सावन 2024 की शुरुआत ही सोमवार से, पहला सोमवार 22 जुलाई को…इस सावन पड़ेंगे 5 सोमवार…
सनातन संस्कृति में सावन को भगवान शिव का प्रिय माह माना गया है। चूकिं यह माह चातुर्मास (देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को – उदयातिथि के आधार पर) में आता है और इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं,ऐसे में सृष्टि संचालन का पूरा भार भगवान शिव पर रहता है। जिसके चलते हर भक्त इस समय भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूरे माह उनकी पूजा आराधना में लगा रहता है।
माना जाता है कि भगवान शिव अत्यंत भोले है और अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ऐसे में इस माह में भगवान शिव द्वारा अपने भक्तों की मनोकामना तुरंत पूर्ण की जाती है। पंडित एके शुक्ला के अनुसार यदि आपकी भी कोई मनोकामना हो जो तमाम प्रयासों के बावजूद पूरी नहीं हो पा रही हो, जैसे कॅरियर में सफलता न मिलना या व्यक्तिगत जीवन में परेशानी सहित किसी भी दिक्कत का समाधान न मिल पा रहा हो तो अबकी सावन सोमवार का व्रत करके यहां बताई गई व्रत कथा का पाठ करें। माना जाता है कि सावन सोमवार के दिन अगर व्रत रखकर इस कथा का पाठ किया जाए तो व्यक्ति की मनोकामना पूरी हो जाती है…
सावन सोमवार की कथा…
प्राचीन काल में एक साहूकार था जो भगवान शिव की अत्यंत भक्ति करता था। उसके पास धन-धान्य किसी भी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी और वह इसी कामना को लेकर रोज शिवजी के मंदिर जाकर दीपक जलाता था।
उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि प्रभु यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है। इसको किसी बात का कष्ट है तो उसे आपको अवश्य दूर करना चाहिए। इस पर भगवान शिवजी बोले कि, हे! पार्वती इस साहूकार के पास पुत्र नहीं है। यह इसी कारण दु:खी है।
जवाब में माता पार्वती ने कहा कि, हे ईश्वर! कृपा करके इसे पुत्र का वरदान दे दीजिए। इस पर भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती साहूकार के भाग्य में पुत्र का योग ही नहीं है। ऐसे में अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल भी गया तो वह केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा।
इस पर माता पार्वती ने कहा कि हे प्रभु आपको इस साहूकार को पुत्र का वर देना ही होगा, अन्यथा भक्त क्यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे? माता के बार-बार कहने से भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र का वरदान तो दिया, लेकिन यह भी कहा कि वह केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
साहूकार यह सारी बातें सुनकर न तो खुश हुआ और न ही दु:खी। वह पहले की ही तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता रहा। उधर कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और नवें महीने उसे सुंदर से बालक की प्राप्ति हुई। परिवार में खूब हर्षोल्लास मनाया गया, लेकिन साहूकार पहले ही की तरह रहा और उसने बालक की 12 वर्ष की आयु का जिक्र किसी से भी नहीं किया।
जब बालक 11 वर्ष की आयु हो गई तो एक दिन साहूकार की सेठानी ने बालक के विवाह के लिए कहा। तो साहूकार ने कहा कि वह अभी बालक को पढ़ने के लिए काशीजी भेजेगा। इसके बाद उसने बालक के मामा जी को बुलाया और कहा कि इसे काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस भी स्थान पर रुकना वहां यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना।
काशी जाते समय बालक व उसके मामा जिस भी स्थान पर रुकते वहां यज्ञ व ब्राह्मणों को भोजन करते हुए जा रहे थे, कि तभी रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह था। इस राजकुमारी का जिससे उसका विवाह होना था वह एक आंख से काना था।
तो राजकुमारी के पिता ने जब अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उनके मन में आया कि क्यों न इसे ही घोड़ी पर बिठाकर शादी के सारे कार्य संपन्न करा लिए जाएं। तो उन्होंने बालक के मामा से बात की और कहा कि इसके बदले में वह अथाह धन देंगे तो वह भी राजी हो गए।
इसके बाद साहूकार का बेटा विवाह की वेदी पर बैठा और जब विवाह कार्य संपन्न हो गए तो जाने से पहले उसने राजकुमारी की चुंदरी के पल्ले पर लिखा कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वह तो एक आंख का काना है। इसके बाद वह अपने मामा के साथ काशी के लिए चला गया।
उधर जब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर यह लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। तो राजा ने भी अपनी पुत्री को बारात के साथ विदा नहीं किया और बारात वापस लौट गई। उधर मामा और भांजे काशीजी पहुंच गये।
एक दिन जब मामा ने यज्ञ रखा था और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर जाकर देखा तो भांजे के प्राण निकल चुके थे। वह बहुत परेशान हुए, लेकिन सोचा कि अभी रोना-पीटना मचाया तो ब्राह्मण चले जाएंगे और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संपन्न हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू किया।
उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु, ये कौन रो रहा है? तभी उन्हें पता चला कि भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मे साहूकार के पुत्र की मृत्यु हो गई है।
तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे स्वामी इसे जीवित कर दें अन्यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण भी निकल जाएंगे। इस पर भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती! इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भोग चुका। लेकिन मां के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया।
और लड़का ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठा और मामा-भांजे दोनों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर लौटे। रास्ते में फिर वही नगर पड़ा जहां लड़के को घोड़ी पर बिठाकर राजकुमारी के साथ शादी के सारे कार्य संपन्न किए गए थे, यहां राजकुमारी ने उन्हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारे धन-धान्य के साथ विदा किया।
उधर साहूकार और उसकी पत्नी छत पर बैठे थे। उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि उनका पुत्र सकुशल न लौटा तो वह छत से कूदकर अपने प्राण त्याग देंगे। तभी लड़के के मामा ने आकर साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार सुनाया, लेकिन वे नहीं मानें तो मामा ने शपथ पूर्वक कहा तब कहीं जाकर दोनों को विश्वास हुआ और दोनों ने अपने बेटे-बहू का स्वागत किया।
उसी रात साहूकार को स्वप्न ने शिवजी ने दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसन्न हुआ। इसी प्रकार जो भी व्यक्ति इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्त दु:ख दूर हो जाएंगे और मनोवांछित सभी कामनाओं की पूर्ति होगी।