‘भारत की वैश्विक ख्याति और प्रतिष्ठा एक मजबूत देश होने के कारण’
- RSS प्रमुख भागवत ने कहा : भाषा, जाति में न बंटे, अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट हो हिंदू समाज
भारत को हिंदू राष्ट्र बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भाषा, जाति और क्षेत्रीय विवादों को मिटाकर हिंदू समाज को अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट होना होगा। उन्होंने कहा कि भारत की वैश्विक ख्याति और प्रतिष्ठा एक मजबूत राष्ट्र होने के कारण है। किसी देश के प्रवासियों की सुरक्षा की गारंटी तभी होती है, जब उनकी मातृभूमि शक्तिशाली हो अन्यथा एक कमजोर देश के प्रवासियों को बाहर निकलने का आदेश दे दिया जाता है।
भागवत राजस्थान में बारां के धान मंडी मैदान में स्वयंसेवक एकत्रीकरण कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कह्य कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। हम यहां अनादि काल से रह रहे हैं, भले ही हिंदू उपनाम बाद में आया। हिंदू शब्द का प्रयोग भारत में रहने बाले सभी संप्रदायों के लिए किया जाता रहा है। हिंदू सभी को अपना मानते हैं और और सभी को गले लगाते हैं। हिंदू कहते हैं कि हम और आप दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं। हिंदू निरंतर संबाद के जरिये सामंजस्यथपूर्ण रूप से सह-अस्तित्व में विश्वास करते हैं।
संघ प्रमुख ने कहा कि ऐसे समाज का निर्माण होना चाहिए जहां संगठन, सद्भावना और परस्पर श्रद्धा व्याप्त हो। लोगों के आचरण में अनुशासन, देश के प्रति दायित्व और उद्देश्यों के प्रति समर्पण हो। समाज का गठन केवल व्यक्तियों और उनके परिवारों से नहीं होता, समाज की व्यापक चिंताओं पर विचार करके कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।
संघ की कार्यप्रणाली यांत्रिक नहीं, विचार आधारित :
भागवत ने कहा, संघ की कार्यप्रणाली यात्रिक नहीं, बल्कि विचारों पर आधारित हैं। समाज निर्माण के लिए संघ के बराबर का प्रयास करने वाला दुनिया में और दूसरा कोई संगठन नहीं है। उन्होंने कहा कि जैसे कप अद्वितीय है, वैसे हो आकाश भी अद्वितीय है और उसी तरह संघ भी अतुलनीय है।
संघ के मूल्य पहले संगठन के नेताओं तक पहुंचते हैं, उनसे स्वयंसेवकों तक और स्वयंसेवकों से परिवारों तक पहुंचते हैं और अंततः समाज को आकार देते हैं। संघ में व्यक्तित्व निर्माण की यही प्रक्रिया है।
सामुदायिक कमियों को दूर करने की हो कोशिश:
स्वयंसेवरकों से समुदायों के अंदर व्यापक संपर्क बनाए रखने का आग्रह करते हुए भागवत ने कहा कि समाज को सशवत बनाकर सामुदायिक कामियों को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता, न्याव, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वावलंबन पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए।
स्वयंसेवकों को हमेशा सक्रिय रहना चाहिए और परिवारों के भीतर सौहार्द पर्यावरण जागरूकता, स्वदेशी यूल्यों और नागरिक चेतना को बढ़ावा देना चाहिए, जो किसी समाज के बुनियादी पटक हैं। उन्होंने कहा कि भारत की वैश्विक साख और प्रतिष्ठा का श्रेय इसकी ताकत को जाता है और इसके प्रवासियों की सुरक्षा वभी युनिश्चित होती है! जब उनका राष्ट्र मजबूत बने। 3,827 आरएसएस स्वयंसेवकों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया।