प्रत्येक प्राणी के अंतर्मन में स्थित देवी का दूसरा रूप शक्ति विग्रह ब्रह्मचारिणी या तफ्स्चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाला है। सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही मां के दूसरे स्वरूप का उद्देश्य एवं स्वभाव है। उनकी आभा पूर्ण चंद्रमा के समान निर्मल, कांतिमय है।
उनकी शक्ति का स्थान ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ में है। उनके एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में जप की माला रहती है। नवरात्र के दूसरे दिन भक्त माता के इसी विग्रह की पूजा, अर्चना और उपासना करते हैं। माता भक्तों को उनके प्रत्येक कार्य
में सफलता प्रदान करती हैं। उनके उपासक सम्मार्ग से कभी नहीं हटते हैं। माता ने इस रुप में भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था, जिससे उनका शरीर कई बार क्षीण हुआ। उस समय मां मैना ने उनकी यह दशा देखकर ‘उ मा, ओ नहीं-नहीं’ कहकर उन्हें तपस्या से विरत करने की कोशिश की।
इसी कारण उनका नाम उमा’ पड़ा। उस समय माता सूकषम से सूक्ष्म रुपों में भी शिव प्राप्ति के लिए तप करती रहीं। तीनों लोकों में उनका तेज व्याप्त हो गया, तब ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी से भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने का वरदान दिया। माता के इस स्वरूप के पूजन से भक्त दीर्घायु एवं मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।
ऐसे करें मां ब्रह्मचारिणी प्रसन्न : माता को गुड़ल और कमल के फूल बहुत पसंद हैँ। नवरात्र के दूसरे दिन इन्हीं पुष्पों को अर्पित करने तथा चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग अर्पित करने से मां अतिशीघ्र प्रसन्न होकर लंबी आयु एवं सौभाग्य प्रदान करती हैं। संशयमुक्त होकर उनकी स्तुति करने वाला भक्त त्रिलोक में विजयी होता हैं।