकि भाजपा लगातार फील्ड में काम करने में जुटी रही। इसके अलावा, भाजपा की तरफ से चलाया गया दलित कार्ड भी काम कर गया।कुमारी सैलजा को जाति पर व्यक्तिगत टिप्पणी का भी गलत संदेश गया। भाजपा ने जाट और एससी बोट बैंक के गठजोड़ को तोड़ने के लिए आरक्षण के वर्गीकरण का फॉर्मूला दिया, जिससे कांग्रेस का वोट बैंक बंट गया।

कुमारी सैलजा और सुरजेवाला जैसे नेताओं की प्रचार से दूरी भारी पड़ी…
कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला विधानसभा चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन हाइंकमान ने इजाजत नहीं दी। इससे सैलजा खासी नाराज नजर आई। 12 दिनों तक ग्रचार से ही । इसको भाजपा ने जमकर मुद्दा बनाया दलितों को अपनी ओर करने को कोशिश की | हाईकमान के आदेश के बाद सैलजा 10 से 15 सीटों पर ही प्रचार करने उतरीं। वहीं, रणदीप सुरजेबाला अपने बेटे आदित्य सुरजबाला के क्षेत्र कैथल व चौधरो बीरेंद्र सिंह बेटे बृजेंद्र सिंह के क्षेत्र उचाना से बाहर ही नहीं निकल पाए।

कैप्टन अजय यादव भी अपने बेटे के हलकों तक ही सीमित रहे। इससे संदेश गया कि हुड्डा हो कांग्रेस क सीएम के अगले चेहरे हैं। पहले से ही खेमों में बंटी कांग्रेस को इसका नुकसान हुआ है और पूरा दारोमदार हुड्डा पर आकर टिक गया। इसका गलत संदेश गया। पूरे चुनाव में भी कांग्रेसी दिगज नेता एकजुट नजर नहीं आए। राहुल गांधी ने जरूर के सैलजा और हुइडा के हाथ लेकिन दिल फिर भी नहीं मिल पाए।

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