#विराट सूत्र: आज बात आलोचकों की …
@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…
नमस्कार,
आज बात आलोचकों की …
इनका मुख प्रदर्शन से ही बंद होता है
दुबई की चैंपियनशिप ट्राफी में विराट कोहली ने फिर एक कमाल रच दिया। लंबे समय जिनकी फाॅर्म को लेकर प्रश्न खड़े किए जा रहे थे, उन्हें चुका हुआ माना जा रहा था वो विराट कोहली दुबई की धरती पर अपने बल्ले से उन सभी आलोचकों को न सिर्फ करारा जवाब दे रहे थे वरन चेता भी रहे थे कि मेरी खामोशी को अन्यथा लेने की भूल कभी कर मत दीजिए। जुबानी जमा-खर्च में समय और ऊर्जा नष्ट करने के बजाय उसे सदैव उसी कार्य में लगाइए जिसके लिए आप बने हुए हैं।
मदमस्त गज जब चलता है तो श्वान अपनी आदत के मुताबिक भौंकना आरंभ कर देते हैं, छेड़ते और उकसाते हैं। यह विविध रूपों में होते हैं कहीं स्टेडियम के कमेंट्री बाॅक्स में तो सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर। उन मसखरों में उलझे तो जीना और खेलना दोनों ही मुहाल हो जाएगा। इसीलिए महान लोग चाहे सचिन तेंदुलकर हों विराट कोहली वे अपने लक्ष्य पर फोकस रहते हैं। जब समय आता है तो अपने प्रदर्शन से सबकी बोलती बंद कर देते हैं। विराट कोहली ने अपनी अनथक तपस्या से अपनी ऊर्जा को एकाग्र करके रखा है।
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आयु के इस पड़ाव पर इतना क्रिकेट खेलने के बाद जब कोई खिलाड़ी अपना उत्तरायण खोजने लगता है तब भी विराट अपनी कसी हुई मांसपेशियों के साथ चीते की फुर्ती से भागते हैं। एक – एक रन के प्रति उनकी भूख ठीक वैसी ही है जैसे किसी नवोदित खिलाड़ी की होती है। यही तो परिणाम है कि वे 36 साल में वनडे का इक्यावनवां शतक जड़ देते हैं, 14 हजार से अधिक का रन रिकॉर्ड रच देते हैं। यह असाधारण उपलब्धि हासिल करना हर किसी के बस का तो था नहीं। उसके लिए प्रतिभा भी तो असाधारण ही होना चाहिए। जो विराट में सदैव से रही है। एक बार अपनी पोस्ट में मैंने भी विराट के प्रदर्शन पर सवाल खड़े किए थे क्षमा सहित वह शब्द वापस ले रहा हूं।
सूत्र यह है कि राख के ढेर में दफन होकर फीनिक्स पक्षी की तरह फिर खड़े हो जाना ही एक सच्चे योद्धा की निशानी है। विराट का पराक्रम हमें यही सीख देता है।
शुभ मंगल
# विराट सूत्र