बलिया और भरौली चेकपोस्ट पर छापामारी में पुलिस को लूटते हुए पकड़ा

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लखनऊ. बलिया में नागरिकों की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस ही जनता को लूटते हुए पकड़ी गई है. पहली बार इस बात की पुष्टि वाराणसी के एडीजी पीयूष मोर्डिया और आजमगढ़ के डीआईजी वैभव कृष्ण की संयुक्त छापेमारी में हुई है. बलिया के अलावा भरौली चेकपोस्ट पर भी इन दोनों अधिकारियों ने दबिश डाली. इस रेड के परिणाम ने पूरे पुलिस महकमे को शर्मिंदा कर दिया है. छापे में पता चला कि अकेले कोरंटाडीह चौकी पर तैनात पुलिस प्रतिदिन पांच लाख रुपये की वसूली करती है. इस चौकी के सामने से रोजाना करीब 1000 ट्रक गुजरते हैं और प्रत्येक ट्रक से 500 रुपये वसूला जाता है. इस वसूली को विधिवत डायरी में दर्ज किया जाता है और अगले दिन इस पूरे पांच लाख की रकम की बंदरबांट होती है.

इसी डायरी में विवरण है कि इसमें से कितनी रकम कप्तान को, कितनी रकम एडिशनल और डिप्टी एसपी को तथा यहां तैनात सिपाहियों से लेकर इंस्पेक्टर तक को दी जाती है. कुछ ऐसी ही स्थिति इसी थाना क्षेत्र के भरौली चेकपोस्ट पर भी है. यहां से भी हर रात गुजरने वाले 1000 ट्रकों से पांच-पांच सौ रुपये की वसूली होती है. यह वो सच है जो शुक्रवार की शाम तक पुलिस अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस या अन्य माध्यमों से सार्वजनिक कर दी.

बताया जा रहा है कि ये विवरण रेड के दौरान पकड़े गए पुलिस कर्मियों और उनके दलालों से पूछताछ के आधार पर तैयार किया गया है. दलालों ने बताया है कि उनकी ड्यूटी भरौली तिराहे और कोरंटाडीह चौकी के सामने से निकलने वाले ट्रकों से वसूली करने के लिए लगती है. इसी वसूली में मिली रकम को डायरी में नोट किया जाता है, लेकिन वसूली के दौरान वह कुछ रकम बिना रजिस्टर में ही दर्ज किए अपनी जेब में भी रख लेते हैं. ऐसे में हरेक दलाल रोजाना डेढ़ से दो हजार रुपये कमा लेते थे. इसी प्रकार मौके से पकड़े गए सिपाहियों ने बताया कि इन दोनों स्थानों पर दलालों और सिपाहियों की ड्यूटी रोज शाम को इंस्पेक्टर खुद ड्यूटी लगाते हैं.

इन दोनों पोस्ट में से किसी पर भी ड्यूटी मिल जाए तो वह सिपाही या हेड कॉन्सटेबल 10 से 15 हजार रुपये तो एक रात में पीट ही लेता है. ऐसे में यहां ड्यूटी के लिए हर सिपाही अपने कोतवाल की खुशामद करता रहता है. इसी प्रकार चौकी इंचार्ज यानी दरोगा की भी कमाई 20 से 25 हजार रुपये तक रोज हो जाती है. चूंकि रात भर वसूली के बाद पूरी रकम इंस्पेक्टर के पास जमा होती है. सिपाही से लेकर दरोगा तक का हिस्सा इसमें से निकालने के बाद यह रकम करीब 3 से साढ़े तीन लाख बचती है. इस रकम का बंटवारा परसेंटेज के हिसाब से होता है. यह परसेंटेज कप्तान से लेकर इंस्पेक्टर तक का होता है.

पकड़ी गई डायरी में यह तो विवरण नहीं मिला कि कितने परसेंट कप्तान का और कितना एडिशनल एसपी से लेकर सीओ का है, लेकिन इतना विवरण है कि इसके आधार पर हिसाब आसानी से लगाया जा सकता है. रिटायर्ड डिप्टी एसपी पीपी कर्णवाल के मुताबिक थानों में पोस्टिंग के दौरान इस तरह की चीजें तो होती ही हैं. बड़ी बात यह कि इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जो जिला पुलिस के मुखिया को पता न हो. सब कुछ मुखिया की जानकारी में होता है और उनकी सहमति से होता है. उन्होंने बताया मलाईदार थानों और चौकियों में पोस्टिंग ही खास लोगों की होती है.

बलिया से समाजवादी पार्टी के विधायक संग्राम सिंह ने एक इंटरव्‍यू में कहा कि जिले में थानों की बिक्री का मामला उन्होंने खुद छह महीने पहले विधानसभा में उठाया था. इस मुद्दे पर खूब चर्चा हुई थी और उनकी ही शिकायत के बाद एडीजी और डीआईजी ने छापा बुधवार-गुरुवार की रात बलिया के नरही थाने और कोरंटाडीह चौकी पर मारा है. विधायक के अनुसार अब तक यह कहा जाता था कि बलिया में थाने एवं चौकियों की सार्वजनिक बोली लगती है और जबसे ज्यादा बोली लगाने वाले इंस्पेक्टरों और सब इंस्पेक्टरों को मलाईदार थानों चौकियों में कोतवाल या चौकी इंचार्ज बनाया जाता है.

उधर, बलिया पुलिस के ही कुछ लोगों के अनुसार इस तरह की धांधली की शुरुआत किसी भी थाने या चौकी पर कोतवाल या चौकी इंचार्ज की पोस्टिंग से ही शुरू हो जाती है. दरअसल बलिया में नरही, बैरिया, मनियर, उभांव समेत कई थाने ऐसे हैं, जिनकी गिनती मलाईदार थानों में होती है. इन थानों में उन्हीं कोतवालों की तैनाती होती है, जो सबसे ज्यादा एकमुश्त चढ़ावा देते हैं और फिर हर महीने एक अच्छी खासी रकम का चढ़ावा चढ़ाने के लिए हामी भरते हैं. यह व्यवस्था काफी पहले से है, हालांकि पहली बार एडीजी वाराणसी और डीआईजी आजमगढ़ की रेड में इसकी पुष्टि हुई है.

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