गर्जना बनी रहना चाहिए

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@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…

नमस्कार,

आज बात वीर रस की …
गर्जना बनी रहना चाहिए

रसों का जीवन में जीने का अपना आनंद है। नव रस की रचना यूं ही तो नहीं की गई। प्रत्येक रस का अलग-अलग भाव है। हमें समय -समय पर हर रस को अपनाना भी चाहिए। कब वात्सल्य रस उमड़ता है और कब हास्य। कब श्रृंगार उपजता है और कब करुणा। सभी रसों के बीच एक महत्वपूर्ण रस है – वीर रस। इसे तो मानो हमने बिसार ही दिया है। वीर रस का भाव बिल्कुल अलग होता है। किंतु हम सभी ने वीर रस को काव्य कृतियों में या राष्ट्र भक्ति की फिल्मों तक सीमित कर दिया है। वीर रस का वेग वहीं उमड़ता है और फिर शांत भी हो जाता है।

अपनी तरुण अवस्था में मैंने स्वयं इस वीर रस का यथासंभव आनंद लिया। जाने कितने झगड़े-फसाद हुए। एक आयु उपरांत आप शांतचित्त होने लगते हैं। सामाजिक मर्यादा और अपनी गरिमा के फेर में हाथ उठाना तो दूर जोर देकर गर्जना भी बंद सा हो जाता है। मुझे स्मरण है पिछली बार करीब आठ बरस पहले एक जेबकतरे को अकेले ही उसके घर से मारते हुए लाया अपनी बाइक पर बैठाकर पिताजी के सम्मुख पेश किया था। उसने टैक्सी में उनका जेब काटने की हिमाकत जो की थी। अपना जुर्म भी नहीं कुबूल रहा था। आखिरकार पैसे लौटाने राजी हो गया।

 

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उसके बाद सामाजिक छवि के फेर में बहुत बार अपने आक्रोश को जप्त कर लेता। अभी एक दिन वह फिर फट पड़ा। एक ट्रेक्टर ट्राली वाला आगे – आगे बेपरवाह सा बड़ी गति से ईंट भरकर जा रहा था। कुछ ईंट जमीन पर गिर रहीं थीं। एक बिल्कुल मेरे समीप ही गिरी। उसे पीछे से आवाज़ दी कि जरा आहिस्ता चलाओ। किंतु वह अनसुनी कर बेधड़क भागे जा रहा था। किसी बड़ी दुर्घटना से एकदम बेखबर! आखिर कुछ देर बाद सब्र जवाब दे गया। इसको सबक सिखाना जरूरी लगा। अपनी गाड़ी से ओवरटेक कर उसके सामने आया और ट्रेक्टर रुकवाया।

बगैर किंतु – परंतु के सीधे उसको खींचकर दो तमाचे रसीदे तब तक और लोग भी आ गए। सबने कहा आपने ठीक किया यह ड्राइवर नशे में प्रतीत होता है। हाथ सालों से किसी पर उठे नहीं थे इसलिए थोड़ी झिझक भी हुई। सदैव इस भय से कि लोग क्या कहेंगे। अरे ये तो सड़क पर मारपीट करने लगे। हालांकि एक – दो तमाशाई लोगों ने वीडियो भी बना लिया। अब वह उसका क्या करते हैं वे जाने। किंतु सत्य यह है कि इस घटना ने अरसे से बंद हाथों की जकड़न को खोल दिया। ट्रेक्टर की गति सामान्य हो गई।

 

LIFE COACH Dr ASHISH DWIVEDI

 

सूत्र यह है कि जीवन में कभी – कभार वीर रस को भी जाग्रत कर लेना चाहिए। खामोश मिजाजी अनेक बार आपको जीने नहीं देती। समय आने पर गर्जना भी होती रहे, मौका पड़ने पर हाथ भी उठ सके वरना व्यक्तिव में लिजलिजापन आ जाएगा।

शुभ मंगल

# रस सूत्र

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