स्वयं पीएम मोदी ने जिनकी चर्चा की, उन जीवन चंद्र जोशी की अभी दो खास इच्छाएं पूरी होनी बाकी हैं

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– रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 122वें एपिसोड में प्रधानमंत्री मोदी ने की थी जीवन जोशी की चर्चा

– जानें जीवन चंद्र जोशी की कहानी

अल्मोड़ा से हल्द्वानी में आकर जीवन चंद्र जोशी अपनी मेहनत की बदौलत पूरे क्षेत्र का नाम रोशन कर दिया है। यहां कठघरिया चौराहे पर ही इनकी एक दूकान भी है जिसका नाम है चाचू बगेट आर्ट एवं वुड क्राफ्ट ट्रेनिंग सेंटर है। देवभूमि उत्तराखंड के जीवन जोशी की बगेट कला कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तक रविवार, 25 मई को अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 122वें एपिसोड में तक चर्चा की।

वर्तमान में हल्द्वानी के कठघरिया निवासी जीवन जोशी चीड़ के पेड़ की छाल पर अपनी रचनात्मकता उकेरते हैं। सारा काम अपने हाथ से करते हैं, उनकी इस कलाकारी को देख हर कोई स्तब्ध हो जाता है।

जीवन चंद्र जोशी का जन्म अल्मोड़ा में हुआ। दो बरसके होने पर अचानक ही उनके पैर निष्क्रिय हो गए। काफी समय बाद पता चला कि पोलियो है। वे आज तक शारीरिक रुप से दिव्यांग हैं। लेकिन उनकी कलाकृतियों देखने के बाद हर किसी के मुंह से वाह ही निकलता है।

अपने बचपन को याद करते हुए वेकहते हैं कि मैं तो पूरे बचपन में घिसट-घिसट के ही आगे बढ़ा। पोलियो ने स्कूल की दुनिया नहीं देखने दी। घर में भाई बहन जो लिखते-पढ़ते उसकी नकल करता।

वहीं मेरे चचेरा भाई ने मुझे बाहर की दुनिया दिखाई। वह अक्सर अल्मोड़ा आता और घर में अधिकतर आने वाले डोटियाल की पीठ पर मुझे बैठाकर कभी मेला घुमाता, कभी सिनेमा हॉल में पिक्चर दिखाता। बचपन से लिखने-पढ़ने का खूब शौक रहा। ऐसे में उसी डोटियाल की पीठ पर स्कूल जाकर मैंने पांचवी के बाद प्राइवेट हाई स्कूल भी किया।

जोशी के अनुसार मुझे बचपन में पिता ने क्राफ्ट से जुड़े कई काम सीखाए। वहींलकड़ी की कलाकृति के प्रतिउनका रुझान करीब 30 साल पहले शुरु हुआ। लेकिन गंभीरता से काष्ठ कला के क्षेत्र में साल 2015 से सक्रिय हुए और उन्होंने अपनी अनूठी कलाशैली को ‘बगेट कला’ का नाम दिया। चीड़ की छाल को ही कुमांऊँनी में बागेट कहते हैं।

जोशीके अनुसार वैसाखी के सहारे थोड़ा चलने लायक होने पर लगा कि कैसे आत्मनिर्भर बन सकूं। जिसके बाद मैं पोस्टऑफिस की लघुबचत योजनाओं का एजेंट बन गया।

इसके बाद लकड़ी की कारीगरी का काम उनके अल्मोड़ा के एक मित्र संजय बेरी जो लकड़ी के कारीगर थे, ने सीखाया। फिर उन्होंने कत्यूरीशैली के मंदिर, वाद्ययंत्र, योगमुद्रा, घड़ी आदि कलाकृतियां बनाईं। सबसे ज्यादा मंदिरों की कलाकृतियां बनाईं हैं।

वे कहते हैं कि वे अब ​भगवानों की मूर्तियां भी बनाना चाहते हैं, जैसे भगवान शिव व भगवान गणेश की। ऐसे में उनकी समस्या ये है कि इसे बनाने में सुक्ष्म औजार लगते हैं। लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के चलते वे ये औजार खरीदने में सक्ष्म नहीं हैं।

इन दो इच्छाओं को करना चाहते हैं पूरा

1- जीवन चंद्र जोशी का कहना है कि पहले मैं बड़ी कलाकृतियां बनाने में रुचि रखता था, लेकिन अब वे छोटी बनाना चाहते हैं। दरअसल बड़ी कलाकृतियां खरीदने में हर किसी की जेब साथ नहीं देती। जबकि छोटी कलाकृतियां अधिकांश लोग खरीद सकते हैं। ये जल्द भी बन जातीं हैं, यदि उन्हें छोटी कलाकृतियों के लिए औजार मिल जाते हैं तो वे ये शुरु कर सकते हैं। जिससे ये हर घर में पहुंच कर वहां की शोभा बढ़ातीं।

2- जोशी इस कला को सिखाने के लिए एक ट्रैनिंग सेंटर खोलना चाहते हैं। जिसका उद्देश्य ये हैं कि ये कला जीवित रहे और लोगों को इससे रोजगार भी मिलता रहे।

 

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