बिना कारण बताए गिरफ्तारी अवैध, वजह बताना अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता : SC
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले (Historical decisions) में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत किसी गिरफ्तार व्यक्ति (Arrested person) को उसकी गिरफ्तारी की वजहों के बारे में जानकारी (Giving information about Arrest Reasons) देना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता (Mandatory constitutional requirement.) है। इस प्रावधान का पालन न करने पर गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी। न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने हरियाणा पुलिस द्वारा की गई एक गिरफ्तारी को अनुच्छेद 22(1) का पालन न करने के कारण अवैध घोषित करते हुए आरोपी की तुरंत रिहाई का आदेश दिया।
पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 22 को मौलिक अधिकारों के तहत संविधान के भाग 3 में शामिल किया गया है। इस प्रकार, यह गिरफ्तार किए गए और हिरासत में रखे गए प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाए। यदि गिरफ्तारी के आधार को गिरफ्तारी के बाद जल्द से जल्द सूचित नहीं किया जाता है, तो यह अनुच्छेद 22 (1) के तहत गारंटीकृत गिरफ्तारी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
मौलिक अधिकार का उल्लंघन
पीठ ने कहा, “अनुच्छेद 22 को संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों के अंतर्गत शामिल किया गया है। इसलिए, यह प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि उसे उसकी गिरफ्तारी के आधारों के बारे में जल्द से जल्द सूचित किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो यह अनुच्छेद 22(1) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा और गिरफ्तारी अवैध हो जाएगी।”
मित्रों और रिश्तेदारों को जानकारी देना भी आवश्यक
न्यायमूर्ति एन.के. सिंह ने कहा कि गिरफ्तारी के आधार केवल गिरफ्तार व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उसके द्वारा नामित दोस्तों, रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों को भी सूचित करना चाहिए, ताकि वे कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से गिरफ्तारी को चुनौती देकर उसकी रिहाई सुनिश्चित कर सकें।
लिखित में जानकारी देना आदर्श तरीका
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंकज बंसल बनाम भारत सरकार के मामले में, उसने सुझाव दिया था कि गिरफ्तारी के आधार को सूचित करने का उचित और आदर्श तरीका गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में प्रदान करना है। हालांकि इसमें कहा गया है कि गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में सूचित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर लिखित मोड का पालन किया जाता है तो “गैर-अनुपालन के बारे में विवाद बिल्कुल भी उत्पन्न नहीं होगा”। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “भले ही गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में देने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इसे लिखित रूप में देने से विवाद समाप्त हो जाएगा। पुलिस को हमेशा अनुच्छेद 22 की आवश्यकताओं का कड़ाई से पालन करना चाहिए।”
गिरफ्तारी का वैधता और न्यायालय का कर्तव्य
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि गिरफ्तारी अनुच्छेद 22(1) का पालन न करने के कारण अवैध है, तो मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी की वैधता की जांच करनी चाहिए। अदालतों का कर्तव्य है कि वे मौलिक अधिकारों की रक्षा करें। पीठ ने कहा, “अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन के मामले में न्यायालय आरोपी की तुरंत रिहाई का आदेश देगा। यह बेल देने का आधार बनेगा, भले ही कानून के तहत बेल पर प्रतिबंध हो।”