‘तो क्या नेहरू जी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार संविधान विरोधी थी?’
- किरेन रिजिजू ने पूछा,कांग्रेस के पास ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विरोध करने के पीछे ठोस कारण क्या?
- कहा, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के पहले दो दशकों में भारत में एक साथ होते थे चुनाव
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने मंगलवार को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में आज यह एक गंभीर चर्चा का विषय बन चुका है। लेकिन, इसे लेकर मौजूदा समय में मतभेद देखने को मिल रहे हैं। खासकर कांग्रेस लगातार विरोध कर रही है। मगर, सवाल यह है कि उसके विरोध के पीछे ठोस कारण क्या है?
वन-नेशन, वन-इलेक्शन नेहरू के दौर में हुआ था
मंत्री ने कहा, “कांग्रेस पार्टी का यह कहना है कि ” वन नेशन, वन इलेक्शन” से भारतीय संविधान और हमारे संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा। उनका तर्क है कि अगर देश में एक साथ चुनाव होंगे, तो विभिन्न राज्यों के विशेष मुद्दे और उनकी स्थानीय राजनीति पर असर पड़ सकता है। लेकिन क्या यह तर्क सही है? अगर हम इतिहास की ओर देखें, तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के पहले दो दशकों में भारत में एक साथ चुनाव होते थे। उस समय देश में नेहरू जी की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार थी, और तब क्या यह प्रक्रिया संविधान विरोधी थी? अगर नहीं, तो आज कांग्रेस द्वारा इस मुद्दे पर उठाए गए सवाल क्या वास्तव में सही हैं?”
एक साथ चुनाव की प्रक्रिया पर विचार किया जाना चाहिए
उन्होंने कहा, “देश के अधिकांश नागरिक आज “वन नेशन, इलेक्शन” के पक्ष में हैं और अगर कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर खड़ी होती है, तो यह केवल सरकार की नीति के खिलाफ एक राजनीतिक कदम के रूप में ही दिखेगा। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि इस बदलाव के लिए समर्थन करना चाहिए, ताकि भारत का भविष्य और मजबूत हो सके।” उन्होंने आगे कहा, “यह मुद्दा संसद में चर्चा का विषय बनेगा और इस पर विस्तृत विमर्श होगा, लेकिन फिलहाल कांग्रेस पार्टी को यह याद रखना चाहिए कि वे खुद उन्हीं दशकों में सत्ता में थे जब एक साथ चुनाव होते थे। क्या उस समय की सरकारें अवैध थीं? अगर नहीं, तो आज उनका विरोध क्यों? यही सवाल जनता के मन में उठता है।” उन्होंने कहा, “राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को यह समझना चाहिए कि अगर वे स्वयं गठबंधन सरकार का हिस्सा हैं और अलग-अलग राज्यों में चुनाव होते हैं, तो क्या वे खुद अवैध चुनावों का हिस्सा नहीं हैं? यह बेमानी विरोध अब सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा है, जबकि देश के समग्र विकास और भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक साथ चुनाव की प्रक्रिया पर विचार किया जाना चाहिए।”