# विचार सूत्र: कुछ चील-कौए इसी प्रतीक्षा में बैठे थे

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@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…

 

 

नमस्कार,

आज बात कुंभ हादसे की …
कुछ चील, कौए इसी प्रतीक्षा में बैठे थे

जिस प्रयागराज में यूरोप के कई देशों के बराबर की भीड़ उमड़ पड़ी हो। जहां चहुं ओर नरमुंड ही नरमुंड दिखाई देते हों। वहां पिछले 15 दिनों से व्यवस्था सुचारू क्यों संचालित हो रही थीं? कोई बड़ा हादसा क्यों नहीं हो रहा? आखिर क्यों दुनिया भर के लोग इसे कौतुक भाव से देखने आ रहे हैं, शोध कर रहे हैं यह सारी बातें कुछ विघ्नसंतोषियों को नागवार गुजर रही थी। वे चील, कौए की भांति बस इस प्रतीक्षा में थे कि कब ऐसा कुछ घटित हो जाए और वो कांव -कांव कर सकें ।‌ उन्हें अवसर मिल जाए कि देखिए जनाब कितना कुप्रबंधन है, कैसी बंद इंतजामी है , सारी व्यवस्था फेल है।

 

कदाचित मौनी अमावस्या को हुई अप्रिय घटना से उनके मन की हो ही गई। जब दृष्टि अशुभ हो और मन में कुविचार भरे हों तो भला यही सब तो सुहाता है। इतने विराट और अप्रतिम आयोजन में नेत्र कुछ और ही तो खोजते हैं। जहां मक्खियों को भिनभिनाने लायक कोई स्थान मिल सके। और मौनी अमावस्या को उन्हें वह मिल भी गया। यह सत्य है कि जो घटा वह मर्माहत करने वाला है, वो सारे दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अरसे तक भीतर से कचोटते रहेंगे।

 

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किंतु ऐसा चरित्र सभी का तो नहीं है। उसे वह लोग नाकामी की तरह ही तो पेश करेंगे ताकि सारे किए कराए पर गोबर कर दिया जाए। मैं इस बात का पक्षधर रहा हूं धार्मिक स्थलों और आयोजनों में वीआईपी कल्चर को सदैव के लिए समाप्त कर देना चाहिए। भला कोई राजनैतिक, प्रशासनिक, पूंजीपति भगवान के दरबार में वीआईपी कैसे हो गया। वहां तो सब एक ही छत्र के तले हैं और वह है उस परम शक्तिशाली का। वहां कौन साधारण और कौन असाधारण।

इन तथाकथित वीआईपी के फेर में कानून व्यवस्था कितनी पंगु हो जाती है। श्रद्धालु जो वास्तव में संपूर्ण श्रद्धा के साथ शामिल हुए वे दोयम दर्जे के हो जाते हैं । भीड़ नियंत्रण आसान कभी नहीं रहा। किंतु हम यदि अतीत से सबक नहीं सीखते तो सब नष्ट ही तो कर बैठते हैं। एक विनती उन महात्माओं से कि सभी जगह कुदृष्टि न डालें। महाकुंभ में बहुत कुछ विलक्षण भी है उसे भी निहारिए,उसकी भी ब्रांडिंग कीजिए, भगदड़ पर तो आप पर्याप्त छीछालेदर कर चुके हैं।

 

LIFE COACH Dr ASHISH DWIVEDI

सूत्र यह है कि भगदड़ से हुई मौतों से संपूर्ण भारतवर्ष स्तब्ध और आहत है उस दुस्वप्न को हम शीघ्र भूलकर आगे की व्यवस्था को निर्बाध संचालित करने में कितना सहयोग करते हैं यह महत्वपूर्ण है पत्रकारिता का एक पथ यह भी तो है।

शुभ मंगल
# विचार सूत्र

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