Navratri of Kashmiri: कश्मीरी पंडित शिवरात्रि नहीं, हर-रात्रि मनाते हैं…नवरात्र में करते हैं मां उमा की पूजा
- कश्मीरी पंडितों ने दुश्वारियां झेलीं, उत्पीड़न सहे…लेकिन धर्म-परंपराएं नहीं छोड़ी, सड़कों पर मनाते रहे त्योहार
कश्मीर से विस्थापित होने के बाद कश्मीरी पंडितों ने तमाम दुश्वारियां झेलीं, उत्पीड़न सहे, टेंट में सड़कों पर रहना पड़ा, लेकिन धर्म के नियमों पर चलते रहे। परंपराओं को नहीं छोड़ा, सड़कों पर त्योहार मनाने पड़े तो सड़क किनारे से पत्थर उठाकर प्रतीकात्मक मंदिर बनाकर पूजा की।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के माहौल के बीच कश्मीरी पंडितों से बातचीत की तो एक अलग ही कहानी सामने आईं। कश्मीरी पंडित शिवरात्रि एक दिन पहले मना लेते हैं जिसे हरि सत्रि कहते हैं, वहीं नवरात्र में मां उमा की पूजा धूमधाम से करते हैं। कश्मीरी पंडितों की पूजा-पद्धति उनके मांसाचार और पूजा प्रसाद में मांस अर्पण समेत अन्य तमाम सचालों पर काश्मीर से जुड़े कई लोग आते हैं कि यह सबकुछ सनातन परंपरा का हिस्सा है। यह पंरपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और नीलमद पुराण, तंत्रालोक में इसका जिक्र विस्तृत रूप से है। कई जानकार कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों की संस्कृति, उनके व्रत, त्योहार और परंपरा को समझना है तो यहां की शैव, वैष्णव, शाक्त परंपरा को समझना होगा।
नीलमद पुराण को पढ़ना होगा और इसके साथ ही आचार्य अभिनव गुप्त का तंत्रालोक पढ़ना होगा। कारण, कश्मीर तंत्र का गढ़ रहा है। शाक्त पंरपरा और उसके साथ तंत्र जुड़ा है, तंत्र साधना में यह सब चीज आती हैं। इन सभी के बारे में विस्तार से तंत्रालोक बताता है। कहते हैं कि नैष्णव परंपरा भी हम मानते हैं और उस हिसाब से भी पूजन करते हैं। उसमें शुद्ध शाकाहारी व्यंजन बनते हैं, पूरी शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। नवरात्र में मां उमा की पूजा धूमधाम से करते हैं।
ऐसे जानें नीलमद पुराण में पूरी परंपरा…
जानकारों के अनुसार नीलमद पुराण सिर्फ पूजा ही नहीं बताता, इसमें कश्मीर को नदियों की कथाएं, कश्मीर के देवी-देवता, यहां के महात्म, परपताओं का वर्णन है। वे बताते हैं कश्मीरी पंडित शिवरात्रि एक दिन पहले ही मना लेते हैं। उसे हर रात्रि कहते हैं और स्थानीय कश्मीरी भाषा में हेरथ भी कहते हैं। पुराने समय में बलि को परंपरा रहीं होगी अब नहीं है। मान्यता है कि बटुक नाथ भेरव शिव के ही एक रूप हैं। लेकिन, मांसाचार शिवलिंग पर अर्पित नहीं होता है, कभी भी नहीं।
बताया जाता है कि यह सब सनातन का हिस्सा उसी तरह है जिस तरह मैथिली ब्राह्मणों में, पश्चिम बंगाल और नेपाल के भी कई क्षेत्रों में यह सब पूजापाठ का हिस्सा हैं। कालभैरव को पूरे देश दुनिया में मदिरा का अर्पण किया जाता है। कश्मीर में जब बर्फ गिरती थी तो उन्हें बर्फ चढ़ाई जाती थी।
वासुतोष पति की पूजा का भी महत्व
जानकारों का कहना है कि कश्मीरी पंडित सर्दियों में घर देवता दिवस मनाते हैं। इसमें बासुतोष पति देवता की पूजा करते हैं। वे मानते हैं कि हर घर का एक देवता होता है।
: सनातन धर्म में कहीं भी शादी हो जब दूल्हा पहली बार लड़की के घर पहुंचता है तो चौखट की पूजा कराई जाती है, वही है घर का देवता है जो घर का ख्याल रखता है। जानकारों ने कहा कि धर्म ही हमारी पहचान है और कश्मीरी पंडितों ने धर्म और पंरपरा को बचाए रखने के लिए सीमित संसाधनों में ही बहुत संघर्ष किया है।