निरंजनी अखाड़ा…डॉक्टर, इंजीनियर ओर प्रोफेसर भी नागा
- जूना अखाड़े के बाद सबसे ताकतवर है यह अखाड़ा, 70% संन्यासी उच्च डिग्रीधारी
प्रयागराज। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी के रूप में प्रवाहमान पंचायती अखाड़ा. निरंजनी सनातन संस्कृति की पताका के रूप में फहराता रहा है। यह पहला अखाड़ा है, जिसमें 70 फीसदी संन्यासी डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर समेत उच्च डिग्रीधारी नागा हैं। जूना अखाड़े के बाद सबसे ताकतवर माने जाने वाले इस अखाड़े की स्थापना
860 इंस्त्री में हुईं थी।
इसका पूरा नाम श्री पंचायती तपोनिधि निरंजन अखाड़ा है और मुख्यालय है मायापुर, हरिद्वार में। साधुओं की संख्या की दृष्टि से निरंजनी अखाड़ा देश के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में से एक है। जूना अखाड़े के बाद इसे सबसे ताकतवर अखाड़ा माना जाता है। सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधु इसी अखाड़े में हैं, जिनमें कई डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर तक रहे हैं। वृंदावन के आश्रम में रहने वाले निरंजनी अखाड़े के आदित्यानंद गिरि एमबीबीएस डिग्रीधारी हैं। अखाड़े के सचिव ओंकार गिरि भी इंजीनियर हैं। उन्होंने एमटेक किया है। महंत रामरत्न गिरि दिल्ली विकास प्राधिकरण में सहायक अभियंता रह चुके हैं।
डॉ. राजेश पुरी ने पीएचडी को उपाधि हासिल की है तो महंत रामानंद पुरी अधिवक्ता हैं। निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि शैव परंपरा के इस अखाड़े से जुड़े करीब 70 फीसदी साधु-संत उच्च शिक्षित हैं। अखाड़े में संन्यास की दीक्षा योग्यता के आधार पर हो प्रदान को जाती है। इसमें संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी हैं। सचिव ओंकार गिरि जताते हैं कि गुजरात के मांडवी जिले में जिस समय निरंजनी अखाड़े की स्थापना की गई, उस समय दूसरे धर्मांबलंबी सनातन धर्म पर हमले कर
रहे थे। अखाड़े का गठन सनातन धर्म की रक्षा के लिए हुआ था। फिर, वेद विद्या स्कूल-कॉलेजों की स्थापना की गई। निरंजनी अखाड़े में पंच परमेश्वर के महंत ही सर्वोच्च होते हैं। उनकी मंजूरी से ही सभी फैसले होते हैं।
पहले महापुरुष बनकर गुरु की सेवा फिर नागा की ली दीक्षा
निरंजनी अखाड़े में शामिल होने के नियम पहले बहुत सख्त हुआ करते थे,लेकिन वक्त के साथ कुछ राहत दी गईं है। आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद बताते हैं कि इस अखाड़े में अब अपराधी, माफिया पैठ नहीं बना सकते। कारण ग्रह कि संन्यासी का चयन ग्रोग्यता और इंटरव्यू के आधार पर होता है। अखाड़े में शामिल होने से पहले पांच साल तक ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है। इसके बाद महापुरुष बनाया जाता है। महापुरुष अपने गुरु की समर्पण भाव से सेवा करता है। गुरु के बर्तन, कपड़े साफ करता है। भोजन बनाने की जिम्मेदारी भी महापुरुष की हो होती है। गुरु सेवा में खरा उतरने वाले को हो नागा को दीक्षा दी जाती हैं।