बंद करो इकरा हसन- ‘संभल’ और मुस्लिमों पर झूठ परोसना, बहुसंख्यक हिन्दुओं पर ‘सर तन से जुदा’ के नाम पर किए गए 20 हमले
डॉ. मयंक चतुर्वेदी की कलम से…
कैराना सांसद इकरा हसन संसद में बोल रही हैं, ‘‘भारत में अल्पसंख्यक खासतौर पर मुसलमान पर कहर टूटा है। यह लोग सिर्फ अपने मजहबी पहचान की वजह से निशाने पर हैं। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि हेट स्पीच, मॉब लिंचिंग, बुलडोजर से घरों को गिराने की घटनाएं आम हो गई है। जहां ऐसा लगता है, जैसे कानून के नाम पर जंगलराज चल रहा है। संभल में पुलिस के संरक्षण में निर्दोष लोगों की हत्या की गई। अल्पसंख्यकों पर हिंसा बढ़ती जा रही है।’’
अब देखो; यह इकरा हसन का कितना बड़ा झूठ है कि ‘भारत में मुसलमानों पर कहर टूट रहा है।’ वे अपने संसदीय भाषण में केंद्र की मोदी और यूपी की योगी सरकार के विरोध के नैरेटिव को सेट करने में जुटी दिखती हैं और अंत तक यह स्थापित करने की कोशिश करती हैं कि भारत में नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार और उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकारों में मुलसमानों पर भारी अत्याचार हो रहा है । हिन्दू विचार की ये सरकारें मुसलमानों की हत्या कर रही हैं, करवा रही हैं और फिर भी चुप्पी साधे बैठी हैं।
किंतु हकीकत क्या ऐसी है? इससे बड़ा झूठ और फर्जी नरेटिव क्या कुछ और हो सकता है? जबकि वास्तविकता यह है पूरी दुनिया में अल्पसंख्यक फिर वह कोई भी हो, भारत में जितना स्वतंत्र और अधिकार के साथ जीवन जी रहा है ना सिर्फ जीवन जी रहा है बल्कि कई जगह तो वह बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर अत्याचार कर रहा है फिर भी मौज में है।
बहुसंख्यकों के साथ अल्पसंख्यकों के व्यवहार पर चुप्पी साधे हैं इकरा
कैराना सांसद इकरा हसन किस मुंह से बोल रही हैं कि अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को मारा जा रहा है ? जबकि, वे खुद जिस इस्लामिक मजहब से आती हैं, उसको मानने वाले कई जिहादी हैं, जिनका कहर भारत के बहुसंख्यक हिन्दुओं पर लगातार टूट रहा है। उन्हें संसद में यह तो याद दिलाना आता है कि ‘‘संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 ने अल्पसंख्यकों को उनके मजहबी और सांस्कृतिक हक दिए हैं, जिससे वह अपनी पहचान बनाए रखें और अपने संस्थान चला सकें। अब अल्पसंख्यकों हक पर चोट की जा रही है।”
किंतु वह बहुसंख्यकों के साथ अल्पसंख्यकों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस पर कुछ नहीं बोलतीं। ‘संभल हिंसा’ का जिक्र करेंगी, लेकिन पुलिस को हत्यारे के रूप में प्रस्तुत करते हुए! वे क्या चाहती थीं, क्या झारखण्ड, हरियाणा, जम्मू कश्मीर और दिल्ली हिंसा की तरह पुलिस वालों को (हुतात्मा) मर जाना चाहिए था? अल्पसंख्यकों की इतनी ही चिंता है तो अपने समाज को समझाएं कि मस्जिदों से निकलकर या अपने घरों से अथवा संख्या बल इकट्ठा कर पुलिस एवं बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर पत्थर और असलहा बारुद नहीं, फेंका करते।
संविधान का अनुच्छेद 15 सभी को समानता देता है, मुसलमानों को विशेष हक नहीं देता
यदि वह कहती हैं कि ‘‘संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, मजहब या किसी और वजह से भेदभाव नहीं होना चाहिए।’’ तो यह बात तो उनके मजहब को माननेवालों पर भी लागू होती है। उनका धर्म, मजहब है और दूसरे का धर्म ! कुछ नहीं? संविधान का अनुच्छेद 15 तो सभी नागरिकों को समान रूप से राज्य के समक्ष समान मानता है, वह तो सभी को समान रूप से संरक्षण देने की बात करता है, पूरे संविधान में कहीं भी किसी भी मत, पंथ, रिलीजन, संप्रदाय और धर्म के बीच किसी भी प्रकार की सीमा रेखा (मजहबी लकीर) नहीं खींची गई हैं।
देश का हर नागरिक राज्य के लिए समान है और सभी का समान रूप अपने देश पर हक है, किंतु क्या भारत का अल्पसंख्यक अपने मजहब के नाम पर बहुसंख्यक हिन्दू समाज के लोगों को अपने मजहबी जिहाद के लिए अल्लाह निंदा या प्रोफेट मोहम्मद निंदा के नाम पर मौत के घाट उतारेगा? जोकि पिछले कई सालों से दुनिया के तमाम देशों की तरह भारत में भी देखने को मिल रहा है।
हिन्दू ने तो देश विभाजन के बाद भी अल्पसंख्यकों को विशेष रियायतें दी
कैराना सांसद इकरा हसन सोचिए आप! इसे कौन रोकेगा? क्या तुम अपने मुसलमान भाईयों और जो भी आपके संबोधन हैं, उन्हें समझाओगी कि अरे जो तुम कर रहे हो बहुसंख्यक हिन्दू समाज के साथ, उसे तुरंत करना बंद करो। ईश निंदा के नाम पर खूनी खेल बंद करो, बहुसंख्यक हिन्दू समाज का सम्मान करो। क्योंकि यही वह हिन्दू समाज है जिसने देश विभाजन जो कि स्वयं मुसलमानों ने धर्म के आधार पर चाहा था, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है।
भारत के बहुसंख्यक हिन्दुओं ने कभी भारत का विभाजन नहीं चाहा, फिर भी जब विभाजन हुआ तो भारत में तत्कालीन समय में अल्पसंख्यक हुए मुसलमानों को विशेष रियायतें दीं। यह रियायतें इतनी अधिक रहीं कि वे भारत से ही अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश में कभी अपनी मूल जनसंख्या से कम नहीं हुए बल्कि लगातार उनकी जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है। यदि भारत का बहुसंख्यक हिन्दू समाज अपने अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों पर अत्याचार करता तो इकरा तुम याद रखो, तुम्हारी कौम की जनसंख्या कभी इतनी नहीं होती जितनी कि आज भारत में है।
पाकिस्तान-बांग्लादेश में घट गए हिन्दू, भारत में बढ़ी मुसलमान आबादी
भारत से अलग होकर बने पाकिस्तान में विभाजन के समय हिंदुओं की आबादी 20 फ़ीसदी से ज़्यादा थी, हालांकि, धर्मांतरण और उत्पीड़न की वजह से पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या कम होती गई। साल 1998 में हुई जनगणना के बाद पाकिस्तान में सिर्फ 1.6 फीसदी ही हिंदू बचे। आज कई रिपोर्ट्स मौजूद हैं, जो यह बता रही हैं कि कैसे पिछले दो दशकों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या घटी है ।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व पाकिस्तानी सांसद और अभी वॉशिंगटन स्थित एक रिसर्च ग्रुप धार्मिक स्वतंत्रता संस्थान में वरिष्ठ फेलो फराहनाज इस्पहानी इस बारे बताते हैं ‘‘हम लोग अल्पसंख्यकों के साथ अमानवीय व्यवहार, कमजोर अर्थव्यवस्था, हिंसा या भूख से बचने के लिए या बस एक और दिन जीने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित होते हुए देख सकते हैं।’’ यही हाल बांग्लादेश का है। यहां भी हिंदुओं की आबादी लगातार घट रही है, 1971 के बांग्लादेश नरसंहार में हिंदुओं को अनुपातहीन रूप से निशाना बनाया गया था, और उसके बाद से लगातार यह सिलसिला चल रहा है।
इस्लामिक जिहादी यहां किसी न किसी बहाने से हिन्दुओं पर अत्याचार करते रहते हैं, जैसा कि इन दिनों सत्ता परिवर्तन के बाद से लगातार यहां हिन्दुओं को इस्कॉन संस्थान के बहाने से इस्लामवादियों ने यूनुस सरकार में निशाने पर ले रखा है। पाकिस्तान की तरह ही जिस बांग्लादेश में हिन्दुओं की जनसंख्या 1971 में 20 प्रतिशत रही, वह आज घटकर 8 प्रतिशत पर आ पहुंची है।
अब प्रश्न यह है कि बांग्लादेश से शेष 12 प्रतिशत और पाकिस्तान ने 18 प्रतिशत हिन्दू कहां गायब हो गए? जैसा कि फराहनाज इस्पहानी ने बताया कि ‘‘हम हर रोज लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित होते हुए देख सकते हैं’’, वास्तव में इन दोनों ही देशों का जिसका कि विभाजन भारत से ही अलग होकर हुआ है, वहां हम देख रहे हैं कि लगातार इन देशों से हिन्दू जनसंख्या घट रही है। जबकि हिन्दू बहुल भारत में क्या हो रहा है !
भारत विभाजन के वक्त जिन मुसलमानों की आबादी देश की कुल आबादी का 9.8 प्रतिशत थी, वह आज बढ़कर साल 2015 तक, 14.09 प्रतिशत हो गई। साथ ही इस संबंध में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की रिपोर्ट भी है, जिसके अनुसार भारत में 1950 और 2015 के बीच बहुसंख्यक हिंदू आबादी का हिस्सा 7.82% घटा है (84.68% से 78.06% तक), जबकि मुस्लिम आबादी का हिस्सा, जो 1950 में 9.84% था, 2015 में बढ़कर 14.09% हो गया – उनके हिस्से में 43.15% की वृद्धि हुई। आज भारत में मुस्लिम आबादी 2024 में लगभग 204.8 मिलियन तक पहुँचने की बात कही जा रही है।
भारत के नौ राज्य और 200 जिले हुए मुस्लिम बहुसंख्यक
अब सांसद इकरा हसन से कोई पूछे; कि यदि भारत में मुसलमानों पर कहर टूट रहा होता, उनकी हत्याएं की जा रही होतीं, तो उनकी जनसंख्या बढ़नी चाहिए थी या घटनी? आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि हिन्दुओं की जनसंख्या प्रतिशत में जितनी नहीं बढ़ी, पिछले 78 सालों में उतनी उससे अधिक भारत में रह रहे मुसलमानों की आबादी बढ़ी है। देश में आज 200 जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका में साक्ष्यों के साथ बताया गया है कि देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें इसका (अल्पसंख्यक होने का) कोई लाभ नहीं मिलता। याचिका में लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर राज्यों का जिक्र किया गया है, जहां पर हिंदू अल्पसंख्यक हैं।
भारत इकलौता देश जहां बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के बराबर अधिकार चाहिए
विडम्बना देखिए; दुनिया के किसी भी देश में जहां अल्पसंख्यक हैं, वे कहते हैं हमें बहुसंख्यकों के बराबर अधिकार दे दो और भारत में जो बहुसंख्यक हिन्दू हैं वह कह रहे हैं कि हमें अल्पसंख्यकों के बराबर अधिकार दे दो। वस्तुत: जब संविधान में अल्पसंख्यकों की कोई परिभाषा सुनिश्चित नहीं, तब कितने प्रतिशत को अल्पसंख्यक माना जाएगा? इस पर इकरा हसन कभी नहीं बोलेंगी? उन्हें यह पता होना चाहिए कि यह बहुसंख्यक हिन्दुओं की उदारता, धर्म निरपेक्षता और पंथ सापेक्षता है कि उन्होंने अपने से कम जनसंख्यावालों के लिए विशेष रियायतें देना स्वीकार किया, जबकि यह तय नहीं कि यह जनसंख्या कितने प्रतिशत पर अल्पसंख्यक मानी जाएगी।
अल्पसंख्यकों के हित भारत में इतने अधिक कानून कि बहुसंख्यक उनमें पिस रहा
देश में 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून बनाया गया। 2006 में अल्पसंख्यक मंत्रालय बना दिया गया। इन अल्पसंख्यक खासकर मुसलमानों के लिए वर्शिप एक्ट, कानून 15 अगस्त 1991 को पूजा स्थल अधिनियम लागू किया गया । अल्पसंख्यकों के नाम पर उनके पूजा स्थलों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखा गया है। जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) आया तो उसमें भी अल्पसंख्यक स्कूलों को छूट दी गई। अल्पसंख्यक संस्थानों को एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण नहीं देना होता। विद्यालयों के स्तर पर इन अल्पसंख्यक संस्थानों की मनमर्जी देखिए, खुद अल्पसंख्यक हैं, किंतु आरटीई के अंतर्गत प्रवेश नहीं देते, लेकिन बहुसंख्यकों के द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान में इन्हें अल्पसंख्यक होने का और कई को आरटीई के तहत मिलनेवाला पूरा लाभ चाहिए।
किसी की भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना हक जमा देता है, ऐसे भी कई मामले सामने आ चुके हैं कि जब इस्लाम का उदय ही नहीं हुआ था और परंपरागत रूप से जहां बहुसंख्यक हिन्दू जनसंख्या पीढ़ी दर पीढ़ी रहती आ रही है, उन कई स्थानों पर वक्फ बोर्ड आज अपना दावा ठोक चुका है, और लगातार हक जमा रहा है, जबकि वहां रह रहा हिन्दू अब न्याय पाने के लिए या तो वक्फ ट्रिब्यूनल के पास अथवा कोर्ट में चक्कर पे चक्कर लगा रहा है। यह बताने के लिए कि यह जमीन उसकी अपनी है ना कि किसी वक्फ बोर्ड या मुसलमीनि की ।
इतना ही नहीं इन्होंने तो एतिहासिक इमारतें भी नहीं छोड़ीं, मंदिर और सरकारी संपत्तियों के बाद वक्फ बोर्ड का अकेले देश की राजधानी दिल्ली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के 156 स्मारकों पर दावा सामने आया है! फिर देश भर में ऐसे कितने एतिहासिक स्थान होंगे, जहां मजहब के नाम पर ये मुसलमान अपना कब्जा जमाए बैठे हैं! यह सिर्फ सोचने भर से असहज लगता है और भारी आश्चर्य होता है कि इन सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर सभी मुस्लिम बुद्धिजीवि चुप हैं । आज भाजपा एवं कुछ राजनीतिक पार्टियों को छोड़कर कोई कुछ बोलना ही नहीं चाहता।
इकरा हसन गौर से देखें, देश में कई जगह मुसलमान कर क्या रहा है ?
इकरा हसन सोचें और समझें यह कि यदि भारत में अल्पसंख्यक खासकर मुसलमान जिनका वे जिक्र संसद में कर रही हैं, यदि उन पर कोई अत्याचार हो रहा होता तो देश में वह सब कुछ बहुसंख्यक हिन्दू समाज द्वारा होता हुआ दिखाई नहीं देता जोकि उनके (मुसलमानों के) हित में देश भर में होता हुआ आज दिखता है।
जबकि उसके बदले में इनके तथाकथित अल्पसंख्यक कई मुसलमान क्या कर रहे हैं, जिनकी ये दुहाई दे रही हैं। पिछले दस सालों के दौरान ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगाते हुए 20 से अधिक हमले हिन्दुओं पर उन्हें जान से मारने के लिए हुए हैं, जिनमें से कई हिन्दू अब तक मारे भी जा चुके हैं। जिन जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हो चुके हैं वहां हिन्दू या तो पलायन करने को मजबूर है या फिर वह लगातार अत्याचार सहने के लिए विवश है। क्या इकरा हसन को यह नहीं दिखता? उनका ये मुस्लिम समाज कर क्या रहा है?
वास्तविकता यही है कि ‘संभल’ में यदि पुलिस कंट्रोल करने के लिए सख्ती नहीं दिखाती तो अभी तो सिर्फ सार्वजनिक संपत्ति, पुलिस वाहन एवं अन्य आम जन के वाहनों को ही आग के हवाले किया गया था ना जानें कितनी लाशे संभल में बिछा दी जातीं। वह तो पुलिस की सख्ती अंत में काम आई कि पूरे प्रकरण को शांत किया गया, इसलिए इकरा हसन चौधरी तुमसे इतनी ही गुजारिश है कि कम से कम संसद में तो झूठ ना बोलें।
मस्जिद इबादत के लिए पत्थर फेंकने के लिए नहीं
वास्तव में देखा जाए तो आज इकरा हसन एक सांसद के रूप में जिन भी अल्पसंख्यकों के नाम पर मुस्लिमों पर अत्याचार होने के मुद्दे उठा रही हैं, वह एक तरफा एवं सत्य से कोसों दूर हैं। वे सभी आरोप बेबुनियाद हैं जो वह बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर गढ़ने की कोशिश कर रही हैं।
अप्रत्यक्ष रूप से यह उनका बहुसंख्यक हिन्दुओं को लेकर नकारात्मक नैरेटिव है, जिसे वे शब्दों के मायाजाल से सेट करती हुई दिखाई दे रही हैं । अच्छा हो इसके बदले वे अपने मुस्लिम समाज के लोगों को समझाएं कि मस्जिद इबादत के लिए होती है, वहां इकट्ठे होकर पत्थरवाजी नहीं की जाती। वहां इकट्ठे होकर दंगा फसाद करने के लिए नहीं निकला जाता है।
अच्छा हो, इकरा हसन चौधरी अपने मुस्लिम समाज को समझाएं कि वे जिन भी योजनाओं का लाभ केंद्र व राज्य के स्तर पर ले रहे हैं अधिकांश में उनके योगदान से कहीं अधिक उन बहुसंख्यक हिन्दुओं के रुपयों से वह चल रही हैं जोकि अपना आयकर समय पर जमा करते हैं। अच्छा यह भी हो कि वे अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज को बताएं कि देश में बाल आयोग, महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग के साथ ही समाजिक कल्याण मंत्रालय एवं विभाग होने के बाद भी अल्पसंख्यकों के लिए अलग से मंत्रालय एवं आयोग सिर्फ भारत में बहुसंख्यक हिन्दुओं की बदौलत ही हैं।
वह मुसमीन को आज यह समझाएं कि भारत में जितना सम्मान और सुविधाएं अल्पसंख्यकों को मिल रहा है, वह सुविधाएं दुनिया के किसी भी देश ने अपने यहां के अल्पसंख्यकों को मुहैया नहीं कराई हैं। इसलिए वे खुद समझें और अपने मुस्लिम समाज को भी समझाएं कि वे बहुसंख्यक हिन्दुओं का सम्मान करें, उन्हें अपना और अपने परिवार का हक मार कर अल्पसंख्यकों के लिए किए गए उनके त्याग के बदले में यथा योग्य सम्मान देवें न कि वे संसद में असत्य भाषण करें।