आज बात देवाधिदेव महादेव की…

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@डॉ.आशीष द्विवेदी की कलम से…

नमस्कार,

आज बात देवाधिदेव महादेव की…
जो निर्मलता पर रीझ जाते हैं

शिव सभी प्रकार की इंद्रियों के आकर्षण से मुक्त हैं, वे प्रकृति से भी प्रभावित नहीं होते। शिव कोई भौतिक वस्तु भी स्वीकार नहीं करते उनके लिए संसार की सभी वस्तुएं कपूर की तरह उड़नशील हैं, इसलिए उन्हें गौरांग भी कहा जाता है। गौरांग जो कपूर की तरह श्वेत है। भौतिक विज्ञान कहता है कि जब प्रकाश के सारे रंग एकाकार हो जाते हैं तो श्वेत रंग ही दृश्यमान होता है। शिव का तीसरा नेत्र अनंत ज्ञान का प्रतीक है। जब कामदेव अपना तीर चलाता है , तब वह प्रभावित नहीं होते वे केवल अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं और कामदेव भस्म हो जाता है।

यह दर्शाता है कि शिव पहले वासना का तिरस्कार करते हैं। शिव ने एक बार पार्वती से कहा था कि ‘ मुझे जो समर्पित किया जाता है, महत्व उसका नहीं है, वरन महत्व उस भावना का होता है जो उसके पीछे होती है।‌ उसी से जुड़ी तमिल पेरियार पुराणम की कथा है कि टिन्नन नामक एक आदिवासी युवक हर शाम अपना शिकार मारने के बाद एक शिवलिंग को जंगली फूल चढ़ाता है , जिसे वह अपने बालों में रखकर ले जाता है, पर्वत के झरने का जल उन पर डालता है, जिसे वह अपने मुंह में भरकर उनके लिए लाता है और उसी दिन शिकार से प्राप्त मांस अपने हाथों से हड्डियां निकाल – निकालकर उन्हें समर्पित करता है ।


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इसी शिवलिंग को एक पुजारी ग्रंथों में वर्णित ढंग से पुष्प, धूप,राख, दूध और फल भी अर्पित किए जाते हैं । अब यह परखने के लिए कि किसकी पूजा सच्ची है , शिवलिंग में से एक जोड़ी आंखें प्रकट हो जाती हैं । एक आंख में से खून निकलने लगता है । पुजारी इसे अशुभ समझकर वहां से भागने लगता है लेकिन टिन्नन इस खून को रोकने की कोशिश में लग जाता है। जब सफल नहीं होता तो अपनी आंख निकालकर लगा देता है। शिव कहते हैं कि यह है सच्ची भावना और उसे कैलाश बुला लेते हैं।


LIFE COACH Dr ASHISH DWIVEDI


सूत्र यह है कि शिव सदैव ही निर्मल और करुणामय हृदय के प्रति समर्पित रहते हैं। उन्हें अपने निश्छल मन और भोलेपन से ही पाया जा सकता है। चतुराई से तो कतई नहीं।

 

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