Uttar Pradesh: बसपा के इस फैसले से पार्टी की बढ़ेगी मुश्किलें! भारी पड़ सकता है ये फैसला
नई दिल्ली । बहुजन समाज पार्टी का अब किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला मुश्किल का सबब बन सकता है। हरियाणा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के इस फैसले ने सियासी जानकारों को भी हैरत में डाल दिया है। दरअसल, बीते 12 वर्षों में बसपा ने पांच चुनाव बिना किसी दल के साथ गठबंधन किए लड़े, जिनमें उसे बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इन हालात में बसपा सुप्रीमो के हालिया फैसले से होने वाले नफा-नुकसान का आकलन शुरू हो गया है।
दो वर्ष बाद फिर अकेले चुनाव में उतरने का फैसला
2012 में प्रदेश में बसपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। पार्टी ने विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा, लेकिन उसके 80 विधायक ही बने। दो वर्ष बाद बसपा ने फिर अकेले लोकसभा चुनाव में उतरने का फैसला लिया, लेकिन उसका कोई प्रत्याशी सांसद नहीं बन पाया। जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में उसके 20 सांसद बने थे।
इसके बाद 2017 का विधानसभा चुनाव बसपा ने फिर से अकेले दम पर ही लड़ने का निर्णय लिया, लेकिन मात्र 19 प्रत्याशी ही विधानसभा पहुंच सके। 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ गठबंधन करके लड़ने का उसका फैसला संजीवनी साबित हुआ और पार्टी के सांसदों की संख्या शून्य से बढ़कर 10 हो गई।
हालांकि यह गठबंधन टिक नहीं पाया और बसपा ने सपा के वोट ट्रांसफर नहीं होने का आरोप लगाकर इसे तोड़ दिया। 2022 का विधानसभा चुनाव बसपा के लिए फिर से नुकसान भरा रहा, अकेले चुनाव लड़ने के फैसले की वजह से उसे महज 12.83 फीसद वोट ही मिले और महज एक प्रत्याशी विधानसभा पहुंच पाया।
कैसे पार्टी को बढ़ेगा जनाधार
दरअसल, बसपा के इस फैसले के बाद पहला सवाल उठ रहा है कि पार्टी किस तरह अपने जनाधार को बढ़ाएगी। दरअसल, लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा ने दलित उत्पीड़न के मामलों में आक्रामक रुख अपनाना शुरू कर दिया था। पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को हरियाणा चुनाव में फ्री हैंड भी दिया गया, लेकिन प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा।