अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: “🙏🏻यत्र नारयस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता…. ”

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@पं.डॉ.भरत कुमार ओझा ”भानु ”

🌍प्रणेता~विश्व कल्याण अनुष्ठान केंद्र,इन्दौर-16,(म.प्र.), भारत

  • अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर – एक विशेष लेख

“🙏🏻यत्र नारयस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता…. ”

“देके खिलौने मुझे बहलाओ मत…
मैं नारी हूं सितारों पे नज़र रखती हूं…
तुम समझते हो सितारों पे बैठ जाओगे…
जगमगाते हुए सूरज पे नज़र रखती हूँ।।”

“हर बातमें कहते हो कि तू क्या है …..
मैं पूछती हूं ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है?”

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता से लेकर तो भक्तिरूपेण, घृतिरूपेण,क्षमारूपेण,दयारूपेण, लक्ष्मीरूपेण, दुर्गारूपेण,विद्यारूपेण, शूचिरूपेण,आर्यारूपेण,जयारूपेण,भव्यारूपेण,मंगलारूपेण, नित्यारूपेण आदि-आदि प्रकृति के समस्त चराचर तत्वों को देवी रूप मेें जोड़ने वाला ये समाज, या यह कहूं कि बहुत हद तक तो बहुरूपिया समाज जहां एक ओर शिव में से इकार तत्व की प्रधानता को स्वीकार करते हुए शिव में से “इ” के निकसत हो जाने पर शिव शिव नहीं रहते,शव हो जाते हैं बताने वाला समाज ….. आदम अलैह सलाम के साथ-साथ हव्वा अलैह सलाम को भी बड़ी शिद्दत से कबूल फरमाने वाला यह समाज ….. प्रजापिता ब्रह्मा की दिव्य संतानों में नर और नारी दोनों के आविर्भाव को स्वीकारने वाला यह समाज ….. नवरात्री के अनुष्ठान की पूर्णता के लिए कन्यापूजन को देवीपूजन मानकर घर-घर, दर-दर कन्या ढूंढता ….. मनुहार करता यह समाज ….. और नर-नारी एक-दूसरे के पूरक हैं, सृष्टि संतुलन की धूरी के लिए महिला और पुरूष एक ही गाड़ी के दो बराबर के पहिये हैं बताने वाला यह समाज ….. और फिर कन्या भ्रूण हत्या कर डालने वाला यह समाज, फिर कोख से उठती चित्कार को अनसुना करके निर्मोही हो जाने वाला ये समाज ….. ये समाज ये समाज ….. ये समाज ……

ये समाज यदि नन्हीं-सी कलियों जैसी बेटियों को खिलने से पहले ही मसलता चला जायेगा तो फिर बहुएं कहां से लायेगा?

अब लेख के प्रारंभ से लेकर यहां तक आते-आते तो मैंने जो भी बातें अपनी तहरीरों के हवाले से भिन्न-भिन्न संदर्भों के माध्यम से कही, इन उपरोक्त उल्लेखित पंक्तियों को तो हम बरसों से चले आ रहे सिक्के का एक पहलू कह सकते हैं, लेकिन इसी सिक्के का एक दूसरा पहलू यह भी है कि 8 मार्च अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की कोई आवश्यकता अब है ही नहीं। क्यों तो मनाना और क्या मिल जाएगा मनाने से? ऐसा इसलिए लिख रहा हूं कि महिला तो है ही स्वयंसिद्धा ।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब महिलाओं ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने आपको निरंतर सक्रिय और प्रतिष्ठित किया हुआ है,जब महिलाओं ने स्वमेव मृगेन्द्रिता के हेलन केलर से लेकर मदर टेरेसा तक, लक्ष्मीबाई से लेकर रजिया सुल्तान तक, मीरा से लेकर राबिया तक,बछेन्द्री पाल से लेकर कल्पना चावला तक,इंदिरा से लेकर एलिजाबेथ तक, प्रतिभा से बेनजीर तक,सानिया से लेकर साक्षी तक,सिंधू-दीपा से लेकर गीता-बबीता तक,लता-उषा-आशा-मीना से लेकर तीजनबाई तक याने कि आदिकाल से लेकर वर्तमान तक,माज़ी से लेकर सुनहरे मुस्तकबिल के दरीचे से उठने वाली तनवीर तक,समुद्र की गहराई से लेकर आसमान की ऊंचाई तक नारी की प्रगति और विकास की गाथाओं को देख-पढ़ और समझकर मेरी समझ में यह आता है कि कण-कण और क्षण-क्षण से इंसाफ करती पल-पल को अपने नाम करती महिलाओं ने तो सारे दिवसों पर ही अपना नाम लिखा हुआ है। यहां अनायास ही मुझे एक प्रासंगिक शेर याद चला आया- “हमें मिटाने की कोशिश में डूब जाओगे। हमारा नाम तो लहरों पे लिखा है।”

नर और नारी दोनों ही परमपिता परमात्मा का दिव्य अंश हैं। उन्हीं पाकपरवरदिगार-ए- आलम की रहमत के हवाले से रहती दुनिया को खुशहाली, चैनों-अमन और तरक्की के परचम को सरबुलंद रखने का नेक जरिया है। वाहेगुरु सच्चे पातशाह की मेहर का निखरा रूप है। आलमाईटी गॉड की मोस्ट ब्यूटीफृूल क्रिएशन्स है। नर और नारी दोनों ही इस सृष्टि को भव्य से भव्यतम बनाने के प्रति उत्तरदायी हैं।

महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं । जिनके इरादे अडिग हैं, जिनके हौंसले बुलंद हैं उन महिलाओं की नज़रें नीची नहीं हैं। राजनीति, समाज, कला, ट्रेन-प्लेन के चालन, खेलकूद से यांत्रिकी तक, हेल्थ से वेल्थ तक, सिस्टम से कस्टम तक, राशन से सुशासन तक, खेतीबाड़ी से आंगनवाड़ी तक, हाईटी से आईटी तक, परिवार से संसार तक, हर मोड़-हर चौबारे तक महिलाओं की अनेक उपलब्धियां शुमार हैं। हां, फिर भी आनुपातिक आंकड़े अभीभी समाज को चेतावनी देते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आज भी दुनिया के कई देशों मेेें नारियों को, कन्याओं को, महिलाओं को, औरतों को, खवातिनों को कहीं-ना-कहीं, किसी-न-किसी रूप मेें जो अवांछित प्रसंगों, अहसनीय घटनाओं, अक्षम्य अपराधों, फतवों, फब्तियों, नारों की तख्तियों का जो सामना करना पड़ रहा है, वह सरासर ग़लत है।

साथ-ही-साथ आधुनिक कहलाने की होड़ में, भौतिकवादी युग मेें, फैशन और विज्ञापनों की आकर्षक वस्तु के रूप मेें निर्मित हो चुकी महिलाएं, फिल्मों में काम पा जाने भर के लिए या ब्यूटी क्वीन का ताज पा जाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाने वाली महिलाएं, अपने ऊपर होने वाले छोटे-बड़े अपराधों को अंदर-ही-अंदर झेल जाने वाली महिलाएं, लोक-लाज के नाम पर दबाए जाने पर दब जाने वाली महिलाएं, महिलाओं को ही सताने वाली महिलाएं ….. हां! हां!! हां!!! ऐसी महिलाएंं, ऐसी युवतियां, ऐसी किशोरियां, जरूर-जरूर ज़िम्मेदार हैं। ज़िम्मेदार हैं सारे स्त्री संसार को चिंतन हेतु बाध्य करने के लिए कि हम क्या थी? क्या हैं? और क्या होंगी अभी…?

क्योंकि कितने ही रूपों में कई बार महिलाएं महिलाओं की ज़्यादती का, ईर्ष्या का, द्वेष का, षड्यंत्रों का शिकार होती हैं। कई बार नारियां नारियों के शिकंजे का ही शिकार होती हैं। कभी भावुकता में तो कभी कुटिलता में गिरफ़्तार होती हैं।

कहते भी हैं कि –

“कुल्हाड़ी में अगर लकड़ी का दस्ता नहीं होता, तो लकड़ी के कटने का रस्ता नहीं होता।”

इसलिए यदि महिला पुरूषों के छल मेें उलझती आ रही हैं, तो महिलाएं महिलाओं से भी सुरक्षित कहां नज़र आ रही हैं? बस इसलिए किसी विशेष दिनांक या दिवस को नहीं बल्कि प्रतिदिन को ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समझें।

केवल एक ही दिन नारी के अधिकारों की चर्चा कर लेने भर से या मंचीय आयोजन कर लेने से ही कुछ नहीं होगा। बल्कि प्रत्येक पल, क्षण सजग रहना होगा अपने हक़ के लिए और अपने फ़र्ज़ के लिए भी …

क्योंकि- “हम भी दोषी, तुम भी दोषी, सारा आलम दोषी है …
लेकिन सबसे ज़्यादा दोषी,होश भरी ख़ामोशी है।”

और फिर-

“बुंलदी के हौसलें और अरमान,
हिलोरें लेते हैं जिनकी नस-नस।
ऐसी नारी शक्ति के लिए तो ” भानु ” ,
रोजाना ही है ~ #अतंर्राष्ट्रीय_महिला_दिवस।।”

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