Haryana: कांग्रेस 6 माह बाद भी तय नहीं कर पाई विधानसभा में विपक्ष के नेता का नाम

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चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा (Haryana Assembly) में विपक्ष के नेता (एलओपी) (Leader of the Opposition – LoP) के पद के लिए कांग्रेस (Congress) की ओर से छह महीने बाद भी कोई नाम तय नहीं हो सका है। इस देरी के कारण राज्य की नायब सिंह सैनी सरकार (Nayab Singh Saini Government) को कई महत्वपूर्ण नियुक्तियों में अड़चन का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि विभिन्न चयन समितियों में विपक्ष के नेता की उपस्थिति अनिवार्य होती है। इस स्थिति को देखते हुए सैनी सरकार अब कानूनी रास्ते तलाश रही है ताकि इस आवश्यकता को ‘बायपास’ किया जा सके।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा, “हम इस मामले में महाधिवक्ता से कानूनी राय लेने जा रहे हैं ताकि यह देखा जा सके कि विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति के कारण रुकी नियुक्तियों को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।” उन्होंने यह भी कहा कि यह कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि वह अपने विधायक दल के नेता का चयन करे, जो विपक्ष के नेता की भूमिका निभाएगा।

कांग्रेस में गुटबाजी बनी बाधा
हरियाणा कांग्रेस गुटबाजी से जूझ रही है, जिसके कारण विधायक दल के नेता के चयन में देरी हो रही है। इस निर्णय में अभी कम से कम कुछ और सप्ताह लग सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, रोहतक से कांग्रेस विधायक बी.बी. बत्रा ने दावा किया कि सरकार गलत तरीके से यह दावा कर रही है कि उनके हाथ नियुक्तियों के मामले में बंधे हैं। बत्रा ने कहा, “कांग्रेस जल्द ही विपक्ष के नेता के नाम की घोषणा करेगी। केवल सीमित नियुक्तियों के लिए ही चयन समितियों में विपक्ष के नेता की जरूरत होती है। सरकार चाहे तो विपक्ष के किसी वरिष्ठ नेता को शामिल कर चयन समिति की बैठक बुला सकती है।”

बत्रा ने यह भी कहा कि सरकार के पास बिना विपक्ष के नेता के भी नियुक्तियां करने का अधिकार है, जैसा कि केंद्र में 2014 में हुआ था। उस समय कांग्रेस के पास लोकसभा में विपक्ष के नेता का दावा करने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं थीं, फिर भी मल्लिकार्जुन खरगे को, जो कांग्रेस के लोकसभा में नेता थे, कई चयन समितियों में शामिल किया गया था।

सैनी सरकार की चुनौती
हरियाणा में बीजेपी ने 2024 के विधानसभा चुनाव में 90 में से 48 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाई। नायब सिंह सैनी मार्च 2024 से मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने इस जीत को अपनी नेतृत्व क्षमता और ओबीसी समुदाय के समर्थन का परिणाम बताया। हालांकि, विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति के कारण सरकार को प्रशासनिक कार्यों में रुकावट का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष मोहन लाल बडोली ने कहा, “कांग्रेस को यह तय करना है कि वे अपने विधायक दल के नेता के रूप में किसे नियुक्त करना चाहते हैं। लेकिन सरकार को अपनी नियुक्तियों के साथ आगे बढ़ना होगा। जो भी कानूनी रूप से संभव होगा, सरकार वह करेगी।”

हरियाणा में, मुख्यमंत्री और एक मंत्री के साथ-साथ विपक्ष का नेता मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों जैसे पदों पर नियुक्तियों के लिए चयन समितियों का हिस्सा होता है। वर्तमान में राज्य सूचना आयोग बमुश्किल तीन सदस्यों – जगबीर सिंह, प्रदीप कुमार शेखावत और कुलबीर छिकारा – के साथ काम कर रहा है, जबकि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या अब 7,200 से अधिक है। सूत्रों ने कहा कि चयन समिति की बैठक होने पर पूर्व मुख्य सचिव टी वी एस एन प्रसाद मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए सबसे आगे चल रहे उम्मीदवारों में से हैं।

झारखंड का उदाहरण
हरियाणा की स्थिति झारखंड में कुछ समय पहले उत्पन्न हुई स्थिति से मिलती-जुलती है। झारखंड में जब बीजेपी चार महीने तक विपक्ष के नेता का चयन नहीं कर पाई थी, तब जेएमएम-नीत गठबंधन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी को बीजेपी को दो सप्ताह के भीतर विपक्ष के नेता का नामांकन करने का निर्देश दिया था। मार्च में भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष घोषित किया। यह मामला मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में देरी से संबंधित था।

कांग्रेस की रणनीति और आलोचना
कांग्रेस की इस देरी ने बीजेपी को हमला करने का मौका दिया है। मुख्यमंत्री सैनी ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था, “विपक्ष के नेता के चयन में देरी कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी को दर्शाती है। उनकी भूमिका एक विपक्ष के रूप में चिंताजनक है। वे केवल झूठ फैलाते हैं और जनता को गुमराह करते हैं।” वहीं, कुछ कांग्रेस विधायकों द्वारा सैनी की तारीफ किए जाने से पार्टी के भीतर और तनाव पैदा हो गया है। हाल ही में नारायणगढ़ की कांग्रेस विधायक शैली चौधरी और सिरसा के विधायक गोकुल सेतिया ने सैनी की कार्यशैली की सराहना की, जिससे यह अटकलें तेज हो गईं कि कुछ कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा, “यह केवल मुख्यमंत्री के प्रति शिष्टाचार है। कांग्रेस एकजुट है और इसमें कोई विभाजन नहीं है।”

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