Badrinath: जहां हिमस्खलन के डर से नहीं बजता है शंख, वहां चल रहे हथौड़े

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  • माणा हादसे पर वैज्ञानिकों की चिंता

भगवान विष्णु को समर्पित बदरीनाथ धाम आठवें बैकुंठ के नाम से भी जाना जाता है। सर्वविदित है कि विष्णु भगवान को शंख प्रिय है, लेकिन बदरीनाथ मंदिर में शंख ध्वनि वर्जित है। इसके धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं। कहा जाता है कि शंख ध्वनि के कंपन से हिमस्खलन न हो जाए, इसके लिए मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता है। परंतु मौजूदा समय में बदरीनाथ मास्टर प्लान के साथ ही सड़कों के निर्माण में हथौड़े से लेकर जेसीबी तक गरज रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि माणा घाटी बेहद संवेदनशील है। यहां मानवीय गतिविधियां कम से कम हो, जिससे ग्लेशियरों पर इसका बुरा असर न पड़े।

ज्ञात हो कि, बदरीनाथ धाम में नीलकंठ पर्वत, नर-नारायण, कंचन गंगा, सतोपंथ, माणा और कुबेर पर्वत स्थित हैं। इसके अलावा कई अन्य चोटियां भी हैं जो बर्फ से ढकी रहती हैं। पूर्व में बदरीनाथ से लेकर माणा क्षेत्र में अधिक बर्फबारी होती थी। यहां हिमाच्छादित चोटियों से हिमस्खलन न हो, इसकी डर से बदरीनाथ मंदिर में शंख ध्वनि नहीं होती थी। इस संबंध में बदरीनाथ के धर्माधिकारी बीसी उनियाल का कहना है कि बदरीनाथ में शंख से अभिषेक पूजा संपन्न की जाती है और बदरीनाथ के भोग को पवित्र किया जाता है। लेकिन यहां शंख बजाना वर्जित है। संभवत: हिमस्खलन की घटना न हो, इसके लिए यहां शंख बजाना वर्जित है।

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​​वहीं कुछ भू वैज्ञानिकों का तो यहां तक कहना है कि बदरीनाथ से माणा तक पूरी घाटी संवेदनशील है। पहले इस क्षेत्र में मानवीय आवाजाही कम थी। बदरीनाथ धाम में भी शंख न बजने के पीछे वैज्ञानिक कारण यही था कि हिमाच्छादित चोटियों में कंपन न हो। लेकिन अब धाम में मानवीय गतिविधियां बढ़ रही हैं। यहां बेतहाशा निर्माण हो रहे हैं। जिस कारण हिमस्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं।

यहां तक माना जाता है कि, सदियों पूर्व बदरीनाथ मंदिर का निर्माण जब हुआ होगा तो पहले उस स्थान का अच्छे से अध्ययन हुआ होगा। वैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मंदिर बनाया गया है। बदरीनाथ मंदिर के ठीक ऊपर मानव आंख की भाैं की तरह एक चट्टान है। वहां जब भी हिमस्खलन होता है तो वह बामणी गांव की तरफ डायवर्ट हो जाता है।

 

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